बीमा कंपनी ने मौत के 21 साल बाद भी नहीं दी पॉलिसी की रकम

Insurance company did not give policy amount even after 21 years of death
बीमा कंपनी ने मौत के 21 साल बाद भी नहीं दी पॉलिसी की रकम
बीमा कंपनी ने मौत के 21 साल बाद भी नहीं दी पॉलिसी की रकम

पीडि़तों का आरोप - आम लोगों के साथ की जा रही धोखेबाजी और मौन साधकर बैठे हैं जिम्मेदार
डिजिटल डेस्क जबलपुर
। 24 घंटे सात दिन वर्क करने का दावा करने वाली बीमा कंपनियाँ पूरी तरह आम लोगों को लाभ देने में पीछे हैं। यह आरोप आम लोगों के द्वारा लगाए जा रहे हैं। दावे व वादे तो हजार किए पर आम नागरिकों से जरूरत के वक्त बीमा कंपनियों ने दूरियाँ बनाकर रखीं। अस्पतालों में कैशलेस इलाज करने से इनकार किया जा रहा है। अस्पतालों व दवाइयों के बिल जब बीमा कंपनियों को दिए जाते हैं तो उन्हें भी बीमा कंपनी के जिम्मेदार परीक्षण के नाम पर महीनों निकाल देते हैं और उसके बाद अचानक उक्त प्रकरण में क्लेम देने से इनकार कर देते हैं। यह किसी एक मामले में नहीं, बल्कि अनेक पॉलिसी धारकों के साथ ऐसा ही किया जा रहा है। यहाँ तक कि अनेक मामलों में मौत के बाद भी बीमा कंपनियाँ क्लेम नहीं दे रही हैं। वहीं उपभोक्ता बीमा कंपनियों के चक्कर लगा रहे हैं पर उनकी सुनवाई नहीं हो रही है।
केस. 1- पिता की मौत के बाद नहीं मिला आज तक क्लेम
आशा नगर अधारताल निवासी सुनील अग्रवाल ने बताया कि उनके पिता त्रिलोकी नाथ अग्रवाल के नाम पर एलआईसी की पॉलिसी थी। एलआईसी की पॉलिसी उनके जीवित रहते तक निरंतर जारी रही। पिता की मौत 9 दिसम्बर 2000 में हो गई थी। पिता की मौत के बाद नियमानुसार किश्त जमा करना बंद करा दिया गया था। चूँकि पॉलिसी में नॉमिनी के रूप में मेरा नाम था तो उसका भुगतान उसे मिलना था। उसके द्वारा मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ ही सारे दस्तावेज बीमा कंपनी में पॉलिसी के साथ जमा कर दिए थे। बीमा कंपनी के अधिकारी के द्वारा जल्द ही भुगतान कराने के लिए कहा गया था पर आश्चर्यजनक यह रहा की पिता की मौत हुए 21 साल गुजर गए पर आज तक बीमा पॉलिसी की राशि उसे नहीं मिली। वह लगातार बीमा कंपनी के ऑफिस गया पर किसी तरह का उत्तर नहीं मिल रहा है। पीडि़त का कहना है कि जानबूझकर हमें परेशान किया जा रहा है। अगर जल्द निराकरण नहीं हुआ तो हम पूरे प्रकरण को न्यायालय के समक्ष लेकर जाएँगे।
केस. 2- आईसीयू, ऑक्सीजन सपोर्ट का भुगतान नहीं

राम कृष्ण सोनी निवासी अधारताल ने बताया कि एचडीएफसी से हेल्थ पॉलिसी ले रखी है। वे दिसम्बर 2020 में अचानक कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए थे। उन्हें मेट्रो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल में लगातार दो सप्ताह तक इलाज चला। इस दौरान एचडीएफसी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी का कैशलेस कार्ड दिखाया तो अस्पताल ने भर्ती कर लिया था पर बीमा कंपनी ने कैशलेस नहीं किया। उसे नकद भुगतान करना पड़ा और बाद में जब बीमा क्लेम किया तो बीमा कंपनी ने अनेक क्वेरी निकाली। उन क्वेरी को पूरा किया गया और उसके बाद दोबारा बिल सबमिट किए गए। बिल सबमिट किए जाने के बाद बीमा कंपनी को क्लेम देने के लिए कहा गया तो बीमा कंपनी ने आधे से भी कम भुगतान किया और शेष राशि के लिए कहा कि हम आईसीयू  व ऑक्सीजन सपोर्ट का भुगतान नहीं करते हैं। परेशान होकर पीडि़त लगातार मामले में कंपनी के समक्ष अपील कर रहा है पर उसकी सुनवाई कोई नहीं कर रहा है। वहीं बीमा कंपनी के अधिकारी भी पूरे मामले में मौन धारण किए हुए हैं। 
इनका कहना है
पॉलिसी किस ब्रांच की है यह चैक किया जाएगा और उसके बाद जल्द ही निराकरण किया जाएगा। 21 साल से मामला क्यों लंबित है इसकी जाँच कराई जाएगी।
-अरुण कुमार, अधारताल ब्रांच मैनेजर, एलआईसी 
 

Created On :   4 Jun 2021 3:05 PM IST

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