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गाजा पट्टी में चलने वाली इजरायल की मशीन गन खमरिया में गरजी
डिजिटल डेस्क जबलपुर। गाजा पट्टी की तरफ रुख करके अंधाधुंध फायरिंग करने वाली 7.62 लाइट मशीन गन (एलएमजी) शनिवार को खमरिया से सटे जंगलों में गरजी। आयुध निर्माणी खमरिया के लॉग प्रूफ रेंज में मशीन गन का ट्रायल किया गया। अब तक ढाई से तीन सौ राउण्ड फायर किए जा चुके हैं। एलएमजी को स्नाइपर शॉट के मामले में बेहद कारगर माना गया है। पता चला है कि भारतीय रक्षा मंत्रालय और इजरायल रक्षा विभाग के बीच 7.62 गनों की खरीद फरोख्त के लिए उच्च स्तरीय वार्ता चल रही है। कुल मिलाकर भविष्य में होने वाले रक्षा सौदे का पूरा दारोमदार इस फायरिंग टेस्ट से निकलने वाले नतीजों पर निर्भर रहेगा।
7.62 एलएमजी का जो रेंज होता है वह 457.2 मीटर से शुरू होता है। जानकार बताते हैं कि इसकी इफेक्टिव रेंज 700 मीटर तक होती है। यही इसे अन्य मशीन गनों से अलग पहचान देती है। एलएमजी वर्जन में 30-राउंड मैगजीन का उपयोग होता है। यह गन सेमी और फुल ऑटो मोड में फायर करने की काबिलियत रखती है। बहरहाल, एलपीआर में शुरू की गई टेस्टिंग में गन की एक्यूरेंसी टेस्ट की जा रही है।
फस्र्ट राउण्ड फायर: इंडियन ऑर्डनेंस में ज्यादा कारगर नहीं -
एलपीआर में 100 मीटर की दूरी पर टारगेट फिक्स कर निशाना साधा गया। महज 6 सेमी. के डाए पर एमुनेशन (आयुध) फायर किए गए। सूत्रों का कहना है कि इजरायली एमुनेशन से फायरिंग का एक्यूरेंसी परसेंट ज्यादा रहा, जबकि जब टेस्टिंग के लिए भारतीय आयुधों का इस्तेमाल किया गया तो परिणाम उतने बेहतर नहीं निकले। सूत्रों के मुताबिक इजरायली एमुनेशन में 180 राउण्ड फायर किए जा चुके है। ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड के 80 राउण्ड एमुनेशन दागे गए हैं। टेस्टिंग के लिए इजरायल से 12 रक्षा विशेषज्ञों की टीम भी एलपीआर में बनी हुई है। साथ ही ओएफबी तथा जीआरसी के सैन्य अधिकारी भी मॉनीटरिंग कर रहे हैं। इजरायल और भारतीय जलवायु में काफी अंतर है यही वजह है कि विभिन्न मानकों पर एलएमजी को परखना जरूरी है।
टेस्ट फैक्टर-
एयर डेनसिटी- हवा की सघनता से भी टेस्टिंग में फर्क आता है।
हवा की गति- वायु की रफ्तार टारगेट तक पहुँचने में मदद और अवरोध भी पैदा करती है।
हवा की दिशा- दिशा सही होने पर रेंज बढ़ती है, जबकि विपरीत होने पर कमी आती है।
तापमान- एमुनेशन की स्पीड पर तापमान काफी असर डालता है।
आद्र्रता - आद्र्रता ज्यादा होने पर एमुनेशन की स्पीड प्रभावित होती है।
इंसास की जगह लेगी-
भारतीय सेना में 1980 के दशक के मध्य में 5.56 मिमी कैलिबर राइफल विकसित करने के लिए निर्णय लिया गया था। आर्ममेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टाब्लिशमेंट (एआरडीई), पुणे के परीक्षण पूरा होने पर द इंडियन स्मॉल आम्र्स सिस्टम (इंसास) को 1990 में इस्तेमाल में लाया गया। जानकारों का कहना है कि 1992 के बाद रूस, हंगरी और इजरायल से नई तकनीक की राइफल हासिल करने की योजना पर विचार किया गया, ताकि इंसास की जगह अत्याधुनिक गनों का इस्तेमाल किया जा सके।
Created On :   4 July 2021 5:37 PM IST