60 दिनों से भी ज्यादा वक्त लग रहा, मोटी रकम ऐंठने के बाद राहत नहीं तो किस काम का इंश्योरेंस

It was taking more than 60 days, no relief if after investing huge amount, then which work is insured?
60 दिनों से भी ज्यादा वक्त लग रहा, मोटी रकम ऐंठने के बाद राहत नहीं तो किस काम का इंश्योरेंस
60 दिनों से भी ज्यादा वक्त लग रहा, मोटी रकम ऐंठने के बाद राहत नहीं तो किस काम का इंश्योरेंस

कानूनन डिस्चार्ज से 60 मिनट के भीतर होना चाहिए क्लेम का भुगतान
 डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
कानून की सख्ती के बावजूद बीमा कंपनियों ने मनमर्जी के ऐसे कई रास्ते निकल रखे हैं जिससे क्लेम का भुगतान न करना पड़े। मान लीजिए, क्लेम देना भी पड़े तो भारी भरकम कटौती और खून के आँसू रुलाने के बाद..। काफी कम लोगों को पता होगा कि मरीज के डिस्चार्ज होने से ठीक एक घंटे के भीतर क्लेम के भुगतान का प्रावधान है लेकिन बीमा कंपनियाँ ऐसे किसी भी कानून को मानती कहाँ हैं? 
कोरोना आपदा में जब केन्द्र और राज्य सरकार नियमों को शिथिल कर रही हैं, ऐसे में बीमा कंपनियाँ छोटी-छोटी खामियाँ निकालकर क्लेम रिजेक्ट कर रही हैं। हालात यह हैं कि अस्पतालों द्वारा भेजे जाने वाले बिल पर ऐसे-ऐसे सवाल खड़े किए जाते हैं कि जिसका जवाब निजी अस्पतालों के पास नहीं होता है। यही वजह है कि निजी अस्पतालों ने इंश्योरेंस वाले मरीजों का कैशलेस इलाज करना ही बंद कर दिया है। इसका खामियाजा इंश्योरेंस वाले मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। बीमा होने के बाद भी मरीजों को नकद भुगतान करना पड़ रहा है। 
कोविड के इलाज में आने वाली दिक्कतों को देखते हुए राज्य सरकार ने 28 फरवरी 2020 से शेड्यूल रेट से 40 प्रतिशत अधिक पर रेट निर्धारित किए हैं। बीमा कंपनियों के रेट पाँच साल से भी पुराने हैं। कोविड महामारी के दौरान भी बीमा कंपनियों ने इलाज के रेट पुनरीक्षित नहीं किए हैं। कोरोना आपदा के दौरान दवाइयों के साथ ही ऑक्सीजन के भी रेट बढ़ चुके हैं। कोरोना काल में हेल्थ इंश्योरेंस कराने वाले लोगों को अब निराश होना पड़ रहा है। करोड़ों कमाने के बाद भी बीमा कंपनियाँ मरीजों को भुगतान नहीं कर रही हैं। 
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना 
अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ ने बताया कि दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि मरीज के डिस्चार्ज होने के एक घंटे के भीतर बीमा कंपनियों को क्लेम का भुगतान करना होगा। हाईकोर्ट ने मरीज के भर्ती होने पर भेजे जाने वाले इस्टीमेट को भी एक घंटे में मंजूरी दिए जाने का निर्देश दिया है, ताकि मरीज का समय पर इलाज शुरू हो सकेे। इसके बाद भी बीमा कंपनियों की कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं हो रहा है। बीमा कंपनियाँ मरीजों को लगातार क्लेम का भुगतान करने से इनकार कर रही हैं। 
आईआरडीएआई के निर्देशों का भी पालन नहीं 
भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने बीमा कंपनियों को अस्पतालों की ओर से भेजे गए क्लेम की प्रक्रिया को सरल बनाने के निर्देश दिए हैं। आईआरडीएआई ने कहा है कि पंजीकृत िनजी अस्पताल कैशलेस इलाज से इनकार नहीं कर सकते हैं। यदि पंजीकृत अस्पताल कैशलेस इलाज से मना करते हैं तो बीमा कंपनियाँ उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती हैं। इसकी सूचना राज्य सरकार और जिला प्रशासन को देनी होगी। जानकार कहते है कि निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है। 
सूचना देने में देरी को आधार नहीं बना सकते 
उपभोक्ता मामलों के जानकार अधिवक्ता मनीष मिश्रा बताते हैं कि कई बार कंपनियाँ मरीज की सूचना देने में देरी को आधार बनाकर क्लेम खारिज कर देती हैं, जबकि यह कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के खिलाफ है। कई बार मरीज वेंटिलेटर पर होता है, हार्ट अटैक जैसी इमरजेंसी के मामले में बीमा कंपनी को खबर देने में कुछ समय लग जाता है। ऐसे दर्जनों मामले में जिन्हें बीमा कंपनी इसी आधार पर रद््द कर देती है। उपभोक्ता फोरम के अलावा शीर्षस्थ न्यायालय भी कंपनियों की इस तरह की कार्रवाई को खारिज कर भुगतान के आदेश दे चुकी है।  

Created On :   10 May 2021 9:01 AM GMT

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