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जनसेवा -3 एकड़ जमीन खरीदकर बनवाया सुव्यवस्थित मुक्तिधाम ,मां की अंत्येष्टि के लिए जगह न मिलने की थी कसक
* तेंदूखेड़ा के सुदामा प्रसाद शुक्ला की अनुकरणीय पहल, मुक्तिधाम के साथ बनवाया मंदिर गार्डन और धर्मशाला
डिजिटल डेस्क तेदुखेड़ा नरसिंहपुर । जीवन में आने वाली दुश्वारियों को अगर सकारात्मक भाव से लिया जाए तो यह रचनात्मक होती और इसे दूर करने के लिए लिया गया संकल्प और उपाय सर्वजनहिताय का अनुकरणीय कार्य बनता है। इसकी बानगी जिले के जहसील मुख्यालय तेंदूखेड़ा में देखने मिला है। यहां के निवासी सुदामाप्रसाद शुक्ला को अपनी मां का निधन हो जाने के बाद अंतिम संस्कार के लिए स्थान नहीं मिला तो उन्होंने नगर में मुक्तिधाम की इस कमी को दूर करने का संकल्प लिया और निजी भूमि खरीदकर एक मुक्तिधाम बनवाकर उसे सार्वजनिक उपयोग के लिए समर्पित कर दिया। उनकी यह अनुकरणीय पहल नगर में एक मिसाल बन गई है। उन्होंने इसके लिए तीन एकड़ जमीन खरीदी और यहां मुक्तिधम के साथ ही मंदिर, गार्डन और धर्मशाला का भी निर्माण कराया है।
बन गया एक उपयोगी स्थल
श्री शुक्ला ने यहां न केवल मुक्तिधम बनवाया बल्कि तीन मंजिल का मंदिर भी बनाया जिसमें हनुमानजी शंकरजी और स्वाधीन की मूर्ति विराजमान है। मंदिर के बाजू में गार्डन एवं मंदिर के सामने शिवालय और धर्मशाला का भी निर्माण कराया इस कार्य मेंअभी तक एक करोड़ 60 लाख की राशि खर्च हो चुकी है। अब यह स्थान सार्वजनिक उपयोगा का महत्वपूर्ण स्थल बन गया है। गार्डन में शादी विवाह जैसे महत्वपूर्ण आयोजन होते है। वहीं धर्मशाला में बाहर से आने वाले लोग और तीर्थयात्री शरण लेते है। इस स्थल को पंचाग्नि अखाड़ा के नाम से जाना जाता है। इसे पंचाग्नि अखाड़ा संचालित करता है। ब्रह्मर्षि सुदामानंद जी पंचाग्नि अखाड़ा पालखंडा में महंत है।
प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने आते आते है लोग
इस स्थल को काफी मनोरम बनाया बनाया गया है यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को देखने स्थानीय के अलावा दूर-दराज क्षेत्रों से लोग आते है। गार्डन के सौंदर्य का आनंद लेने के साथ ही मंदिर में भगवान के दर्शन पूजन-अर्चन करके धर्मलाभ लेते हैं।
यह है कहानी
तेंदूखेडा निवासी 73 वर्षीय सुदामाप्रसाद शुक्ला की माताजी का निधन वर्ष 1979 में हुआ था। उस समय ग्राम में मुक्तिधाम नहीं था न ही अंतिम संस्कार के लिए कोई स्थल निर्धारित स्थल था, इससे उन्हे माताजी का अंतिम संस्कार करने में परेशानी का सामना करना पड़ा, जैंसे-तैसे माता जी का अंतिम संस्कार तो किया लेकिन ग्राम की इस कमी ने उन्हे खिन्न कर दिया। इस घटना के बाद वे उज्जैन चले गए और सन्यास धारण कर लिया। लेकिन यह बात वे विस्मृत नहीं कर पाए। 1995 में वे अपनी जन्म स्थली लौटे और यहां पर उन्होंने तीन एकड़ भमि क्रय कर मुक्तिधाम बनवाने का बीड़ा उठाया। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति से उन्होंने अपना संकल्प पूरा किया।
Created On :   30 Dec 2019 2:00 PM IST