दफ्तरों में ताले, बंद हैं बाजार, फिर सड़कों पर ये हुजूम कहाँ का?

Locks in offices, markets are closed, then where are these flocks on the streets?
दफ्तरों में ताले, बंद हैं बाजार, फिर सड़कों पर ये हुजूम कहाँ का?
दफ्तरों में ताले, बंद हैं बाजार, फिर सड़कों पर ये हुजूम कहाँ का?

न कोई रोक-टोक न ही बंदिश, सड़कों पर सामान्य दिनों की तरह ही है ट्रैफिक, दिन ढलने के बाद चौराहों पर बैठ जाती है पुलिस
 डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
सरकारी और निजी दफ्तरों में ताले लटक रहे हैं, बाजार सुबह खुलने के वक्त पर बंद हो रहे हैं। इस बीच सवाल उठ रहा है कि सड़कों पर दौडऩे वाली भीड़ दिन भर कहाँ आ-जा रही है? इतनी बेरोक-टोक व्यवस्था की वजह से न केवल संक्रमण फैल रहा है, बल्कि लॉकडाउन का छुटपुट फायदा भी नजर नहीं आ रहा। प्रशासन और पुलिस की टीम बैरीकेड्स के जरिए अपनी भरपाई पूरी करने में जुटी हुई है।  लॉकडाउन की गाइडलाइन का अगर सही तरीके से पालन होता तो सही मायनों में सुबह 9 बजे के बाद सड़कों पर सन्नाटा नजर आना चाहिए, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इसके विपरीत सड़कों पर सामान्य दिनों की तरह ट्रैफिक है। वाहन चालक दिन भर इधर से उधर आ-जा रहे हैं। दुकानों में ताले लटके हैं, कोई खरीद-फरोख्त नहीं हो रही है। लोगों के घरों तक सब्जी और फल पहुँच रहे हैं इसके बावजूद भी कई स्थान ऐसे हैं जहाँ पर सैकड़ों की संख्या में जमावड़ा लग रहा है। गलियों-कॉलोनियों में बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं। महिला-पुरुष वॉक पर निकल रहे हैं। रोक-टोक करने पर बेवजह के तर्क दिए जा रहे हैं। लॉकडाउन का मतलब लोगों की समझ में नहीं आ रहा है। यह लॉकडाउन पिछले बार की तरह है क्या जिसमें लोगों को घर से बाहर निकलने में घबराहट होती है। अगर यहीं व्यवस्था चलती रही तो लॉकडाउन का कोई मतलब नहीं रहेगा। 

Created On :   17 April 2021 2:18 PM IST

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