महावितरण 16 से 36 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है विद्युत दर, प्रपोजल का संगठनों ने किया विरोध

Mahavitran is plannig to increase the electricity rate for about 20 percent
महावितरण 16 से 36 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है विद्युत दर, प्रपोजल का संगठनों ने किया विरोध
महावितरण 16 से 36 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है विद्युत दर, प्रपोजल का संगठनों ने किया विरोध

डिजिटल डेस्क, नागपुर। महावितरण फिर विद्युत दर बढ़ाने की तैयारी में है। इसे लेकर रखे गए प्रपोजल पर घमासान मच गया है। महावितरण जहां विद्युत दर वृद्धि को सही ठहरा रहा है, वहीं उपभोक्ता संगठन इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। महावितरण का कहना है कि क्रास सब्सिडी अन्य राज्यों से अधिक होने के बावजूद औद्योगिक विद्युत दरें दूसरे राज्यों की अपेक्षा कम हैं, जबकि संगठनों का कहना है कि क्रास सब्सिडी का आंकड़ा ही गलत है। यदि सही आंकड़े देखे जाएं तो क्रास सब्सिडी में जुड़ी रकम ही राजस्व के अंतर को पाट देगी। इसके अलावा विदर्भ व मराठवाड़ा में ही औद्योगिक दरें कम हैं। वह भी सरकार के अनुदान के कारण न कि महावितरण की दरें कम होने से।

महावितरण का पक्ष 
वार्षिक राजस्व की जरूरत और वास्तविक राजस्व के अंतर को भरने के लिए विद्युत दर वृद्धि महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग तय करती है। राजस्व का अंतर राजस्व की कमी है, हानि नहीं। 
महावितरण एक्रुअल पद्धति से लेखा रखता है। इसमें बिलिंग की गई संपूर्ण रकम को राजस्व माना जाता है। इससे बकाया रकम का विद्युत दर वृद्धि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रस्तावित 7 रुपए 74 पैसे प्रति यूनिट की तुलना आयोग द्वारा 2018-19 के लिए मंजूर दर 6 रुपए 71 पैसे से करें तो वृद्धि 15 प्रतिशत ही बैठती है। जबकि 2019-20 के लिए कोई भी दर वृद्धि प्रस्तावित नहीं की गई है। केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के निर्देशानुसार, क्रास सब्सिडी का भार उठा रहे उपभोक्ताओं पर कम तथा क्रास सब्सिडी का लाभ पा रहे वर्ग पर अधिक विद्युत दर वृद्धि की मांग प्रस्ताव में है।

संगठन का दावा
राजस्व में अंतर हानि नहीं है, कहना ही गलत है। यदि वसूली नहीं हुई और रकम नहीं आई तो वह हानि ही है। इसके अलावा बकाया का असर विद्युत दर पर न पड़ता हो, लेकिन इसके कारण लिए जाने वाले ऋण के ब्याज व डूबत बकायों का सीधा असर विद्युत दरों पर पड़ता है। 

महावितरण ने पिछले ही वर्ष 2100 करोड़ रुपए डूबत ऋण में डाले हैं। अहमदनगर की मुला प्रवरा सोसायटी पर मूूल व ब्याज की रकम 2400 करोड़ वसूली ही नहीं जा सकी। इसका भी असर विद्युत दरों और उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा।

महावितरण का यह कहना कि विद्युत दरों पर औसत फर्क 15 प्रतिशत ही पड़ेगा गलत है। राजस्व की कमी 30842 करोड़ बताई गई है, जबकि बिजली की खपत 2.13 एमयू बताई गई है। गणना करें तो प्रति यूनिट औसत वृद्धि 1 रुपए 45 पैसे है, जो वर्तमान औसत दर की 22 प्रतिशत है।

औद्याोगिक दरों की जो तुलना महावितरण ने की है वह भी सही नहीं है। तुलना वहां लागू वर्तमान दरों से नहीं की गई है। इसके अलावा पावर फैक्टर का लाभ केवल महाराष्ट्र में ही नहीं दूसरे राज्यों में भी उद्योगों को मिलता है। विद्युत दरें मराठवाड़ा व विदर्भ में ही कुछ कम हैं, वो भी सरकार द्वारा दिए जा रहे अनुदान के कारण, न कि महावितरण के कारण। इसके अलावा महावितरण केवल औद्योगिक दरों की ही तुलना कर रही है। घरेलू और व्यावसायिक दरें दूसरे राज्य की तुलना में बहुत अधिक है।

क्रास सब्सिडी का आंकड़ा गलत है। 2018-19 में करीब 6 हजार करोड़ का राजस्व में अंतर बताया गया है। क्रास सब्सिडी हर श्रेणी के लिए 7500 करोड़ रुपए है। RTI में मिले आंकड़ों के अनुसार, कृषि कनेक्शनों के बिल वास्तविक बिल की रकम के केवल 47 से 50 प्रतिशत ही है।

कृषि में महावितरण हानि कम दिखा रही है। RTI के आंकड़ों के आधार पर ही यदि कृषि की हानि को सही किया जाए तो हानि 15 प्रतिशत बचेगी। इस प्रकार चोरी और भ्रष्टाचार का ही 9300 करोड़ रुपया बचेगा। इससे राजस्व का अंतर तो पटेगा ही साथ ही विद्युत दरें भी घट जाएंगी।

Created On :   1 Aug 2018 5:59 AM GMT

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