शारीरिक प्रतिक्रिया के बिना कार्रवाई का महज मौखिक विरोध व्यक्त करना सरकारी कर्मचारी के कार्य में रुकावट नहीं

Mere verbal protest against action without physical response is not a hindrance in the work of a Government servant
शारीरिक प्रतिक्रिया के बिना कार्रवाई का महज मौखिक विरोध व्यक्त करना सरकारी कर्मचारी के कार्य में रुकावट नहीं
हाईकोर्ट शारीरिक प्रतिक्रिया के बिना कार्रवाई का महज मौखिक विरोध व्यक्त करना सरकारी कर्मचारी के कार्य में रुकावट नहीं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। शारीरिक प्रतिक्रिया के बिना मनपाकर्मियों की कार्रवाई का महज मौखिक विरोध करने भर के आधार पर सरकारी कर्मचारियों के कामकाज व दायित्व निवर्हन में अवरोध पैदा करने का आरोप नहीं (भारतीय दंड संहिता की धारा 353) लगाया जा सकता है । बांबे हाईकोर्ट के एक आदेश में यह बात उभर कर सामने आयी है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने मनपाकर्मियों की दुकान खाली करवाने की कार्रवाई का सिर्फ मौखिक विरोध करने की वजह से आरोपी महेंद्र जैसवाल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 353 व 34 के तहत दर्ज मामले व कल्याण कोर्ट में दायर आरोपपत्र को खारिज कर दिया है। 

दरअसल कल्याण डोंबीवली महानगर पालिका की ओर से महेंद्र जैसवाल व अन्य को अपनी अनधिकृत दुकान को 24 घंटे के भीतर खाली करने का नोटिस दिया था। इस नोटिस के तहत मनपाकर्मी पुलिस दल के साथ दुकान को गिराने के लिए पहुंचे। इस दौरान जैसवाल ने कहा कि पहले हमें मारों फिर दुकान खाली करो। मनपाकर्मियों के कहने के बाद भी जब याचिकाकर्ता ने दुकान को खाली नहीं किया तो उसे जबरन दुकान से निकाल दिया गया। और दुकान को खाली करा दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता व अन्य के खिलाफ डोंबीवली पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 353 व 34 के तहत मामला दर्ज किया गया और फिर जांच के बाद कल्याण मजिस्ट्रेट कोर्ट  मामले को लेकर आरोपपत्र भी दायर कर दिया गया। आरोपपत्र में याचिकाकर्ता पर मनपाकर्मी व अन्य स्टाफ के काम में रुकावट पैदा करने व दायित्व निवर्हन में अवरोध निर्माण करने का आरोप लगया गया था। इस आरोपपत्र व मामले को रद्द करने की मांग को लेकर जैसवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 

न्यायमूर्ति पीबी वैराले व न्यायमूर्ति एसएम मोडक की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर  से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि मेरे मुवक्किल ने सिर्फ मौखिक रुप से दुकान न खाली करने की बात कही थी और कुछ शब्द बोले थे। जो उसकी निराशा व बेबसी को दर्शाते थे। इसके अलावा मेरे मुवक्किल ने मनपाकर्मियों के प्रति कोई हिंसक कृत्य नहीं किया है। इसके उल्टे पुलिस की रिपोर्ट दर्शाती है कि मेरे मुवक्किल को बल का प्रयोग कर जबरन दुकान से निकाला गया। इसके अलावा मेरे मुवक्किल को सक्षम प्राधिकरण ने अपने आदेश के तहत दुकानखाली करने के लिए 11 मई 2018 को 15 दिन का समय दिया था। लेकिन मनपाकर्मी जल्दबाजी में आदेश जारी करने के दिन ही दुकान खाली कराने पहुंच गए। और 24 घंटे में दुकान को खाली करने के लिए कहने लगे। यह दर्शाता है कि मनपा कर्मचारियों ने खुद कल्याण-डोंबीवली महानगरपालिका के सक्षम प्राधिकरण की ओर से जारी आदेश का उल्लंघन किया था। इस तरह से आदेश जारी करने के दिन ही मनपाकर्मियों का मेरे मुवक्किल की दुकान पर पहुंचना न्यायसंगत नहीं हो सकता है। इस मामले में मनपाकर्मी का कृत्य उसके अधिकार के दुरुपयोग को दर्शाता है। इस लिहाज से इस प्रकरण में मेरे मुवक्किल व अन्य के खिलाफ दर्ज किया गया मामला कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए। क्योंकि इस मामले में 353 के तहत मामला नहीं बनता है। 

खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील की इस दलीलों को न्यायसंगत मानते हुए कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने मनपा कार्रवाई का सिर्फ मौखिक रुप से विरोध किया था। उसने कोई शारीरिक प्रतिक्रिया नहीं दिखाई थी। इस तरह से एफआईआर के आधार पर हमें याचिकाकर्ता के वकील की बात पूरी तरह न्यायसंगत नजर आ रही है कि इस मामले में धारा 353 को नहीं लगाया जा सकता है। खंडपीठ ने आदेश में माना है कि मनपाकर्मी व अन्य अधिकारियों ने इस मामले में याचिकाकर्ता तक पहुंचने में जल्दबाजी दिखाई है। क्योंकि याचिकाकर्ता को 15 दिन का समय दुकान खाली करने के लिए दिया गया था। इस तरह से  इस मामले में धारा 353 को नहीं लगाया जा सकता है। लिहाजा आरोपी के खिलाफ दर्ज मामले व आरोपपत्र को रद्द किया जाता है। 

 
 

Created On :   16 April 2022 8:48 PM IST

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