जिन सोलर डस्टबिनों को डस्टबिन में फेंकना था उसी से कर रहे लाखों की कमाई, आँखें बंद करके बैठे निगम के अधिकारी

Officials sitting with closed eyes, earning the solar dustbins they had to throw in the dustbin
जिन सोलर डस्टबिनों को डस्टबिन में फेंकना था उसी से कर रहे लाखों की कमाई, आँखें बंद करके बैठे निगम के अधिकारी
जिन सोलर डस्टबिनों को डस्टबिन में फेंकना था उसी से कर रहे लाखों की कमाई, आँखें बंद करके बैठे निगम के अधिकारी

एजेंसी पर मेहरबान हैं  नगर निगम के अफसर 
उठ रहे सवाल कि टेंडर ही निरस्त हो चुका तो कैसे लगे हैं अवैध सोलर डस्टबिन
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
नगर निगम के अधिकारी यदि चाह लें तो फिर प्रदेश के मुख्य सचिव के आदेश को भी हवा में उड़ाया जा सकता है, किसी के आदेश व निर्देश इनके लिए मायने नहीं रखते। मायने तो यह रखता है कि कमीशन किससे कितना मिलेगा। बस कमीशन ही है कि जिन सोलर डस्टबिनों को एक साल से भी अधिक समय पहले फर्जी साबित कर दिया गया था और उसका टेंडर तक निरस्त हो गया, वे अभी भी कमाई का जरिया बने हुए हैं। प्रमुख चौराहों और तिराहों पर लगे ये फर्जी सोलर डस्टबिन अब इस बात के मॉडल बने हुए हैं कि जनता की गाढ़ी कमाई का कैसे मजाक उड़ाया जा सकता है। 
नगर निगम स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने  20 नवम्बर 2018 को सोलर डस्टबिन लगाने का ठेका  एसएस कम्युनिकेशन प्रेस कॉम्प्लैक्स सिविक सेंटर को 10 वर्ष  के लिए दिया था। वर्क ऑर्डर के अनुसार  50 प्रमुख स्थानों पर आधुनिक सोलर डस्टबिन लगाने थे। टेंडर में जिक्र था कि सोलर डस्टबिन में  सोलर प्लेट लगी होनी चाहिए,  वाई-फाई सुविधा होनी चाहिए, मोबाइल चार्जर प्वॉइंट हो। निगम अधिकारियों के अनुसार  जिन सोलर डस्टबिनों को लगाया जाना था उनकी प्रति डस्टबिन कीमत करीब 10 लाख रुपए थी, इस प्रकार करीब 5 करोड़ रुपए के डस्टबिन लगवाने का निर्णय हो गया। टेंडर के पहले  एजेंसी ने मॉडल के तौर पर ऐसे ही डस्टबिन की फोटो दिखाई और उसका कोटेशन भी दिया था। कमीशन के बोझ तले दबे अधिकारियों ने फोटो देखकर ही यह मान लिया कि एजेंसी 10 लाख रुपए का एक डस्टबिन लगाएगी, जिससे शहर होनोलुलू बन जाएगा। 
फटा पोस्टर निकला जीरो
शहर को सोलर डस्टबिन का सपना दिखाने वाले अधिकारियों ने यह तक नहीं देखा कि एजेंसी ने टेंडर की शर्तें पूरी कीं या नहीं और शहर के प्रमुख स्थानों पर सोलर डस्टबिन लगवा दिए गए। इनमें नीचे डस्टबिन थे और ऊपर विज्ञापन प्रदर्शित करने बड़ा सा बोर्ड था। उत्सुकता तो थी ही कि आधुनिक डस्टबिन लगे हैं जिनमें सोलर प्लेट लगी हैं जो कचरा भरने की जानकारी निगम मुख्यालय भेजेगी, वाई-फाई सुविधा होगी, मोबाइल चार्जिंग प्वॉइंट्स होंगे। लोगों ने इन डस्टबिनों में जब इन सुविधाओं को टटोला तो कुछ नहीं निकला, जिससे यह चर्चा फैल गई कि फर्जी सोलर डस्टबिन लगाए गए हैं। 
ये तो हद है 8फर्जी डस्टबिन निकालने में अब आ रहा पसीना
जब यह साबित हो चुका था कि सोलर डस्टबिन के नाम पर एजेंसी ने फर्जी डस्टबिन लगा दिए और इस प्रकार स्मार्ट सिटी के साथ चार सौ बीसी की गई, जिस पर तत्काल ही पुलिस में शिकायत की जानी थी लेकिन निगम अधिकारियों ने ऐसा करते हुए दिखावे के लिए दो फर्जी सोलर डस्टबिन निकाले और बाकी को छोड़ दिया। यह कहा गया कि एजेंसी खुद निकाल लेगी लेकिन अब एक साल हो चुका है और एजेंसी उन्हीं फर्जी सोलर डस्टबिनों पर जमकर विज्ञापन कर रही है, जिससे उसकी तो कमाई हो रही है लेकिन निगम को कुछ नहीं मिल रहा है। 
प्रमुख सचिव ने देखी हकीकत 
बात निकली तो भोपाल तक गई कि स्मार्ट सिटी ने 5 करोड़ का घोटाला कर दिया। उसी दौरान तत्कालीन प्रमुख सचिव संजय दुबे शहर आए थे। वे स्मार्ट सिटी कार्यालय मानस भवन में बैठक करके निकले, तो सामने ही सोलर डस्टबिन नजर आ गया। उन्होंने डस्टबिन का मुआयना किया और यह पता चला कि डस्टबिन में सूखा और गीला कचरा रखने तक की अलग व्यवस्था नहीं थी फिर बाकी सुविधाओं की बात ही छोड़ दीजिए। गुस्से में आए श्री दुबे ने तत्काल ही नगर निगम कमिश्नर को आदेश दिए कि सोलर डस्टबिन का टेंडर निरस्त किया जाए और ठेकेदार के साथ ही अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाए। 
मीडिया पॉलिसी को बना दिया मजाक
स्मार्ट सिटी ने न केवल शहर की जनता के साथ धोखाधड़ी की बल्कि मीडिया पॉलिसी 2017 का भी उल्लंघन किया। मीडिया पॉलिसी का नियम है कि जमीन पर अब केवल यूनिपोल ही लगाए जा सकेंगे वह भी नियमों के तहत, ऐसे में सोलर डस्टबिन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन पूरी तरह अवैध हैं। पॉलिसी में किसी भी चौराहे और तिराहे पर विज्ञापन के प्रदर्शन पर पाबंदी है, इसके साथ ही यह टेंडर 10 साल के लिए दिया गया था जबकि पॉलिसी के अनुसार 3 साल से अधिक का कोई टेंडर नहीं दिया जा सकता है। 
 

Created On :   11 Feb 2021 2:31 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story