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गोद लेने से जुड़े मामलों को जिलाधिकारी के अधिकार क्षेत्र में देने के खिलाफ दायर हुई याचिका
डिजिटल डेस्क, मुंबई। गोद यानि दत्तक से जुड़े मामले देखने के लिए जिलाधिकारी को प्राधिकृत किए जाने के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। अब तक इन मामलों को देखने की जिम्मेदारी न्यायपालिका के पास थी। किंतु 1 सितंबर 2022 को जारी राज्य सरकार की अधिसूचना के बाद दत्तक से जुड़े मामलों को देखने के लिए जिलाधिकारी को प्राधिकृत कर दिया गया है। इसके लिए किशोर न्याय कानून-2015 में वर्ष 2021 में संसोधन भी किया गया था। याचिका में इस विषय से जुड़े संसोधन व 1 सितंबर 2022 को जारी की गई अधिसूचना को चुनौती दी गई है। याचिका में दत्तक से जुड़े मामले जिलाधिकारी को स्थानांतरित करने से जुड़े महिला व बाल विकास विभाग के आयुक्त की ओर से जारी निर्देश पर भी आपत्ति जताई गई है और इस पर रोक लगाने का निवेदन किया गया है। महानगर के कांदिवली निवासी निशा पांडे ने इस मुद्दे को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका के मुताबिक साल 2021 में कानून में संसोधन कर कोर्ट शब्द को हटा कर डिस्ट्रीक मैजिस्ट्रेट (जिलाधिकारी) कर दिया गया है। इसलिए अब कोर्ट की बजाय जिलाधिकारी को दत्तक से जुड़े मामलों को देखने के लिए प्राधिकृत कर दिया गया है।
अब तक दत्तक से जुड़े मामले न्यायपालिका ही देखती थी और आदेश जारी करती थी। याचिका के मुताबिक कोर्ट को गोद से जुड़े मामले सौपने का मुख्य उद्देश्य यह था कि इससे जुड़ी सारी कानूनी प्रक्रिया का पालन अदालत की निगरानी में हो। याचिका में कहा गया है कि गोद से जुड़े मामले जिलाधिकारी को सौपने से जुड़ा फैसला पूरी तरह से अतार्किक है। याचिका में दावा किया गया है कि जिला प्रशासन को गोंद लेने से जुड़े मामले सौपने से इसके निपटारे में विलंब होगा जिससे गोद लेने के इच्छुक अभिभावकों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। याचिका में इस मुद्दे को लेकर संसदीय कमेटी की 8 अगस्त 2022 की रिपोर्ट का भी जिक्र किया गया है। कमेटी के मुताबिक न्यायाधीश के पास यह परखने का कौशल होता है कि दत्तक बच्चे के कल्याण के लिए हो रहा है अथवा नहीं। दिवाली की छुट्टियों के बाद इस याचिका पर सुनवाई हो सकती है।
Created On :   1 Nov 2022 8:40 PM IST