पर्यावरण पर असर डालने वाले कारणों का अध्ययन कर सकता प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कारण बताओ नोटिस पर लगाई रोक

Pollution control board may study the reasons affecting environment, ban on show cause notice
पर्यावरण पर असर डालने वाले कारणों का अध्ययन कर सकता प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कारण बताओ नोटिस पर लगाई रोक
पर्यावरण पर असर डालने वाले कारणों का अध्ययन कर सकता प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कारण बताओ नोटिस पर लगाई रोक

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) की ओर से जल व वायु प्रदूषण अधिनियम के अंतर्गत जारी की गई कारण बताओ नोटिस पर रोक लगा दी है। लेकिन इसके साथ ही स्पष्ट किया है कि उचित मामले में एमपीसीबी पर्यावरण पर असर डालने वाले कारणों व घटकों का व्यापक रुप से अध्ययन कर सकता हैं। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता कंपनी को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अधिकार न होते हुए भी जल्दबाजी में नोटिस जारी किया है। लिहाजा इस पर रोक लगाई जाती हैं। न्यायमूर्ति उज्जल भूयान व रियाज छागला की खंडपीठ ने यह बात टेक्सटाइल कारोबार से जुडी कंपनी रिलाइबल साइजिंग वर्कस की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद कही। कंपनी को यह नोटिस एमपीसीबी के नाशिक इलाके के क्षेत्रिय अधिकारी ने 18 मई 2020 को जल व वायू प्रदूषण  अधिनियम के अंतर्गत जारी किया था।

याचिका में कंपनी ने बोर्ड की इस नोटिस को चुनौती दी थी। कंपनी ने अपने कार्य के संचालन (ऑपरेट) के लिए एमपीसीबी से अनुमति मांगी थी, लेकिन एमपीसीबी ने कंपनी को उसके पास प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था होने को लेकर नीरी व आईआईटी मुंबई की रिपोर्ट मंगाई थी। । इसके अलावा महानगरपालिका के सिटी इंजीनियर का अन्नापत्ति प्रमाणपत्र लाने को भी कहा था। एमपीसीबी ने कंपनी पर नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया था। 

सुनवाई के दौरान कंपनी के वकील ने नियमों का उल्लंघन करने के आरोपों का खंडन किया। जबकि एमपीसीबी के वकील ने दावा किया था कि उसने सिर्फ कंपनी से प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था होने की रिपोर्ट मंगाई हैं। वह नियमों के उल्लंघन होने की स्थिति में कंपनी को कार्य की अनुमति नहीं दे सकते हैं। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कारण बताओ नोटिस पर रोक लगा दी और कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि एमपीसीबी ने कंपनी को बिना अधिकार व जल्दबाजी में नोटिस जारी किया है। इसलिए इस पर रोक लगाई जाती हैं। एमपीसीबी कंपनी के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई न करे। एमपीसीबी उचित मामले में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कारणों का अध्ययन कर सकती हैं। 
 

Created On :   8 July 2020 12:15 PM GMT

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