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तो फिर क्या अब महाराष्ट्र की सियासत का रिमोट कंट्रोल है उपमुख्यमंत्री के हाथ !
- अब किंगमेकर देवेन्द्र फडणवीस
- उद्धव के शिल्पकार पवार
- भाजपा ने साधे एक तीर से कई निशाने
डिजिटल डेस्क, नागपुर, संजय देशमुख। उद्धव ठाकरे सरकार के शिल्पकार एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार थे। तो वहीं अब एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के किंगमेकर देवेन्द्र फडणवीस हैं। फडणवीस सरकार में उपमुख्यमंत्री होंगे। सियासी मायनों में देखा जाए, तो रिमोट कन्ट्रोल अब उन्हीं के हाथ में होगा।
हिन्दुत्व के मुद्दे पर शिवसेना का हाथ पकड़कर राज्य में सत्ता तक पहुंचने वाली भाजपा ने 2024 में होने वाले लोकसभा -विधानसभा चुनाव को देखते हुए शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इस फैसले से भाजपा को लाभ अधिक और शिवसेना को भारी नुकसान होता दिखायी दे रहा है। भाजपा की रणनीति का केन्द्र बिंदु इस बार भी हिन्दुत्व है। शिंदे और उनके समर्थक भी बार-बार यही दोहरा रहे थे कि उद्धव ठाकरे ने हिन्दुत्व के मुद्दे को दरकिनार कर धर्मनिरपेक्षता की चादर ओढ़ ली है।
भाजपा ने मराठा समाज के शिंदे को सीएम बनाकर यह संदेश दिया कि बालासाहब ठाकरे के सच्चे शिवसैनिक के गले में उसने यह माला पहना दी है। सांसद संजय राऊत ने भी यह बयान दिया था कि अगर एकनाथ शिंदे वापस आते हैं, तो वह महाविकास आघाड़ी से बाहर निकलने को तैयार है। हालांकि उनके इस बयान से कांग्रेस-राकांपा जरूर नाराज हुई थीं। उद्धव ठाकरे भी बार-बार कह रहे थे कि भाजपा एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाती है, तो मुझे खुशी होगी।
अक्टूबर 2019 में मुख्यमंत्री पद को लेकर हुए विवाद के बाद शिवसेना ने कांग्रेस-राकांपा से युति कर भाजपा को अनैसर्गिक झटका दिया था। भाजपा ने बदला लिया। बगावत का झंडा बुलंद करने वाले कर्णधार एकनाथ शिंदे को तोहफे में मुख्यमंत्री पद दिया। शिवसेना के राजनीतिक समीकरण उलझा गए।
भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने देश भर में फिर यह प्रयोग किया। नीतिश कुमार को विधायकों की संख्या कम होने के बाद भी भाजपा ने वादा निभाते हुए बिहार का मुख्यमंत्री बनाया था। महाराष्ट्र में भाजपा के पास 106 विधायक हैं। निर्दलीयों को मिलाकर यह संख्या 120 तक जाती हैं। इसके बावजूद भाजपा ने 50 विधायकों का समर्थन प्राप्त एकनाथ शिंदे को ताज पहनाया है।
डर था कि अगर भाजपा का मुख्यमंत्री होगा, तो शिवसैनिकों के रोष का भारी सामना करना पड़ेगा। राज्य के अलग-अलग हिस्सों में हो रही हिंसा की घटनाएं इसका सबूत थीं। शिवसेना कैडर बेस पार्टी है। विदर्भ के कुछ हिस्सों को छोड़कर राज्य में शिवसेना का नेटवर्क गांव तक फैला है।
इससे पहले छगन भुजबल, नारायण राणे और राज ठाकरे ने शिवसेना से बगावत की थी। तब उन्हें जमीन से जुड़े शिवसैनिकों का विरोध झेलना पड़ा था। भुजबल और राणे के साथ गए बागियों में एक-दो को छोड़कर कोई चुनाव जीत भी नहीं पाए थे। शिंदे के साथ जानेवाले बागियों को भी यह अंदेशा था। इस निर्णय से बगावत करने वाले विधायकों को अब समझाने में परेशानी कम होगी शान से कह सकते हैं कि शिवसेना का सामान्य कार्यकर्ता राज्य का मुख्यमंत्री है।
शिवसेना किसकी है? यह सवाल शिवसैनिकों को परेशान करता रहेगा। आने वाले दिनों में और कुछ विधायक, सांसद और जिला प्रमुख भी सत्ता से जुड़ेंगे। ऑपरेशन के बाद उद्धव ठाकरे के लिए दौड़-भाग करना आसान नहीं रहा। वहीं आदित्य ठाकरे के नेतृत्व की भी अपनी एक सीमा है। शिवसेना का चिह्न धनुष बाण भी खतरे में है। बालासाहब का दौर खत्म होने के बाद भाजपा संगठन कौशल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करिश्मे के बल पर शिवसेना को पछाड़कर नंबर वन बनी।
2019 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना के 18 सांसद चुनकर आए थे। यह सांसद भी भलीभांति जानते हैं कि बगैर भाजपा का साथ लिए उनकी राह आसान नहीं है। एकनाथ शिंदे के पास आज दो सांसद हैं, यह संख्या बढ़ सकती है। भाजपा यह अच्छी तरीके से जानती है कि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र का भविष्य में चेहरा नहीं हो सकते हैं।
शिंदे के साथ जाने वाले अधिकतर विधायक मराठवाडा और ठाणे से हैं। भाजपा के साथ रहकर शिंदे आगामी विधानसभा चुनाव में संतोषजनक संख्या अर्जित करते हैं, तो भाजपा के लिए सत्ता की राह आसान होगी। बरसों से शिवसेना मुंबई मनपा पर राज कर रही है। 2017 में हुए मुंबई मनपा चुनाव में भाजपा ने शिवसेना के मुकाबले में दो सीटें कम पायी थीं। एकनाथ शिंदे के समर्थकों का मुंबई मनपा पर प्रभाव है।
Created On :   30 Jun 2022 10:07 PM IST