मां के हिस्से के मुआवजे पर बेटों का अधिकार जायज, रेलवे ट्रिव्यूनल का फैसला खारिज 

Right of sons on compensation of mothers share is justified, Railway Tribunals decision rejected
मां के हिस्से के मुआवजे पर बेटों का अधिकार जायज, रेलवे ट्रिव्यूनल का फैसला खारिज 
हाईकोर्ट मां के हिस्से के मुआवजे पर बेटों का अधिकार जायज, रेलवे ट्रिव्यूनल का फैसला खारिज 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। मां के निधन के बाद बच्चे रेलवे से मिले मुआवजे की राशि पर दावा कर सकते हैं। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में यह बात स्पष्ट की है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने रेलवे ट्रिब्यूनल के उस आदेश को खारिज कर दिया है जिसके तहत बेटे को मां व दादी को मिले मुआवजे पर दावा करने के लिए अपात्र ठहरा दिया गया था। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा था कि रेलवे दुर्घटना में पिता की मौत के चलते मां को मिले मुआवजे के बाद बेटों को मुआवजे की राशि में से उनका हिस्सा मिल गया है। इसलिए वे मां व दादी के मुआवजे के हिस्से का दावा करने के लिए पात्र नहीं है। दरअसल याचिकाकर्ता किरण व संतोष पायोगेडे के पिता दामोदर की चलती ट्रेन से गिरने के चलते मौत हो गई थी। इसके बाद दामोदर की मां, पत्नी व बच्चों ने खुद को आश्रित बता कर  रेलवे ट्रिब्यूनल में मुआवजे के लिए दावा दायर किया था। ट्रिब्यूनल ने सामूहिक रुप से इस मामले में चार लाख रुपए का मुआवजा प्रदान किया था। इसके बाद जब मुआवजे की चार लाख रुपए की राशि में से डेढ लाख रुपए दामोदर की पत्नी और उनकी मां को एक लाख रुपए भेजे गए। पैसे उन तक पहुंचने से पहले ही इन दोनों की मौत हो गई थी इसलिए भेजी गई रकम वापस आ गई। इसके मद्देनजर दामोदर के बेटों ने रेलवे ट्रिब्यूनल के सामने आवेदन किया कि उन्हें मुआवजे की वह राशि प्रदान की जाए जो उनकी मां व दादी को आवंटित की गई है। क्योंकि वे उनके उत्ताराधिकारी है। लेकिन ट्रिब्यूनल ने इस दावे को खारिज कर दिया। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा कि मृतक के बेटे अब आश्रित नहीं है। इसके अलावा उन्हें अपने हिस्से का मुआवजा मिल गया है। इसलिए अब वे मुआवजे के लिए पात्र नहीं हैं। इसके अलावा मुआवजे की मांग को लेकर देरी से आवेदन दायर किया गया है।ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ बेटों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। न्यायमूर्ति एसके शिंदे के सामने इस मामले की सुनवाई हुई। दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी मां व दादी के कानूनी तौर पर प्रतिनिधि है। इसलिए यह कहना सही नहीं है कि बेटे अपनी मां के उत्तराधिकारी के रुप में उनके हिस्से के मुआवजे के हकदार नहीं हैं। इस तरह न्यायमूर्ति ने ट्रिब्यूनल के आदेश को खारिज कर दिए और ट्रिब्यूनल को इस मामले की नए सिरे से सुनवाई करने को कहा।  

 

Created On :   24 Jun 2022 9:12 PM IST

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