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जनप्रतिनिधत्व कानून में स्थिति साफ नहीं, तुरंत नहीं खत्म होगी राणा की सदस्यता, पहले भी रद्द हो चुका है सर्टिफिकेट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। अमरावती से सांसद नवनीत कौर राणा के जाति प्रमाणपत्र को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा अवैध ठहराए जाने के बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता खत्म होने को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इन परिस्थितियों में अब उनके पास क्या कानूनी विकल्प बचते है। इस बारे में कानून के जानकारों के कहना है कि जन प्रतिनिधित्व कानून में एक सांसद के जाति प्रमाण पत्र के रद्द होने के बाद क्या किया जाए। इस विषय पर स्थित साफ नहीं है। इसलिए सदस्यता रद्द होगी अथवा दूसरे क्रमांक के उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाएगा या फिर वहां उपचुनाव होंगे। यह कानूनी बहस का विषय हो सकता है, कानून के विशेषज्ञयो का कहना है कि राणा के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प अभी बचा है। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी का कहना है कि उच्च न्यायालय के फैसले के चलते तत्काल राणा की लोकसभा की सदस्यता को लेकर कोई खतरा पैदा नहीं होगा। क्योंकि अभी भी एक चुनावी याचिका हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ के सामने प्रलंबित है। इसलिए इस याचिका पर क्या फैसला आता है। अब सबकुछ इस पर निर्भर करता है। इसके अलावा राणा के पास अभी भी सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प बचा है।
राज्य के पूर्व महाधिवक्ता व संविधान विशेषज्ञ श्रीहरि अणे के मुताबिक जातिप्रमाणपत्र रद्द होने के बाद सांसद नवनीत कौर राणा के पास सर्वोच्च न्यायालय जाने का का एक विकल्प है। इस मामले में पुनर्विचार याचिका उतनी कारगर नहीं होगी। क्योंकि इसका दायरा सीमित होता। इस याचिका में मुख्य रूप से क्षेत्राधिकार,कानून व तथ्य से जुड़ी खामी को देखा जाता है। यदि कोर्ट के फैसले में यह खामी दिखती हैं तो पुनर्विचार याचिका हो सकती है। जहां तक बात जातिप्रमाणपत्र को लौटाने के लिए राणा को 6 सप्ताह का समय दिए जाने कि है तो अब इसका कोई बहुत मतलब नहीं है। क्योंकि कोर्ट ने जातिप्रमाणपत्र को अवैध ठहरा दिया है। ऐसे जातिप्रमाणपत्र को सौंपने के लिए समय मांगने का मेरी राय में कोई अर्थ नहीं है। और इसका केस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस फैसले के असर के बारे में श्री अणे ने कहा कि राणा के खिलाफ नागपुर खंडपीठ के सामने एक चुनावी याचिका भी प्रलंबित है। इसलिए अब जातिप्रमाणपत्र रद्द करने से जुड़े फैसले को चुनावी याचिका की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति को दिखाया जाएगा। अब न्यायमूर्ति इस मामले को कैसे लेते हैं उन पर निर्भर करता है।
राणा के विषय में चुनाव आयोग के पास की गई शिकायतों के बारे में श्री अणे ने कहा कि चुनाव आयोग कोई कोर्ट नहीं है। उसके पास जांच के लिए कोई व्यवस्था भी नहीं है। उम्मीदवार को लेकर की गई शिकायत झूठ है अथवा सही। इसके पीछे चुनाव नहीं जजाता है। क्योंकि इसे सिद्ध करना पड़ता है। चुनाव से पहले उठाई गई आपत्तियों के बारे में आयोग तथ्यों की प्रथम दृष्टया पड़ताल करता है। जैसे किसी उम्मीदवार के वयस्क होने पर सवाल उठाया जाए तो आयोग इसे देखेगा। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति बी जी कोलसे पाटिल का कहना है कि राणा के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार है। जहां जब तक इस मामले की सुनवाई पूरी होने तक राणा का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। इस दौरान सिर्फ संसद में उनका मताधिकार प्रभावित हो सकता है। वैसे यदि चुनाव आयोग चाहे तो इस मामले में त्वरित कार्रवाई कर उनकी लोकसभा की सदस्यता को रद्द करने की दिशा में कदम उठा सकता है। पर अपने देश में कहा सबकुछ कानून के हिसाब से चलता है। इस बारे में पूर्व एडिसनल सॉलिसिटर जनरल राजेन्द्र रघुवंशी के मुताबिक हाई कोर्ट के इस फैसले से सीधे राणा की सदस्यता रद्द नहीं होगी। इसके लिए आवेदन करना पड़ेगा। राणा के पास अब सिर्फ उपरी अदालत में जाने का विकल्प बचा है। वहीं अधिवक्ता उदय वरुन जेकर के मुताबिक स्थानीय चुनाव के निकाय के बारे में स्थित साफ है कि यदि उम्मीद वार का जाति प्रमाण पत्र अवैध पाया जाता है तो दुसरे क्रमांक के उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है। इसका कानून मेंलेकिन सांसद को लेकर जनप्रति निधित्व कानून में स्थित साफ नहीं है। लेकिन सांसद के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प रहता है।
पहले भी हाईकोर्ट में रद्द हो चुका है नवनीत राणा का जाति प्रमाण पत्र
शिवसेना के पूर्व सांसद आनंदराव अडसुल ने बाम्बे हाईकोर्ट के अमरावती सीट से निर्दलीय सांसद ने नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र को रद्द करने का फैसले का स्वागत किया है। मंगलवार को दैनिक भास्कर से बातचीत में अडसुल ने दावा करते हुए कहा कि नवनीत फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर दोनों बार साल 2014 और साल 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ी हैं। अडसुल ने कहा कि नवनीत ने साल 2014 में राकांपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था। उस समय उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए एक स्कूल से अपने पिताजी के नाम से लिविंग सर्टिफिकेट लिया था। उसी के आधार पर नवनीत ने जाति प्रमाणपत्र बनवाया था। लेकिन स्कूल अस्तित्व में ही नहीं था। जिसके बाद मैंने उनके जाति प्रमाणपत्र को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जिस पर पर हाईकोर्ट ने साल 2015 में उनके जाति प्रमाणपत्र अवैध करार दिया था। इसके बाद नवनीत ने साल 2017 में अपने दादाजी के नाम पर सर्टिफिकेट तैयार करवाया। उसी के आधार पर उन्होंने अपना नया जाति प्रमाणपत्र बनावाया। इसी जाति प्रमाणपत्र का उन्होंने साल 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए इस्तेमाल किया था। लेकिन अब अदालत में साबित हो गया है कि उनका जाति प्रमाणपत्र फर्जी है। नवनीत के जाति प्रमाणपत्र होने के बाद अमरावती सीट पर उपचुनाव की संभावना को लेकर अडसुल ने कहा कि हम इस संबंध में निर्वाचन आयोग के पास जाएंगे। अब देखते हैं कि निर्वाचन आयोग की क्या राय बनती है।
प्रमाणपत्रों की जांच नहीं करता चुनाव आयोग
प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि निर्वाचन आयोग आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के जाति प्रमाणपत्र की वैधता की जांच नहीं करता है। अधिकारी ने कहा कि चुनाव आयोग के पास उम्मीदवारों के जाति प्रमाण पत्र जांच करने की कोई प्रणाली नहीं है। यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि संबंधित उम्मीदवार ने जाली दस्तावेजों के आधार पर जाति प्रमाण पत्र बनवाया है तो वह अदालत में जाता है। अधिकारी ने कहा कि चुनाव लड़ते समय उम्मीदवारों को हलफनामे में चल और अचल संपत्ति समेत कई ब्यौरा देना पड़ता है। पर चुनाव आयोग के पास उम्मीदवार के हलफनामे की जानकारी की वैधता को जांचने के लिए कोई तंत्र नहीं है। चुनाव आयोग उम्मीदवार के जाति प्रमाण पत्र की वैधता की भी जांच नहीं करता है।
Created On :   8 Jun 2021 9:07 PM IST