सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामला : सबूतों के अभाव में सभी 22 आरोपी बरी, फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी

Soharabuddin encounter : All 22 accused relief in absence of evidence
सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामला : सबूतों के अभाव में सभी 22 आरोपी बरी, फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी
सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामला : सबूतों के अभाव में सभी 22 आरोपी बरी, फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी
हाईलाइट
  • फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा
  • भाई देगा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
  • सीबीआई की विशेष अदालत ने किया सभी 22 आरोपियों को बरी

डिजिटल डेस्क, मुंबई। सीबीआई की विशेष अदालत ने पर्याप्त सबूतों के अभाव में सोहराबुदद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी व तुलसीराम प्रजापति मुठभेड़ मामले से जुड़े सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया है। शुक्रवार को सीबीआई कोर्ट के विशेष न्यायाधीश एसजे शर्मा ने सोहराबुद्दीन व प्रजापति के परिजनों से कहा कि अदालत को इस बात का खेद है कि इस मामले में तीन लोगों की जान गई, लेकिन कानूनी प्रणाली ऐसी है कि न्यायालय सिर्फ सबूतों के आधार पर ही अपना फैसला कर सकता है। इस प्रकरण में कोर्ट के सामने पर्याप्त सबूत नहीं पेश किए गए हैं। लिहाजा सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया जाता है। मामले से जुड़े 22 लोगों में से 21 आरोपी गुजरात व राजस्थान के पुलिसकर्मी थे। ये लोग मुकदमे की सुनवाई के दौरान जमानत पर जेल से बाहर थे। 

गवाही से मुकरे 92 गवाह
13 साल तक चले इस मामले में कई मोड़ देखने को मिले। जिसके तहत मामले के 210 गवाहों में 92 गवाह अपने बयान से मुकर गए और इसी बीच मामले में आरोपी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह को साल 2014 में बरी कर दिया गया। शाह को जुलाई 2010 में गिरफ्तार किया गया था। 

आरोप साबित करने में विफल रही सीबीआई
शुक्रवार को अपना फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश शर्मा ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों पर लगे आरोपों को साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा है। न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष भी साबित नहीं कर पाया कि सोहराबुद्दीन, कौसर बी व तुलसीराम प्रजापति को मारने की साजिश रची गई थी और मामले से जुड़े आरोपियों ने इसमे भूमिका निभाई थी। न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि इस बात से इंकार नहीं किया जा रहा है कि सोहराबुद्दीन, कौसर बी व तुलसीराम प्रजापति की हत्या हुई है, लेकिन अभियोजन पक्ष ने जो सबूत पेश किए हैं, उसके आधार पर प्रकरण से जुड़े आरोपियों को सोहराबुद्दीन, कौसर बी व तुलसीराम प्रजापति की मौत के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। 

सांगली से गिरफ्तार हुए थे तीनों
गौरतलब है कि पुलिस ने 22 नवंबर 2005 को महाराष्ट्र के सांगली इलाके से सोहराबुद्दीन, कौसर बी व तुलसी राम प्रजापति को गिरफ्तार किया था। तीनों हैदराबाद से लौटे रहे थे। इसके बाद सोहराबुद्दीन व उसकी पत्नी को अलग गाड़ी में ले जाया गया था जबकि प्रजापति को दूसरे गाड़ी में। सोहराबुद्दीन 26 नवंबर 2005 में पुलिस मुठभेज मारा गया था। वहीं प्रजापति 27 दिसंबर 2006 को गुजरात व राजस्थान पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारा गया था। बाद में इस मामले में सीबीआई ने मामले की जांच शुरु की कुल 22 आरोपियों के खिलाफ सीबीआई कोर्ट में मुकदमा चला इसमे से 21 पुलिसकर्मी थे। जबकि एक गुजरात में स्थित फार्म हाउस का मालिक था।  मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष दस्तावेजी सबूतों और गवाहों के बयानों से मामले से जुड़े 22 आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र रचने का आरोप साबित नहीं कर पाया है। अदालत सिर्फ परिस्थितिजन्य व सुनी सुनाई बातों को सबूत मानते हुए अपना फैसला नहीं सुना सकती है। 

न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस ने दावा किया था कि सोहराबुद्दीन का संबंध आतंकी संगठन ‘लश्कर ए तैयबा से था और वह गुजरात के तत्कालिन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की साजिश रच रहा था।  किंतु अभियोजन पक्ष अथक प्रयासों के बाद भी यह साबित नहीं कर सका। न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष का काम गवाहों को कोर्ट में लाना है। कोर्ट में आकर यदि गवाह अपने बयान से मुकर जाए तो वह क्या करे? अभियोजन पक्ष गवाहों को अपने बयान पर कायम रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। न्यायाधीश ने कहा कि मैंने काफी बारीकी से मामले से जुड़े सबूतों पर गौर किया, लेकिन आरोपियों पर आपराधिक षडयंत्र का आरोप साबित नहीं होता है। 

अमित शाह भी थे आरोपी 
शुरुआत में सीबीआई ने जब इस मामले की जांच शुरु की थी तो इस प्रकरण में कुल 38 आरोपी थे। जिसमें गुजरात के पूर्व गृहराज्य मंत्री अमित शाह, राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया, पूर्व आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा व अन्य आरोपी पुलिस कर्मियों का समावेश था। कोर्ट में मामले को लेकर 210 सबूत पेश किए गए। इसमें से 92 गवाह अपने बयान से मुकर गए। इस बीच सीबीआई कोर्ट ने सबूतों के अभाव में मामले से जुड़े 38 में से 16 आरोपियों को बरी कर दिया। शुरुआत में गुजरात सीआईडी ने मामले की जांच शुरु की थी। साल 2010 में सीबीआई ने मामले की जांच अपने हाथ में ली। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रकरण को सुनवाई के लिए गुजरात से मुंबई स्थानांतरित किया गया। 

फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगा सोहराबुद्दीन का भाई
मुठभेड़ में मारे गए सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन सीबीआई कोर्ट के फैसले से अप्रसन्न नजर आए। मीडिया के सामने दिए गए बयान रुबाबुद्दीन ने पहले फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश की ईमानदारी पर सवाल उठाया फिर कहा कि वे इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। कोर्ट में मौजूद रुबाबुद्दीन अदालत का फैसला आने के बाद भावुक नजर आए और फिर कोर्ट से बाहर आने के बाद फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही।

मामला एक नजर में 
-    26 नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन शेख की मुठभेड़ में मौत
-    29 नवंबर 2005 को कौसर बी मुठभेड़ में मारी गई
-    27 दिसंबर को गुजरात-राजस्थान सीमा के पास तुलसीराम प्रजापति की मौत
-    जनवरी 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौपी जांच
-    23 जुलाई 2010 को सीबीआई ने मामले को लेकर गुजरात के तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया, तत्कालीन एटीएस प्रमुख डीजी वंजारा सहित कई वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों से सहित 38 आरोपियों के खिलाफ दायर कोर्ट में दायर किया गया आरोपपत्र
-    25 जुलाई 2010 को अमित शाह की हुई गिरफ्तारी
-    30 दिसंबर 2014 को सीबीआई कोर्ट ने अमित शाह को मामले से किया बरी
-    अक्टूबर 2017 में 22 आरोपियों के खिलाफ सीबीआई कोर्ट में  शुरु हुआ मुकदमा
-     कोर्ट में 210 गवाहों की हुई गवाही, बाद में 92 अपने बयान से मुकरे
-    21 दिसंबर 2018 को सीबीआई कोर्ट ने सभी गवाहों को किया बरी
 

Created On :   21 Dec 2018 12:28 PM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story