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सुलखमा - जहां आज भी चलता है चरखा, ऊन के सूत से बनते हैं कंबल

डिजिटल डेस्क सतना। जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर रामनगर तहसील के सुलखमा गांव के 14 ऐसे घर हैं, जहां आज भी सूत कातने के लिए चरखा चलाया जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्वेदशी भावना से पे्ररित पाल समुदाय की युवा पीढ़ी को यह सौगात वस्तुत: बुजुर्गों से विरासत में मिली है। स्वावलंबन की यह सीख परंपरागत रोजगार का साधन भी है।
सूत से बनाते हैं कंबल
सुलखमा के पाल परिवार परंपरागत तौर पर चरखे से सूत कातकर देशी ऊन और फिर इसी ऊन से कंबल बनाते हैं। भेड़ों के बाल काट कर बालों की धुनाई की जाती है। फिर पोनी बनाकर सूत काता जाता है। घर के काम काज निपटाने के बाद सूत कातने का काम प्राय: महिलाएं करती हैं। जबकि कंबल बना कर बाजार ले जाने का जिम्मा पुरुषों के हाथ होता है। रामभान पाल कहते हैं, जब से होश संभाला घर में यही देख रहे हैं। तकरीबन 8 से 10 दिन में एक कंबल बनता है। प्रति कंबल पर हजार रुपए मिल जाते हैं। गोपाल पाल बताते हैं, पाल बाहुल्य पूरे गांव के हर घर में चरखे चलते थे लेकिन रोजगार की तलाश में पलायन और हुनरमंद सयानों के शारीरिक तौर पर शिथिल हो जाने के कारण अब चरखे महज गांव के 14 घरों में सिमट कर रह गए हैं।
सरकारी मदद की जरुरत :—————-
सुलखमा की ही 65 वर्षीया रुवसिया पाल के मुताबिक यह हुनर वह अपने साथ मायके से लाई थीं। युवा धीरज पाल कहते हैं,सरकारी मदद मिले तो ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग से ग्राम्य स्वावलंबन की राह सशक्त हो सकती है। आर्थिक मदद से मशीनें मिल जाएं तो समय और श्रम दोनों की बचत कर आय बढ़ाई जा सकती है।अभी 8 से 10 दिन में बनने वाला एक कंबल तब महज एक या फिर 2 दिन में तैयार किया जा सकता है।
Created On :   2 Oct 2021 3:38 PM IST