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23 हजार 149 करोड़ 75 लाख की पूरक मांगे पेश, दोनों सदनों में आरक्षण सीमा 50 फीसदी से बढ़ाने का प्रस्ताव पारित
डिजिटल डेस्क, मुंबई। विधानमंडल के दो दिवसीय मानसून सत्र के पहले दिन सोमवार को राज्य सरकार की तरफ से 23 हजार 149 करोड़ की पूरक मांगे पेश की गई। इनमें 6 हजार 895 करोड़ रुपए की मांग अनिवार्य खर्च की हैं। इन पूरक मांगों को मंगलवार को चर्चा के बाद मंजूर किया जाएगा। केंद्र सरकार के उदय योजना पर अमल के लिए कर्जों की वापस के वास्ते 4 हजार 960 करोड़, जल जीवन मिशन के लिए 3 हजार 800 करोड़, जबकि कोरोना की दवाओं व अन्य सामग्री की खरीदारी के 1 हजार 402 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। विधायकों को विकास निधी के लिए 310 करोड़ उपलब्ध कराया गया है। उपमुख्यमंत्री व वित्तमंत्री अजित पवार ने सोमवार को विधानसभा में वर्ष 2021-22 के लिए 23 हजार 149 करोड़ 75 लाख की पूरक मांगे पेश की। पूरक मागों में स्वास्थ्य, पीडब्लूडी, जलापूर्ति-स्वच्छता व सामाजिक न्याय विभाग के लिए भरपूर प्रावधान किया गया है। पूरक मागों में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान के लिए 1 हजार 841 करोड़ का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है। नागपुर-मुंबई समृद्धि महामार्ग के लिए लिए गए कर्ज के ब्याज की भरपाई के लिए 1 हजार 200 करोड़, हायब्रीड एन्यूटी के तहत सड़के व पुल बनाने के लिए 1 हजार 150 करोड़, श्रावण बाल सेवा राज्य सेवानिवृत्त वेतन योजना के लिए 600 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। राज्य में महामार्गो के लिए निर्माण के लिए 450 करोड़, संजय गांधी निराधार अनुदान योजना, आंगनवाडी कर्मचारियों के मानधन के लिए 400-400 करोड़ रुपए का प्रावधान पूरक मांगों में किया गया है।
विभागवार पूरक मांगे
सार्वजनिक स्वास्थ्य 3 हजार 644 करोड़
सार्वजनिक निर्माण कार्य 3 हजार 40 करोड़
जलापूर्ति-स्वच्छता 3 हजार करोड़
सामाजिक न्याय 1 हजार 843 करोड़
उद्योग, ऊर्जा, कामगार 856 करोड़
सहकार, विपणन 762 करोड़
मेडिकल शिक्षा 628 करोड़
महिला व बालविकास 628 करोड़
गृह 397 करोड़
नगरविकास 325 करोड़
विधानमंडल के दोनों सदनों में आरक्षण सीमा 50 फीसदी से बढ़ाने का प्रस्ताव पारित
वहीं महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों ने सोमवार आरक्षण की 50 फीसदी सीमा शिथिल करने से जुड़ा प्रस्ताव मंजूर कर लिया गया। राज्य सरकार यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगी। दोनों सदनों में प्रदेश के सार्वजनिक निर्माण कार्य मंत्री तथा मराठा आरक्षण उपसमिति के अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने सुप्रीम कोर्ट में 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को शिथिल कर मराठा समाज को आरक्षण देने के लिए केंद्र सरकार को सिफारिश करने का प्रस्ताव पेश किया। विधानसभा में विपक्ष की गैरमौजूदगी में जबकि विधान परिषद में विपक्ष के हंगामे के बीच ध्वनिमत से पारित कर लिया गया। इस दौरान विधान परिषद में विपक्ष के सदस्य ओबीसी आरक्षण के प्रस्ताव को लेकर वेल में हंगामा कर रहे थे। विधान परिषद में मराठा आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष ने जमकर हंगामा किया। मराठा आरक्षण पर विपक्ष की नारेबाजी और शोरशराबे के कारण सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित हुई। जबकि इसी मुद्दे को लेकर विपक्ष के सदस्य दो बार वेल में आ गए। सोमवार को सदन में भाजपा समर्थित सदस्य विनायक मेटे ने कार्य स्थगन प्रस्ताव के जरिए मराठा आरक्षण का मुद्दा उठाया। सभापति रामराजे नाईक-निंबालकर ने उन्हें पांच मिनट बोलने की अनुमति दी। लेकिन मेटे मराठा आरक्षण के इतिहास का उल्लेख करने लगे। इस बीच संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब ने कहा कि मेटे को यह बताना चाहिए कि मराठा आरक्षण का मुद्दा कार्य स्थगन प्रस्ताव कैसे हुआ? सत्ताधारी दलों के सदस्यों ने भी मेटे के भाषण को लेकर आपत्ति जताई। इस पर सभापति ने मेटे को भाषण समाप्त करने के लिए कहा। इसके बाद सभापति ने कामकाज आगे बढ़ाने का प्रयास किया। इससे नाराज विपक्ष के सदस्य वेल में आकर हंगामा करने लगे। इस कारण सभापति ने सदन की कार्यवाही को 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी। सदन का कामकाज फिर शुरू होने के बाद विपक्ष के सदस्य दोबारा वेल में आए गए, लेकिन सभापति ने कामकाज को जारी रखा।
क्या है प्रस्ताव में
प्रस्ताव में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2021 के अपने फैसले में महाराष्ट्र राज्य विधानमंडल में एकमत से मंजूर एसईबीसी वर्ग के लिए राज्य के शिक्षा संस्थानों और सरकार नौकरियों में आरक्षण को अवैध ठहराते हुए कहा कि आरक्षण की 50 फीसदी सीमा का ख्याल नहीं रखा गया। यानी राज्य में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े मराठा समाज को आरक्षण देना तब तक असंभव होगा, जब तक कि केंद्र सरकार भारत के संविधान में उचित संशोधन करके 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा में ढील नहीं देती। राज्य में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा की बाधा को दूर करना आवश्यक है। राज्य सरकार केंद्र सरकार से भारत के संविधान में उचित संशोधन करने के लिए आरक्षण देने की सिफारिश करती है। गौरतलब है कि संविधान के अनुसार देश में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता।
एसईबीसी की आयु सीमा 43 वर्ष
राज्य सरकार ने एसईबीसी अंतर्गत आने वाले उम्मीदवारों की आयु सीमा को बढ़ाकर 43 वर्ष करने का फैसला किया है। मंत्री अशोक चव्हाण ने इस बात की जानकारी दोनों सदनों में दी। चव्हाण ने कहा कि यह फैसला मुख्यमंत्री की मंजूरी के बाद लिया गया है।
Created On :   5 July 2021 7:57 PM IST