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बॉम्बे आईआईटी से कहा- फीस जमा करने में असमर्थ रहे छात्र को प्रवेश से वंचित नहीं किए जाए
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक असाधारण निर्देश पारित करते हुए बॉम्बे आईआईटी को आदेश दिया कि वह अनुसूचित जाति के छात्र को इस आधार पर उसे आवंटित सीट से वंचित न करें, जो केवल ऑनलाइन शुल्क भुगतान की प्रक्रिया में तकनीकी त्रुटियों के कारण समय पर अपनी सीट स्वीकृति शुल्क जमा करने में विफल रहा है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण (जेओएसएए) को छात्र के लिए अन्य छात्र के प्रवेश को बाधित किए बिना एक सीट निर्धारित करने का निर्देश देते हुए कहा कि यह न्याय का एक बड़ा उपहास होगा यदि आईआईटी परीक्षा क्वालीफाई करने के बाद महज तकनीकी कारणों से शुल्क जमा नहीं कर पाने के चलते उसे आईआईटी में प्रवेश से से वंचित कर दिया जाता है। कोर्ट ने कहा कि अगर (कोई अन्य) सीट खाली हो जाती है तो इस सीट का निर्माण नियमित प्रवेश के अधीन होगा।
पीठ ने जोसा द्वारा आज अदालत को यह सूचित किए जाने के बाद आदेश पारित किया कि सभी सीटें भर दी गई हैं और कोई खाली सीट उपलब्ध नहीं है। अदालत छात्र के बचाव में तब आई जब यह बताया गया कि छात्र तकनीकी खराबी के कारण समय पर फीस का भुगतान करने में असमर्थ रहा, जिसके लिए वह जिम्मेदार नहीं था। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को इस तरह का रुख नहीं अपनाना चाहिए बल्कि सामाजिक जीवन की वास्तविकताओं और मुद्दों की जमीनी हकीकत को समझना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि छात्र के पास पैसे नहीं थे तो बहन को पैसे ट्रांसफर करने पड़े और फिर तकनीकी दिक्त आई। लड़के ने परीक्षा पास कर लही है। अगर यह उनकी लापरवाही होती को हम आपसे नहीं पूछते। याचिकाकर्ता ने संयुक्त प्रवेश परीक्षा 2021 पास की है और अखिल भारतीय रैंक (सीआरएल) 25,894 और अनुसूचित जाति रैंक 864 हासिल की है। याचिका के अनुसार उसे 27 अक्टूबर को सिविल इंजीनियरिंग शाखा में आईआईटी बॉम्बे में एक सीट आवंटित की गई। सीट आवंटन के बाद याचिकाकर्ता ने 29 अक्टूबर को संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण की वेबसाइट पर लॉग इन किया और आवश्यक दस्तावेज अपलोड किए। हालांकि, याचिकाकर्ता के पास सीट स्वीकृति शुल्क का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं थे। उसके बाद उसकी बहन ने 30 अक्टूबर को उसे पैसे ट्रांसफर कर दिए और याचिकाकर्ता ने लगभग 10 से 12 बार भुगतान करने की कोशिश की, लेकिन ऐसा करने में असफल रहा। याचिकाकर्ता ने राहत के लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय का रुख किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने एक तकनीकी दृष्टिकोण लिया और शीर्ष अदालत के समक्ष राहत की अपील करने के लिए कहते हुए उसकी रिट याचिका को खारिज कर दिया था।
Created On :   22 Nov 2021 8:29 PM IST