सुप्रीम कोर्ट : महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग खारिज

Supreme court: Rejected demand for imposition of Presidents rule in Maharashtra
सुप्रीम कोर्ट : महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग खारिज
सुप्रीम कोर्ट : महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग खारिज

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग वाली दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा कि वे यह मांग राष्ट्रपति से कर सकते हैं। इसके लिए कोर्ट नहीं है। याचिकाकर्ता विक्रम गहलोत, गौतम शर्मा, ऋषभ जैन दिल्ली के रहने वाले है और बताया जाता है कि यह सभी भाजपा समर्थित है। याचिका में सुशांत सिंह के आत्महत्या मामले की जांच में मुंबई पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए थे। याचिका में केवल मुंबई की घटनाओं का जिक्र किया गया था। इतना ही नहीं याचिका में यह भी कहा गया था कि यदि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जा सकता है, तो कम से कम मुंबई और इसके आस-पास के क्षेत्र में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी कुछ दिनों के लिए सेना को सौंपी जानी चाहिए। इस पर मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने इन याचिकाकर्ताओं को यह पूछते हुए फटकार लगाई कि क्या वे जानते है कि महाराष्ट्र कितना बड़ा राज्य है? अनुच्छेद 352 के हवाले से याचिकाकर्ता के वकील का कहना था कि कोर्ट मामले में हस्तक्षेप करें, लेकिन शीर्ष अदालत ने याचिका पर सुनवाई से ही इंकार कर दिया।

ओबीसी की जातिवार जनगणना - जनहित याचिका पर केन्द्र और राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को नोटिस

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने देश में 2021 की होने वाली जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की जाति आधारित गणना को शामिल करने के संबंध में दायर एक जनहित याचिका पर केन्द्र सरकार और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को नोटिस जारी किया है। प्रधान न्यायाधीश शरद बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले में चार सप्ताह के भीतर जवाब तलब किया है। याचिका में कहा गया है कि ओबीसी की अंतिम जनगणना वर्ष 1931 में हुई थी। इसके बाद आज तक ओबीसी की सटीक संख्या को सूचीबद्ध करने वाली कोई जनगणना नहीं की गई है, जो कि सामाजिक न्याय और संविधान के अनुच्छेद 15 (4), 16 (4), 243 (डी) और अनुच्छेद 243 (टी) के संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता टिंकू सैनी ने याचिका में संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया है। जिसमें यह देखा गया है कि विशेष रुप से अन्य पिछड़ा वर्ग की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक डेटा की अनुपलब्धता का जिक्र किया है। समिति के मुताबिक लोगों के समूहों को अलग-अलग श्रेणियों में शामिल करने के लिए कोई स्वीकृत तंत्र नहीं है, इसलिए पिछड़ी जाति-समुदायों की मौजूदा सूची गलत है। याचिका में कहा है कि ओबीसी का उपलब्ध डाति-वार डेटा पुराना और कालग्रस्त है और सामाजिक न्याय प्राप्त करने और संवैधानिक अनिवार्यता की पूर्ति नहीं करता। इसलिए 2021 की जनगणना में ओबीसी की गणना होनी चाहिए। यह जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अधिवक्ता आकृति जैन के माध्यम से और वकील सोनिया सैनी द्वारा दायर की गई है।
 

 
 
 
 

Created On :   16 Oct 2020 8:00 PM IST

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