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कारखानों की किस्मत - नया उद्योग कोई लगा सके इसके लिए अधिकृत रूप से एक भी प्लॉट खाली नहीं

सिक यूनिट के दायरे में भी कोई नहीं
दावा : रिछाई-अधारताल में 400 यूनिट रनिंग कंडीशन में
हकीकत : 355 उद्योगों को ही चालू बता रहे बिजली के बिल
डिजिटल डेस्क जबलपुर । जिले के पुराने औद्योगिक केन्द्र अधारताल-रिछाई में कोई नया व्यक्ति यदि उद्योग लगाना भी चाहे तो नहीं लगा सकता है। इसकी वजह यह है कि यहाँ पर कोई भी नया प्लॉट नये आदमी के लिए उपलब्ध नहीं है। इसी तरह कोई सिक बीमार या कमजोर उद्योग को खरीदकर उसे चलाना चाहे तो कोई भी ऐसी फैक्ट्री अधिकृत रूप से बीमार नहीं है। जिला उद्योग विभाग का रिकॉर्ड कहता है कि यहाँ पर सब कुछ बेहतर है। एकदम फील गुड के दायरे में है लेकिन हकीकत मौके पर कुछ अलग नजर आती है। दोनों केन्द्रों में 400 रनिंग यूनिट पर दर्जनों बंद नजर आती हैं। कई में तो इतने बदतर हालात हैं कि गेट पर लगे तालों में भी जंग लग गया है। बिजली बिल जिन फैक्ट्रियों का जमा किया जा रहा है तो उसके अनुसार केवल 355 इकाइयाँ ही हैं, जो अभी फिलहाल चलती फैक्ट्रियों के दायरे में हैं। इस तरह विभाग के दावे और मौके के सच्चाई में कुछ अंतर नजर आता है।
कई सालों या लंबे अरसे से बंद इकाइयों के विषय में उद्योग विभाग कहता है कि हम लगतार इसकी समीक्षा करते हैं कि यूनिट चल रही है या नहीं। कुछ में काम ही सीजनेबल यानी 4 से 6 माह का होता है तो बाद के महीनों में बंद करना स्वाभाविक है, लेकिन इस तरह की फैक्ट्री को बंद नहीं कहा जा सकता है। कुछ में तकनीकी पहलू भी हैं जैसे नई पीढ़ी इसे आगे न बढ़ाकर उस व्यापार को नहीं करना चाहती है, इसे सिक नहीं कहा जा सकते हैं। कई तरह की समस्याएँ और कानूनी पहलू भी होते हैं जिनसे गुजरना पड़ता है। उद्योग बंद न रहे और लोगों को रोजगार मिलता रहे इसके लिए समीक्षा कर हम बिजली बिल, जीएसटी की समीक्षा करते हैं ताकि इकाइयों के विषय में पता चलता रहे। फिलहाल केवल 12 यूनिट ऐसी हैं जो कानूनी प्रक्रिया में चल रही हैं। इनका अलग-अलग स्थितियों में समाधान स्तर पर अभी तक नहीं पहुँच सका है।
8सीजनेबल व्यापार के नाम पर वर्षों तक लगे रहते हैं उद्योगों पर ताले
सिक या बीमार यूनिट क्या
अधिकृत रूप से कोई भी यूनिट बीमार या कमजोर होती है तो उद्योग विभाग के पोर्टल पर पूरी जानकारी भरनी होती है। प्रतिवेदन तैयार होता है, भोपाल संस्थागत वित्त के पास मामला जाता है। डिक्लेयर, अपील, रिन्यूवल प्रावधान व कई प्रक्रियाओं के बाद ही यूनिट को बंद या फिर बेचा जाता है। इसमें भी लीज प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। दोनों केन्द्रों में कई फैक्ट्रियों में ताले हैं लेकिन कमजोरी से जूझ रहीं इस दायरे में नहीं आती हैं।
प्लॉट लिया तो फिर
औद्योगिक केन्द्र में जिला स्तर पर किसी व्यक्ति ने प्लॉट लिया है तो 2 साल में यूनिट को लगाना चाहिए। इसके बाद 6 माह का और वक्त दिया जाता है। इस छह माह के बाद ज्वाइंट डायरेक्टर स्तर पर 6 माह का और वक्त मिल जाता है। कुल प्रक्रिया में साढ़े तीन साल के अंदर उत्पादन स्तर पर इकाई को आना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो प्लॉट को वापस करना पड़ता है। वैसे अभी तक प्लॉट बीते कुछ सालों में किसी ने वापस नहीं किया है।
किसी में गाजरघास तो किसी में जंगल - बंद इकाइयाँ भले ही कागजों पर चालू दिखें लेकिन सच्चाई यह है कि मौके पर किसी में गाजरघास तो किसी में छोटा सा जंगली वातावरण नजर आता है। बाहर से देखने में यह यूनिट लग रही हैं लेकिन इनके अंदर किसी भी तरह का मूवमेंट लंबे अरसे से नहीं हो रहा है। गौर करने लायक बात यह है कि विभाग के आँकड़ों में ये सब फर्राटे से दौड़ रही हैं।
Created On :   10 Dec 2020 3:05 PM IST