बांधों की भंडारण क्षमता बढ़ाने सरकार का फैसला सही, हस्तक्षेप करने से हाईकोर्ट ने किया इंकार

The High Court has dismissed petitions filed against the mandate
बांधों की भंडारण क्षमता बढ़ाने सरकार का फैसला सही, हस्तक्षेप करने से हाईकोर्ट ने किया इंकार
बांधों की भंडारण क्षमता बढ़ाने सरकार का फैसला सही, हस्तक्षेप करने से हाईकोर्ट ने किया इंकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य के बांधों से गाद व रेत को निकालकर पानी की भंडारण क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से राज्य सरकार की तरफ से लायी गई नीति को बांबे हाईकोर्ट ने सही पाया है। हाईकोर्ट ने सरकार की नीति के तहत जल संसाधन विभाग की ओर से तीन अगस्त 2018 को जारी शासनादेश के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह याचिका आशा अंडर वाटर सर्विस प्राइवेट लिमिटेड व अन्य कंपनियों ने दायर की थी।

याचिका में दावा किया गया था कि सरकार की ओर से बांधों से गाद निकालने के लिए जारी किया गया टेंडर मनमानीपूर्ण व अवैध है। इसके अलावा यह संविधान के अनुच्छेद 14 व 19 (1जी) के प्रावधानों के विपरीत है। सरकार ने बांध से गाद निकालने के कार्य से जुड़े टेंडर में ऐसी शर्ते रखी हैं, जिससे महालक्ष्मी औद्योगिक सहकारी संस्था लिमिटेड को लाभ मिले। इसलिए सरकार की ओर से 3 अगस्त 2018 को जारी शासनादेश व गाद निकालने से जुड़े टेंडर में उल्लेखित शर्तों को रद्द कर दिया जाए। 

जस्टिस आरवी मोरे व जस्टिस भारती डागरे की बेंच के सामने मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान महाराष्ट्र कृष्णा खोरे विकास महामंडल की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एवी अंतुडकर ने दावा किया कि बांधों से गाद निकालने को लेकर सरकार की ओर से लिया गया निर्णय काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसका उद्देश्य बांधों के भंडारण क्षमता को बढ़ाना है। इससे पानी की कमी तो दूर होगी ही साथ ही बिजली परियोजनाओं को भी लाभ मिलेगा। सरकार का निर्णय अदालत के आदेशों के अनुरुप है। बांधों से निकलने वाले गाद से रेत निकालने के बाद मिट्टी किसानों को नि:शुल्क दे दी जाएगी।

उन्होंने स्पष्ट किया सरकार ने फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के रुप में पांच बांधों में से गाद निकालने के काम की योजना बनाई है। जिसके तहत उजनी, गोसीखुर्द, जायकवाडी, गिरना व मुला बाध से गाद निकाला जाएगा। सरकार ने इस विषय पर नीति बनाने और टेंडर की शर्तों को लेकर विदर्भ इरिगेशन डेवलपमेंट कार्पोरेशन के कार्यकारी निदेशक एवी सुर्वे की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की थी। सरकार ने इस मामले में विशेषज्ञों से परामर्श लेने के बाद शासनादेश जारी किया है।

उन्होंने कहा कि बांधों से गाद व रेत निकालने का यह सरकार का नीतिगत निर्णय है। ऐसे निर्णय को लेकर न्यायिक समीक्षा का दायरा बेहद सीमित होता है। अंतुडकर की इन दलीलों को सुनने के बाद बेंच ने कहा कि अदालत सरकार के निर्णय पर तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब उसका फैसला भेदभाव मनमानीपूर्ण व नियमों के विपरीत हो। बेंच ने साफ किया कि सरकार ने फिलहाल भविष्य की जरूरतों का ध्यान रखते हुए पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। जिससे उसे काम का अनुभव मिल सके ताकि भविष्य में अपने काम को प्रभावी ढंग से अंजाम दे सकें। यह बात कहते हुए बेंच ने मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए याचिकाओं को खारिज कर दिया। 

Created On :   23 March 2019 8:17 PM IST

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