निजी कॉलेजों की मिलीभगत से पहले मैनेज होते रिजल्ट, घोषित होते बाद में! 

The results were managed before the collusion of private colleges, would be declared later!
निजी कॉलेजों की मिलीभगत से पहले मैनेज होते रिजल्ट, घोषित होते बाद में! 
निजी कॉलेजों की मिलीभगत से पहले मैनेज होते रिजल्ट, घोषित होते बाद में! 

मेडिकल यूनिवर्सिटी - चिकित्सा शिक्षा विभाग के निर्देश पर गठित समिति की रिपोर्ट में कई खुलासे 
डिजिटल डेस्क जबलपुर
। मप्र मेडिकल यूनिवर्सिटी में रिजल्ट बनाने वाली प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर ठेका कंपनी माइंडलॉजिक्स इन्फ्राटेक पर बिठाई गई जाँच में कई गड़बडिय़ाँ सामने आईं हैं। यह बात समाने आई है कि ठेका कंपनी ने अनुबंध की शर्तों को दरकिनार कर रिजल्ट तैयार किया। गोपनीय विभाग के बाबू द्वारा रिजल्ट घोषित होने से पहले ही निजी ई-मेल पर रिजल्ट मँगवा लिया जाता था, वहीं परीक्षा नियंत्रक द्वारा ठेका कंपनी को नंबर ई-मेल पर भेज दिए जाते थे। अवकाश पर होने के बाद भी परीक्षा नियंत्रक ने  ठेका कंपनी को छात्रों के नंबर ई-मेल से भेजे थे। जाँच समिति ने पाया कि प्रभार पर न होते हुए भी उन्होंने ई-मेल करके निजी कॉलेजों के साथ मिलकर परीक्षा परिणाम घोषित किए। गौरतलब है कि 10 दिन पूर्व छात्रों ने शिकायत की थी। जिसके बाद जाँच समिति गठित की गई। जाँच रिपोर्ट आने से अब एमयू में हड़कंप की स्थिति है।
अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन
 एमयू और ठेका कंपनी माइंडलॉजिक्स के बीच अनुबंध के मुताबिक अंकों का आदान-प्रदान डाटा एक्सचेंज इंटरफेस के माध्यम से होना चाहिए था। इसे सुरक्षित प्रक्रिया माना जाता है। इसमें अंकों और डाटा में किसी प्रकार छेड़छाड़ होने की जानकारी विवि के पास रहती है। जाँच में पाया गया है कि अनुबंध की शर्तों के विपरीत  ऑनलाइन प्रश्न पत्र की वितरण व्यवस्था में नियमों का पालन नहीं किया। डिजास्टर रिकवरी सेंटर नहीं बनाया, मॉडरेशन का इंटरफेस फंक्शनल नहीं मिला, साथ ही एग्जामिनेशन शेड्यूलिंग नहीं बनाई जाती है। वर्चुअल नोटिस बोर्ड एक्टिव नहीं कराया जाता, साथ ही  मूल्यांकनकर्ता को भुगतान संबंधी व्यवस्था का सत्यापन नहीं कराया जा रहा है। मूल्यांकन व्यवस्था से सत्यापन संबंधी जानकारी मूल्यांकनकर्ता को नहीं मिल रही है। रिवैल्यूएशन मॉड्यूल पूरी तरह से काम नहीं कर रहा है। संस्था को दिए जाने वाले ज्यादातर इंटरफेस, अधिकार और मॉड्यूल एक्टिव नहीं है।
ऐसे सामने आई गड़बड़ी
अप्रैल में कोरोना संक्रमित होने पर प्रभारी परीक्षा नियंत्रक डॉ. वृंदा सक्सेना अवकाश पर थीं। तब अन्य अधिकारी को परीक्षा नियंत्रक का प्रभार सौंपा गया, लेकिन अवकाश पर रहते हुए परीक्षा नियंत्रक ने डेंटल और नर्सिंग पाठ्यक्रम के प्रैक्टिकल परीक्षा के अंकों में बदलाव के लिए माइंडलॉजिक्स कंपनी को ई-मेल किया। यही नंबर कंपनी के असिस्टेंट मैनेजर ने पोर्टल में दर्ज किए। अंकों में परिवर्तन से पूर्व कंपनी ने न तो तत्कालीन प्रभारी परीक्षा नियंत्रक और न ही कुलपति से अनुमोदन प्राप्त किया। इसी शिकायत पर विवि के कुलसचिव डॉक्टर जेके गुप्ता, वित्त नियंत्रक आरएस डेकाटे और लेखाधिकारी राकेश चौधरी के साथ भोपाल से तीन तकनीकी विशेषज्ञों को जाँच समिति में नामित किया गया था।   
जाँच में मिलीं ये गड़बडिय़ाँ
जाँच के लिए बैकअप डाटा माँगने पर 14 दिन का समय माँगा गया। बार-बार कोई न कोई कारण बताकर डाटा देने में आनाकानी के प्रयास किए। जाँच समिति को आखिरी समय पर कुछ डेटा दिया गया, लेकिन इसमें सिर्फ दो वर्ष की ही जानकारी थी। वह भी अधूरी होनी पायी गई है। अनुबंध के अनुसार प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनी को समय-समय पर डाटा की सुरक्षित सॉफ्ट कॉपी विवि में जमा करना था, ऐसा नहीं किया गया। कंपनी ने एसक्यूएल की जगह एक्सेल फॉर्मेट में जानकारी उपलब्ध कराई। इसमें यदि कोई फेरबदल किया गया है, तो उसका पता लगाना मुश्किल है। 
आईपी एड्रेस की जगह  मैक एड्रेस का इस्तेमाल
जाँच समिति के आईटी विशेषज्ञों ने छानबीन में पाया कि निजी कंपनी सॉफ्टवेयर में आइपी एड्रेस की जगह मैक एड्रेस रजिस्टर कर रही है। माइंडलॉजिक्स का मैक एड्रेस रजिस्टर करना सुरक्षा की दृष्टि से अनुचित और अनुबंध शर्तों के विपरीत है।  अधिकृत इंटरफेस की जगह अन्य माध्यम के उपयोग से रिजल्ट की गोपनीयता संदिग्ध हो गई है। जानकारों के अनुसार मैक एड्रेस का उपयोग गड़बड़ी की ओर इशारा करता है।  

Created On :   19 Jun 2021 8:48 AM GMT

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