पॉलिसी है फिर भी अस्पताल में नकद देनी पड़ रही राशि

There is a policy, yet you have to pay cash in the hospital
पॉलिसी है फिर भी अस्पताल में नकद देनी पड़ रही राशि
पॉलिसी है फिर भी अस्पताल में नकद देनी पड़ रही राशि

पॉलिसी धारकों ने कहा - वक्त पर धोखा दे रही हैं इंश्योरेंस कंपनियाँ, होनी चाहिए ठोस कार्रवाई
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
बीमा कंपनियों के अधिकारी व एजेंट कंपनियों को लाभ दिलाने के लिए आम लोगों को पॉलिसी देते वक्त लुभावने वादे तो करते हैं, पर जब पॉलिसी धारक को स्वास्थ्य बीमा की जरूरत होती है, उस समय वे अपने हाथ खड़े कर देते हैं। कोरोना संक्रमण के कारण आम लोग अस्पताल के चक्कर लगा रहे हैं। पॉलिसी धारकों का आरोप है कि कैश लेस प्रॉवधान होने के बावजूद भी वे जब क्लेम के लिएसंबंधित इंश्योरेंस कंपनी में संपर्क कर रहे हैं, तो यही जवाब मिलता है कि आप बिल उपलब्ध कराएँ, हम बाद में उसका भुगतान कर देंगे। कुछ शिकायतें ऐसी भी हैं कि इलाज से संबंधित पूरे दस्तावेज ऑनलाइन भेजे जाने के बाद कुछ बीमा कंपनी यह कह रही हैं कि आपका बिल भुगतान करने लायक नहीं है। यह बिल हमारी पॉलिसी में नहीं आता है। आरोप है कि कई तरह के बहाने बनाकर स्वास्थ्य बीमा का क्लेम देने से कंपनी सीधे तौर पर मना कर रही है। ऐसी स्थिति में पीडि़त अस्पतालों में कैश भुगतान करने मजबूर हैं। इंश्योरेंस कंपनियों से पीडि़त पॉलिसी धारक लगातार शिकायत करते हुए बीमा कंपनी से बिल भुगतान के लिए गुहार लगा रहे हैं। 
 पाँच महीने बाद भी भुगतान नहीं
एलआईसी कॉलोनी मदन महल निवासी संजीव मिश्रा ने एक शिकायत में बताया कि उन्होंने एचडीएफसी अरगो इंश्योरेंस से स्वास्थ्य बीमा लिया हुआ है। उनका बेटा शिवांग मिश्रा 12 नवंबर 2020 को कोरोना संक्रमण का शिकार हो गया था। इलाज के लिए उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। निजी अस्पताल में पाँच दिन तक इलाज चला। अस्पताल का बिल 2 लाख 2 सौ 63 रुपए का बना था। श्री मिश्रा का आरोप है कि प्रॉवधान के बावजूद इंश्योरेंस कंपनी ने अस्पताल में कैशलेस नहीं किया, तो उनके द्वारा पूरा भुगतान किया गया और अस्पताल का बिल उनके द्वारा ऑनलाइन क्लेम किया गया। पांच माह बीत जाने के बाद भी इंश्योरेंस कंपनी ने किसी तरह का जवाब नहीं दिया और फिर अचानक क्लेम देने से मना कर दिया। उनके द्वारा टोल-फ्री नंबर के साथ ही अन्य नंबरों पर संपर्क करते हुए वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत की गई पर कोई रिजल्ट नहीं निकला। 
 कैसे कराएँ अस्पताल से छुट्टी
चम्पा नगर रांझी निवासी स्नेहलता सिन्हा ने बताया कि उनके पति को कोरोना हुआ है। अचानक तबीयत बिगड़ जाने के कारण पति अमित सिन्हा को निजी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। स्टार हेल्थ इंश्योरेंस की पॉलिसी से अस्पताल का बिल क्लेम किया गया, तो इंश्योरेंस कंपनी द्वारा यह कहकर बिल रिजेक्ट कर दिया गया कि अमित को माइनर कोविड था। अधिक संक्रमित होने पर ही हमारी कंपनी क्लेम देती है। कम संक्रमण के इलाज का बिल देना इंश्योरेंस कंपनी के प्रावधान व नियमावली में नहीं हैं। परेशान होकर स्नेहलता ने कई जगह शिकायत देते हुए इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम दिलाने की गुहार लगाई है। पीडि़ता का कहना है कि अब वे अपने पति को अस्पताल से कैसे डिस्चार्ज कराएँगी, क्योंकि उनके पास बिल चुकाने के लिए उतने रुपए नहीं हैं। अपनी शिकायत में आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि इंश्योरेंस कंपनी के द्वारा इस तरह से हाथ खड़े कर देना गलत है। 
एक साल बाद भी नहीं दिया क्लेम 
बेलबाग ललित कॉलोनी निवासी फ्रांसिस नेरियस ने अपनी शिकायत में बताया कि उनका स्वास्थ्य बीमा स्टार हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से है। 20 मार्च 2020 को अचानक सीने में दर्द होने की स्थिति में वे निजी अस्पताल गए थे। वहाँ चैकअप के बाद उन्हें भर्ती कर लिया गया था। अस्पताल में चले उपचार के दौरान कैशलेस के लिए स्टार हेल्थ में ऑनलाइन अस्पताल से क्लेम किया गया। स्वास्थ्य बीमा कंपनी ने उस वक्त क्लेम में रोक लगा दी थी। बिल में रोक लगने के कारण उन्हें कैश जमा करना पड़ा। आरोप है कि उनके द्वारा बीमा कंपनी में सारे बिल व अस्पताल की रिपोर्ट लगाते हुए क्लेम किया गया था, लेकिन बीमा कंपनी के द्वारा आज तक उक्त राशि का भुगतान नहीं किया गया। एक साल से वे लगातार पत्राचार करते आ रहे हैं पर बीमा कंपनी अब क्लेम देने से इनकार कर रही है।
 

Created On :   28 April 2021 2:04 PM IST

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