शाला में शौचालय तो बना दिए लेकिन पानी ही नहीं

Toilets have been made in the school but there is no water
शाला में शौचालय तो बना दिए लेकिन पानी ही नहीं
गोंदिया शाला में शौचालय तो बना दिए लेकिन पानी ही नहीं

डिजिटल डेस्क, कामठा (गोंदिया) शासन-प्रशासन की ओर से सारे जिले में स्वच्छ और निर्मल भारत अभियान के क्रियान्वयन पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपयों की निधि खर्च की जाती है। लेकिन उचित नियोजन के अभाव में लाभार्थियों को इसका लाभ नहीं मिल पाता, जिससे यह अभियान केवल घोषणाओं तक ही सिमित होकर रह जाता है। इसका उदाहरण है गोंदिया पंचायत समिति अंतर्गत जिला परिषद की हिंदी एवं मराठी शाला कामठा। जिला परिषद के शिक्षा विभाग द्वारा संचालित इस शाला में शौचालय बनाए गए हंै, लेकिन उचित देखरेख के अभाव में यहां शौचालय खस्ताहाल होकर शौचालय में पाइप, पानी टंकी एवं अन्य सामग्री टूट-फूट गई है। इन दोनों शालाओं के शौचालय उपयोग के योग्य नहीं होने के कारण स्कूली बच्चे खुले में शौच जाने के लिए मजबूर है। प्राप्त जानकारी के अनुसार  जिला परिषद की हिंदी एवं मराठी शाला कामठा में पहली से सातवी तक कक्षाएं होकर यहां सैकड़ों विद्यार्थी पढ़ते हंै। लेकिन यहां शाला में बुनियादी सुविधा के नाम पर बनाए गए शौचालय पूरी तरह जर्जर अवस्था में पहुंच गए हैं, जो उपयोग के लायक नहीं रहे हंै। इसी तरह मराठी शाला में कुछ माह पूर्व शौचालय का निर्माण किया गया था, लेकिन यहां भी शौचालय में पानी की टंकी में पानी का अभाव, पाइप-लाइन एवं अन्य सामग्री पूरी तरह खस्ताहाल दिखाई पड़ रही हैं। इससे इन दोनों शालाओं के शौचालय उपयोग के योग्य नहीं हैं। एक ओर शिक्षा विभाग वाहवाही बंटोरने के िलए जिप स्कूलों को डिजिटल स्कूल बनाए जाने का दावा करते नहीं थक रहे है, लेकिन इन शालाओं में डिजिटल पढ़ाई तो दूर, डिजिटल शिक्षा के लिए उपयोग में लाए जाने वाले संशाधन भी बंद पड़े हुए हंै। वहीं जिला परिषद शाला के शौचालय कूड़े-कचरे से पटे हुए नजर आते हैं। कई शालाओं के शौचालय में पाइप, पानी टंकी एवं अन्य सामग्री टूट-फूट गई है। पानी के अभाव में इनका उपयोग करना संभव नहीं है। शिक्षा विभाग को जिला परिषद स्कूलों में विद्यार्थियों को शैक्षणिक सुविधा के साथ ही बुनियादी (भौतिक) सुविधा उपलब्ध कराना आवश्यक है। अावश्यक भौतिक सुविधाएं नहीं मिलने के कारण सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे निजी स्कूलों में जाने के इच्छुक दिखाई पड़ते है एवं पालक परेशानी उठाकर भी अपने बच्चों के भविष्य के खातिर उन्हें महंगे निजी स्कूलों में भेजने के लिए मजबूर हो जाते है। इसके लिए अभिभावक नहीं बल्कि शिक्षा विभाग ही जिम्मेदार है।

विभाग को जानकारी दी है 

अय्युब खान, केंद्र प्रमुख, कामठा के मुताबिक जिला परिषद हिंदी एवं मराठी शालाओं के शौचालयों की जर्जर अवस्था के बारे में संबंधित विभाग को शिकायत की गई है। साथ ही कामठा ग्राम पंचायत को भी इस विषय में अवगत कराया गया है। 

Created On :   16 Nov 2022 7:19 PM IST

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