माफियाओं के चंगुल में फंसकर आदिवासी परिवार ने गवाई करोड़ों की जमीन, हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी कार्रवाई नहीं

Tribal family lost crores of land, trapped in mafias
माफियाओं के चंगुल में फंसकर आदिवासी परिवार ने गवाई करोड़ों की जमीन, हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी कार्रवाई नहीं
माफियाओं के चंगुल में फंसकर आदिवासी परिवार ने गवाई करोड़ों की जमीन, हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी कार्रवाई नहीं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। दबंगों द्वारा गरीबों की जमीन हड़पने के किस्से उत्तर प्रदेश-बिहार में तो अक्सर सुनने को मिल जाते हैं, लेकिन भूमाफिया के पैर मुंबई और आसपास के इलाकों में भी फैल गए हैं। मुंबई के करीब स्थित पालघर जिले के चार आदिवासी इसके शिकार हुए हैं। बिल्डर और उसके गुर्गे के बहकावे में आदिवासियों ने अपनी जमीन तो बेंच दी लेकिन इसके लिए उन्हें जिस 25 करोड़ रुपए का वादा किया गया था उसका भुगतान कभी नहीं किया गया। न्याय के लिए अब आदिवासी दर दर की ठोकर खा रहे हैं। मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया तो वहां से दिए गए निर्देशों के बाद नालासोपारा पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ 16 सितंबर को एफआईआर तो दर्ज कर ली है लेकिन पुलिस  ने मामले में एक महीने बाद भी अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।आदिवासियों की जमीन दूसरे लोगों को नहीं बेची जा सकती। इसीलिए आरोपियों ने पहले आदिवासियों को मोटी रकम देने का वादा कर उनकी जमीन को आदिवासी से गैरआदिवासी घोषित कराया। फिर इसे खरीद लिया लेकिन बदले में जो रकम आदिवासियों को देने का वादा किया गया था वह कभी नहीं दी गई। मामले में जिन आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है उनमें बिल्डर प्रदीप गुप्ता, सुधाकर म्हात्रे और रमेश व्यास नाम के उसके साथियों के नाम शामिल हैं। 

गुप्ता की साई रिद्धम रियल्टर्स प्रायवेट लिमिटेड नाम की कंपनी है। ठगी के शिकार हुए और मामले की शिकायत करने वाले आदिवासी सुनील पागी  के मुताबिक म्हात्रे और व्यास ने उनसे और उनके परिवार के दूसरे सदस्यों से साल 2005-06 के बीच नजदीकी बढ़ाई। दोनों ने परिवार से वादा किया कि अगर जमीन को आदिवासी के गैरआदिवासी में बदल  दें तो उन्हें 25 करोड़ मिल सकते हैं। आरोपियों के झांसे में आए सुनील के साथ उनके परिवार के विष्णु पागी, रवि पागी, मधु पागी ने भी अपने 5-5 एकड़ जमीन को  राजस्व विभाग के नियमों के मुताबिक आदिवासी से गैर आदिवासी घोषित करा लिया। इस जमीन की वास्तविक कीमत 80 करोड़ रुपए है लेकिन वे 25 करोड़ में ही जमीन बेंचने को राजी हो गए थे लेकिन उन्हें यह पैसे भी नहीं मिले। 

पीड़ितों के बैंक खाते से लेनदेन करते रहे आरोपी

आरोपियों ने रकम देने के नाम पर जो बैंक खाते खुलवाए उसमें अपना मोबाइल नंबर दिया साथ ही आदिवासियों से चेकबुक पर हस्ताक्षर करा दिए गए। आरोपियों ने आदिवासियों के नाम पर उनके खातों से पैसों का लेनदेन किया लेकिन उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं हुई। परिवार ने आरोपियों के खिलाफ शिकायत की काफी कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली। आखिरकार एक सामाजिक कार्यकर्ता की मदद से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट के आदेश पर आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज तो हुई है, लेकिन अभी परिवार को न्याय के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।  

 

Created On :   20 Oct 2020 7:37 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story