हाईकोर्ट ने कहा - सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे दो लोगों का एक दूसरे पर विश्वास न करना दुर्भाग्यपूर्ण

Two people sitting on the highest constitutional post do not trust each other - HC
हाईकोर्ट ने कहा - सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे दो लोगों का एक दूसरे पर विश्वास न करना दुर्भाग्यपूर्ण
विधान परिषद सदस्यों की नियुक्ति मामला हाईकोर्ट ने कहा - सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे दो लोगों का एक दूसरे पर विश्वास न करना दुर्भाग्यपूर्ण

डिजिटल डेस्क, मुंबई। विभिन्न मुद्दों पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बीच मतभेदों के मद्देजनर बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य के दो सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन लोगों का एक दूसरे पर विश्वास न करना दुर्भाग्यपूर्ण है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने कहा कि यदि दोनों लोग (राज्यपाल व मुख्यमंत्री) साथ में बैठकर अपने मतभेद को सलुझा ले तो यह उचित होगा। 

बुधवार को खंडपीठ ने यह बात विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव से जुड़े नियमों में किए गए संशोधन को चुनौती देनेवाली दो जनहित याचिकाओं को खारिज करते हुए कही। इसमें से एक याचिका भारतीय जनता पार्टी के विधायक गिरीश महाजन और दूसरी सामाजिक कार्यकर्ता जनक व्यास ने दायर की थी। याचिका में विधानसभा अध्यक्ष चुनाव से जुड़े नियमों को असवैधानिक व अवैध घोषित करने की मांग की गई थी। विधायक महाजन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने पक्ष रखा जबकि व्यास की ओर से अधिवक्ता सुभाष झा ने पैरवी की। 

बुधवार को लंबी सुनवाई के बाद खंडपीठ ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव प्रक्रिया के सिलसिले में नियमों में किया गया संशोधन नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिले समानता के मौलिक अधिकार का हनन नहीं करता है। इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है। इससे पहले विधायक महाजन की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता जेठमलानी ने कहा कि वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जो संशोधन किया गया है उसके तहत सिर्फ मुख्यमंत्री ही इस पद के चुनाव के लिए राज्यपाल को सलाह दे सकते हैं। यह असंवैधानिक है। जबकि नियमानुसार राज्यपाल को मंत्रिमंडल को सलाह देना चाहिए न कि सिर्फ मुख्यमंत्री को। ऐसे में कोर्ट यदि इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है तो वह जनहित की सुरक्षा में विफल होगी। 

इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता यह दर्शाने में पूरी तरह विफल रहे हैं कि विधानसभा के अध्यक्ष के चुनाव में आम आदमी कैसे प्रभावित होता है। खंडपीठ ने कहा कि लोगों को यह जानने में बहुत कम रुची रहती है कि कौन विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया है। प्रसंगवश खंडपीठ ने कहा कि यदि इस कोर्ट में पूछा जाए कि लोकसभा का अध्यक्ष कौन है, तो कितने लोग इस कोर्ट में इस सवाल का जवाब दे पाएंगे। आप हमें (याचिकाकर्ता) बताए कि इस विषय पर कैसे जनहित याचिका हो सकती है। विधानसभा अध्यक्ष सिर्फ विधायिका से जुड़ा एक सदस्य होता है। 

सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने राज्यपाल कोटे के विधानपरिषद के 12 सदस्यों की नियुक्ति को लेकर राज्यपाल व मुख्यमंत्री के बीच गतिरोध का भी जिक्र किया। हाईकोर्ट में पिछले साल यह मामला भी जनहित याचिका के रुप में कोर्ट के सामने आया था। इस पर खंडपीठ ने कहा था कि यह राज्यपाल की जिम्मेदारी है कि वे अपना फैसला जाहिर करें। इसके साथ ही खंडपीठ ने कहा कि राज्यपाल को 12 सदस्यों की नियुक्ति के बारे में मुख्यमंत्री से बात करनी चाहिए। ताकि मुख्यमंत्री को राज्यपाल की इच्छा का पता चल सके। 

अब तक राज्यपाल ने नहीं लिया है विधानपरिषद की 12 सीटों पर फैसला

बुधवार को खंडपीठ ने कहा कि हमने आठ महीने पहले राज्यपाल कोटे के 12 सदस्यों की नियुक्ति को लेकर फैसला सुनाया था लेकिन अब तक इस पर राज्यपाल ने अपना अंतिम निर्णय नहीं लिया है। उस समय तर्क दिया गया था कि राज्यपाल के फैसला न लेने से लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। लेकिन क्या वास्तव में राज्यपाल द्वारा विधानपरिषद के 12 सदस्यों की नियुक्ति न करने से लोकतंत्र समाप्त हो गया है। यह मामला मौजूदा मामले से बडा था। खंडपीठ ने कहा कि हमारा लोकतंत्र इतना नाजुक नहीं है। ऐसे में कोर्ट के लिए यह उचित नहीं होगा कि वह विधायिका के सभी मामलों में दखल दे। हमें राज्यपाल के विशेषाधिकार पर कुछ भरोसा रखना चाहिए। मुख्यमंत्री राज्य के मुखिया हैं। वर्तमान में दोनों अपनी-अपनी जगह पर सही नहीं है। इस हद तक बात नहीं जानी चाहिए। लेकिन महाराष्ट्र में संविधान के सर्वोच्च पद पर आसीन दोनों (राज्यपाल व मुख्यमंत्री) का एक दूसरे पर विश्वास न करना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसलिए दोनों लोग कृपया साथ में बैठे और अपने मतभेद को सुलझा ले तो उचित होगा।

जब्त हुए याचिकाकर्ता के 12 लाख 

खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई के लिए विधायक महाजन की ओर से अदालत में जमा किए गए दस लाख रुपए व सामाजिक कार्यकर्ता व्यास की ओर से जमा किए गए दो लाख रुपए जब्त कर लिए। इस तरह से खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया। और कहा कि यह नियमों में किया गया संशोधन विधानसभा के सदस्यों को विधानसभा के अध्यक्ष को सुझाव देने से नहीं रोकता है। 

 

Created On :   9 March 2022 6:27 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story