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सफाई की दो व्यवस्थाएँ : दोनों में जमीन-आसमान का अंतर, 3 हजार से कम होते हुए 1300 सरकारी सफाई कर्मी बचे

सरकारी कर्मचारी अपना शहर, अपनी जिम्मेदारी मानकर सफाई करते हैं, ठेकेदार केवल कमाई के लिए आते हैं
डिजिटल डेस्क जबलपुर । शहर में दो तरह से सफाई का कार्य कराया जा रहा है। एक तो 39 वार्डों में ठेके के कर्मचारी काम सँभाले हुए हैं, वहीं बचे हुए 40 वार्डों में यह काम निगम की सरकारी फौज देख रही है। काम दोनों में हो रहे हैं लेकिन सरकारी कर्मियों वाले वार्ड बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और खुद अधिकारी भी यह मानते हैं। उनका कहना है कि सरकारी कर्मचारी अपना शहर अपनी जिम्मेदारी मानकर यह काम करते हैं जबकि ठेकेदार केवल रुपए कमाने के उद््देश्य से यह कार्य करवाता है। कुल मिलाकर करोड़ों रुपये से शहर की सफाई हो रही है फिर भी यदि उसका लाभ शहर को न मिले तो यह घाटे का सौदा है क्योंकि शहर की आम जनता दोनों ही व्यवस्थाओं से संतुष्ट नजर नहीं आती है। शहर में कुल 79 वार्ड हैं और इसका क्षेत्रफल 264 वर्ग किलोमीटर का है जो किसी महानगर से कम नहीं है। 16 जोनों के माध्यम से निगम अपनी सेवाएँ नागरिकों तक पहुँचाता है। नगर निगम के सरकारी सेवारत सफाई कर्मियों की संख्या लगभग 1300 है और ठेके पर दिए गए 39 वार्डों में भी लगभग 14 सौ के करीब कर्मचारी सफाई का कार्य करते हैं। इन व्यवस्थाओं पर निगम को 6 करोड़ से अधिक की राशि हर माह खर्च करनी पड़ती है, जिसमें डोर-टू-डोर व्यवस्था भी शामिल है।
बायोमैट्रिक्स अटेंडेंस से होती है मॉनीटरिंग
सफाई कर्मचारियों की मॉनीटरिंग बायोमैट्रिक्स अटेंडेंस से होती है लेकिन कोरोना के कारण यह व्यवस्था बंद कर दी गई थी क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा था। इसके साथ ही मोबाइल एप के माध्यम से कर्मचारी कार्यस्थलों से फोटो भेजते हैं जिससे उनकी उपस्थिति मानी जाती है। इसके अलावा हर वार्ड में सुपरवाइजर, सहायक सुपरवाइजर और सीएसआई भी नजर रखते हैं। इनके ऊपर निगम में 6 सहायक स्वास्थ्य अधिकारी हैं जो समय-समय पर वार्डों का भ्रमण करते हैं।
नगर निगम में भर्ती ही नहीं हो रही तो कैसे मिलेंगे सफाई कर्मी
इन सबके बाद भी निगम के अधिकारी यह मानते हैं कि सरकारी कर्मचारी बेहतर कार्य करते हैं क्योंकि उनके लिए यह जीवन भर का कार्य है और उनके ऊपर अधिकारी होते हैं जो नजर रखते हैं, लेकिन 3 हजार कर्मचारियों वाले निगम में अब केवल 1300 नियमित कर्मचारी बचे हुए हैं। आने वाले दिनों में इनकी संख्या और कम हो जाएगी ऐसे में या तो संविदा पर कर्मी रखने होंगे या फिर ठेका प्रथा को ही पूरी तरह लागू करना होगा।
इंदौर-भोपाल ने ठेका प्रथा को नकारा
इंदौर और भोपाल स्वच्छता में इतने आगे क्यों हैं इसका एक कारण यह है कि वहाँ न तो ठेका प्रथा पर भरोसा किया गया और न ही सरकारी व्यवस्था को पूरी तरह से लागू किया गया है। वहाँ संविदा के आधार पर नियुक्ति की गई और कलेक्ट्रेट रेट पर कर्मचारी रखे गए, जिनसे सफाई का कार्य कराया जाता है। ऐसे कर्मचारी पूरे मनोयोग से काम करते हैं क्योंकि उन्हें निकाले जाने का भय होता है जबकि सरकारी कर्मचारियों को यह भय नहीं होता और ठेका श्रमिक तो बिल्कुल भी नहीं डरते क्योंकि कई ठेकेदार हैं जो काम देने खड़े रहते हैं।
अब जनता से जानकारी लेंगे अधिकारी
अभी तक वार्डों में सफाई व्यवस्था की जानकारी लेने के लिए सुपरवाइजर पर भरोसा किया जाता है लेकिन निगम ने अब वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस कार्य में जुटाया है और वे वार्डों में जाकर जनता से फीडबैक लेंगे ताकि स्वच्छ सर्वेक्षण आदि में इसका लाभ मिल सके। निगम शीघ्र ही एक नम्बर भी जारी करेगा जिसमें लोग खुद बताएँगे कि उनके क्षेत्रों में सफाई हो रही है या नहीं और हो रही है तो कैसी।
Created On :   30 Dec 2020 2:38 PM IST