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मांस खाने के बाद नहाते भी हैं गिद्ध- बढ़ रहा है पक्षीराज का कुनबा

डिजिटल डेस्क सतना। समूचे देश में गिद्धों की लगातार कम हो रही संख्या को लेकर वैज्ञानिक चिंतित हैं। प्रकृति के आदिम सफाई दरोगा के नाम से मशहूर इस बड़ी चिडिय़ा के विनाश और इन्हें बचाने के लिए वैज्ञानिक निरंतर शोध कार्य कर रहे हैं। एक शोध के दौरान यह पता चला कि पूरी तरह से मांशाहारी इस पक्षी की कई ऐसी आदतें हैं जो इसके प्रति सहज रूप से आकर्षण बढ़ाती हैं। मसलन गिद्ध जब भी किसी भी मरे हुए मवेशी का मांस खाते हैं तो इसके बाद वह नहाते भी हैं।
इस आदत को लेकर निरंतर वैज्ञानिक शोध कार्य कर रहे हैं। अभी तक पूरी तरह से यह निष्कर्ष सामने नहीं आ पाया कि आखिर ऐसा क्यों होता है। लगातार इनकी घट रही संख्या को लेकर वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं कि दुधारू जानवरों को लगाए जाने वाले इंजेक्शन और खेतों में डाले जाने वाले कीटनाशक के दुष्प्रभाव के कारण ही गिद्धों की प्रजाति लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है।
क्या है वैज्ञानिकों का मत
वन मंडलाधिकारी राजीव मिश्र के अनुसार गिद्धों पर निरंतर शोध कर रहे वैज्ञानिक इस बात पर एक मत हैं कि गिद्ध मुर्दाखोर होते हैं और मांस खाने के बाद जहां भी उन्हें उपयुक्त पानी मिलता है वहां जाकर नहाते भी हैं। लेकिन क्यों नहाते हैं इस बात पर जानकार भी एक मत नहीं हैं। जो शोध अभी तक सामने आए हैं उनका मानना है कि मांस खाने के बाद गिद्धों के शरीर का तापमान अचानक काफी बढ़ जाता है, जिससे उन्हें बेचैनी होती है, लिहाजा शरीर का तापमान कम करने के लिए गिद्ध पानी में जाकर नहाते हैं।
इसके उलट कुछ लोगों का यह मानना है कि मांस पचाने के लिए उन्हें पानी की आवश्यकता होती है और वह इतना मांस खा लेते हैं कि पेट में पानी की जगह भी नहीं रह जाती, लिहाजा नहा करके वह पानी की प्रतिपूर्ति करते हैं, जिससे मांस पचने में कोई परेशानी नहीं होती। वहीं वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर भी पहुंच चुके हैं कि वयस्क गिद्ध मांस खाने के बाद वह मुह की तरफ से निकाल भी देते हैं और जो उनके बच्चों के काम आता है।
यहां सिर्फ 5 प्रजातियां
समूची दुनिया में गिद्धों की 23 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भारत वर्ष में मात्र 9 प्रजाति हैं। तीन दशक पहले तक सतना जिले में 7 प्रजाति के गिद्ध मिलते थे, लेकिन जानकार बताते हैं कि अब यहां सिर्फ 5 प्रजाति के गिद्ध ही देखे जा रहे हैं। बीते साल की गई देशव्यापी गणना के दरम्यान सतना जिले में 210 गिद्ध देखे गए थे। यह संख्या विंध्य प्रदेश में सबसे अधिक है। यहां जिन प्रजातियों के गिद्ध मिले हैं उनमें इंडियन वल्चर या लॉग बिल्ड वल्चर (भारतीय या देशी गिद्ध), इजिप्सन या स्केवेंजर वल्चर, व्हाई बैक्ड वल्चर, किंग वल्चर, रेड हैडेड वल्चर, यूरासियन ग्रिफोन, हिमालयन ग्रिफोन व संरियस वल्चर शामिल हैं। मौजूदा समय में प्रदेश के मात्र 31 जिलों में गिद्ध मिलते हैं।
जिले में कहां-कहां
जिले के भीतर कई जगहों पर गिद्धों के घोषले देखे गए हैं। गर्मी के दिनों में ही वह प्रजनन करते हैं। गिधैला पहाड़ गिद्धों की राजधानी के रूप में जाना जाता है। इस पहाड़ को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं। यहां सर्वाधिक गिद्धों की संख्या मानी जाती है। इसके अलावा चित्रकूट में सती-अनुसुइया आश्रम के आसपास, धारकुण्डी जंगल में, सतना, सोनौरा व बेलहटा गांवों के पास, परसमनिया पठार, पपरा जंगल तथा नरोहिल पहाड़ी में गिद्धों के घोसले अभी भी देखे जा सकते हैं। इन जगहों पर रहने वाले गिद्धों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
इनका कहना है
दुधारू जानवरों में दर्द निवारक इंजेक्शन तथा अन्य रासायनिक दबाओं के प्रयोग तथा फसलों में डाले जाने वाले कीटनाशक के कारण गिद्धों की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ा है। यह खुशी की बात है कि धीरे-धीरे जिले के भीतर गिद्धों की संख्या बढ़ती जा रही है। आवश्यकता है कि इनके बारे में गंभीरता पूर्वक विचार कर संरक्षित रखने की पहल की जाए।
(राजीव मिश्र वन मंडलाधिकारी)
Created On :   3 May 2018 6:08 PM IST