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वार्ड परिसीमन - अधिकांश आपत्तियाँ खारिज, वार्डों की फाइल भोपाल पहुंची, अब वार्ड आरक्षण किसी भी दिन

डिजिटल डेस्क जबलपुर । वार्ड पार्षद का चुनाव जीतकर महापौर बनने के सपने देखने वालों के लिए आगामी कुछ दिन कई सालों की भाँति हैं। ऐसे लोगों को न तो दिन में चैन है और न ही रातों में नींद आ रही है। इन्हें केवल महापौर की कुर्सी दिखाई दे रही है। चुनाव की पहली कड़ी में कलेक्टर ने वार्ड परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की थी, जिसको अंतिम रूप देकर राज्य शासन के पास भेज दिया गया है, फाइल भोपाल पहुंची गई है। परिसीमन में दावे और आपत्तियाँ बुलाई गईं थीं, जिस पर करीब 231 आपत्तियाँ पहुंची थीं लेकिन अधिकांश आपत्तियाँ खारिज कर दी गई हैं। अब राज्य शासन कलेक्टर की रिपोर्ट को मानता है तो तत्काल बाद वार्डों के पुनर्गठन का गजट नोटिफिकेशन हो जाएगा और ऐसा होते ही वार्ड आरक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी क्योंकि 30 जनवरी तक इसे हर हाल में करना ही है। कलेक्टर ने 11 जनवरी को वार्डों के परिसीमन का प्राथमिक प्रकाशन किया था, जिसमें 3 वार्ड बढ़ाते हुए 79 वार्डा की संख्या को 82 किया गया था। इसके तहत पूर्व विधानसभा में दो वार्ड बढ़ाए गए थे और उत्तर-मध्य विधानसभा में 1 वार्ड बढ़ाया गया था। कुल 231 दावे और आपत्तियाँ प्राप्त हुए थे। इसमें सुनवाई जैसी कोई बात नहीं थी बल्कि आपत्तियों का निराकरण किया जाता है और बताया जाता है कि अधिकांश आपत्तियाँ बूथों को घटाने या बढ़ाने के लिए थीं, जिन्हें माना नहीं गया और रिपोर्ट को राज्य शासन के लिए भेज दिया गया।
वार्ड आरक्षण के लिए कम समय बचा
वार्ड आरक्षण के लिए अब बहुत कम समय बचा है। राज्य शासन यदि वार्डों का गजट नोटिफिकेशन एक दो दिनों के अंदर नहीं करता है तो आगामी सोमवार और मंगलवार महत्वपूर्ण हो जाएँगे क्योंकि 29 को वसंत पंचमी है और 30 की तारीख पहले ही तय है। जिला प्रशासन चाहता है कि तय तारीख के पहले ही वार्ड आरक्षण हो जाए लेकिन ऐसा तभी हो पाएगा, जब वार्डों का गजट नोटिफिकेशन इसी सप्ताह हो जाए। वार्ड आरक्षण के लिए हालाँकि अधिकारियों ने कागजी तैयारी शुरू कर दी है और सभी वार्डों का डाटा भी तैयार है कि कौन सा वार्ड कब, किस वर्ग के लिए आरक्षित रहा है।
आरक्षण कई के लिए हो सकता है घाटे का सौदा
इन दिनों जो भी बड़े नेता महापौर बनने के ख्वाब देख रहे हैं, उन सभी के लिए वार्ड आरक्षण बेहद अहम है क्योंकि उन्हें पार्षद बनकर ही मैदान में उतरना होगा और यदि वे जिस वार्ड से राजनीति करते हैं उसका आरक्षण उनके अनुसार नहीं हुआ तो वे दूसरे वार्ड से लडऩे का रिस्क बहुत सोचकर ही उठाएँगे, क्योंकि ऐसे में उनका राजनीतिक कैरियर चौपट भी हो सकता है। वार्डों के चुनाव में जीत-हार का अंतर बहुत कम होता है क्योंकि हर रहवासी चुनाव लडऩे वाले से परिचित होता है, ऐसे में लोग उसी चेहरे को वोट करते हैं जो उनके सुख-दु:ख में सहभागी होता है। यही कारण है कि बड़े नेता भी यह चाह रहे हैं कि वार्ड आरक्षण उनके अनुसार ही रहा तो ठीक वरना राम-राम।
Created On :   22 Jan 2020 1:59 PM IST