जब मां की मालकिन हो तो उसे बेदखल करने का अधिकार नहीं- बेटे-बहू को घर खाली करने का निर्देश 

When the mother is the mistress, she does not have the right to evict her
जब मां की मालकिन हो तो उसे बेदखल करने का अधिकार नहीं- बेटे-बहू को घर खाली करने का निर्देश 
हाईकोर्ट जब मां की मालकिन हो तो उसे बेदखल करने का अधिकार नहीं- बेटे-बहू को घर खाली करने का निर्देश 

डिजिटल डेस्क, मुंबई, कृष्णा शुक्ला। जब मां घर की मालिक हो तो बहू-बेटे को मां को उसके घर से बेदखल करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यह बात कहते हुए बांबे हाईकोर्ट ने मां को परेशान व प्रताड़ित करने वाले बहू-बेटे को मां का फ्लैट खाली करने का निर्देश दिया है। इससे पहले वरिष्ठ नागरिक कल्याण न्यायाधिकरण ने 28 जुलाई 2022 को मां की शिकायत के बाद बहू-बेटे को महानगर के घाटकोपर इलाके में स्थित फ्लैट खाली करने का निर्देश दिया था। इसके साथ ही बेटे को अपनी मां को प्रति माह 25 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था। न्यायाधिकरण के इस आदेश के खिलाफ बहू-बेटे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने न्यायाधिकरण के फैसले को कायम रखा है। इसके साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि  वरिष्ठ नागरिक कल्याण न्यायाधिकरण को गुजारे भत्ते के रुप में दस हजार रुपए से अधिक की रकम नहीं तय कर सकता है।

न्यायमूर्ति एसवी गंगापुरवाला व न्यायमूर्ति आरएन लद्धा की खंडपीठ के सामने बेटे- बहू की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान बेटे व बहू की ओर से पैरवी करनेवाले वकील ने कहा कि जिस घर में उनकी मां रहती है उस पर उनके मुवक्किल का भी हक है। न्यायाधिकरण ने घर के दावे को लेकर मेरे मुवक्किल को सबूत पेश करने का अवसर नहीं दिया है। जहां तक बात गुजारे भत्ते के रकम की है तो न्यायाधिकरण ने अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर गुजाराभत्ता की रकम तय की है। क्योंकि मेनटेनेंस वेलफेयर ऑफ पैरेंटस् एंड सीनियर सिटीजन अधिनियम 2007 की धारा 9 के प्रावधानों के तहत 10 हजार रुपए से अधिक गुजारे भत्ते की रकम नहीं दी जा सकती है। जिस फ्लैट में मेरे मुवक्किल की मां रहती है वे दो फ्लैट मिलाकर बनाए गए हैं। मेरे मुवक्किल का दावा है कि दोनों में से एक फ्लैट मेरा है।  

वहीं मां की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि पति के निधन के बाद मेरी मुवक्किल (मां) घर की इकलौती मालिक है। हाउसिंग सोसायटी के रिकार्ड में इसका उल्लेख है। याचिकाकर्ता (बहू-बेटे) मेरी मुवक्किल को प्रताड़ित व परेशान करते हैं। इसके साथ ही उसे भावनात्मक रुप से आहत करते हैं। मेरी मुवक्किल को लगातार मेडिकल चेकअप व उपचार की जरुरत है लेकिन याचिकाकर्ता लगातार मेरी मुवक्किल की उपेक्षा कर रहे हैं। उससे जबरन दस्तावेजों (गिफ्ट डीड) पर हस्ताक्षर कराने की कोशिश की गई है। इसके बाद पुलिस में शिकायत की गई है। इसके अलावा मेरी मुवक्किल की ओर से याचिकाकर्ता को एक करोड 32 लाख रुपए दिए थे। इस रकम को भी याचिकाकर्ता ने नहीं लौटाया है। 

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि मां फ्लैट की मालिक है। इसलिए बहू-बेटे को मां को उसके घर से बेदखल करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इस लिहाज से न्यायाधिकरण का आदेश सही है। इसलिए उसे कायम रखा जाता है। चूंकि कानून में  गुजारे भत्ते के लिए दस हजार रुपए की रकम तय की गई है। इसलिए गुजाराभत्ता रकम को 25 हजार रुपए से दस हजार रुपए किया जाता है। इस फैसले के बाद याचिकाकर्ता ने खंडपीठ से अपने फैसले पर रोक लगाने का आग्रह किया। जिसे स्वीकार करते हुए खंडपीठ ने तीन सप्ताह तक के लिए अपने फैसले पर रोक लगा दी। 

 

Created On :   27 Oct 2022 7:46 PM IST

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