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टीबी से संबंधित मौतों को नियंत्रित कर सकता है संपूर्ण जीनोम सीक्वेसिंग
डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र में टीबी के विनाशकारी स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक परिणामों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने की दिशा में की जा रही कोशिशों के तहत भारत सरकार के विज्ञान और तकनीकी विभाग, सुप्रसिद्ध स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञ डॉ. वेलुमनी और जीई हैल्थकेयर व इंटेल इंडिया स्टार्टअप प्रोग्राम जैसी निजी कंपनियों द्वारा समर्थित मुंबई स्थित स्वास्थ्य-तकनीक स्टार्टअप हेस्टैकएनालिटिक्स ने भारत में टीबी महामारी को समाप्त करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए प्रमुख पल्मोनोलॉजिस्ट के साथ एक पैनल चर्चा का आयोजन किया गया।
इंडिया टीबी रिपोर्ट 2022 के अनुसार, 2020 के आंकड़ों के मुताबिक 1.3 लाख व्यक्तियों (जो कोविड से संक्रमित थे) ने टीबी की जांच कराई और इमें से 2,163 लोगों में इस बीमारी का पता चला। कुल मिलाकर, पिछले दो वर्षों में टीबी से 14,438 मौतें हुई हैं। 2021 में टीबी से लगभग 7,453 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि 2020 में 6,985 लोगों को इस बीमारी की वजह से जिंदगी गंवानी पड़ी।
चर्चा के दौरान डॉ. निखिल सारंगधर ने कहा कि कहा, “2019 के बाद से, मुंबई में 15-36 वर्ष की आयु के लोगों में टीबी निदान में वृद्धि देखी गई है। हालांकि, कोविड और महामारी और श्वसन संबंधी लक्षणों के प्रति पूर्वाग्रहों की वजह से लोगों में स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से संपर्क किए जाने के मामले में कमी देखी गई। इसके अलावा, टीबी के सभी रोगियों में से आधे से अधिक अपने प्रारंभिक निदान और उपचार के लिए निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से संपर्क किया।
स्वास्थ्य संबंधी सलाह लेने में देरी हुई और इसकी वजह से इलाज शुरू करने में विलंब हुआ, जिसकी वजह से मौतें हुईं। फिर भी, महाराष्ट्र में टीबी को कम करने के लिए कई पहल की गई हैं, और हाल ही में 1,000 से अधिक भारतीयों ने करीब 7,000 से अधिक टीबी मरीजों को गोद लिया है ताकि उनके बेहतर उपचार के लिए व्यावसायिक, नैदानिक और पोषण संबंधी सहायता प्रदान की जा सके। देश भर में सबसे अधिक गोद लेने के मामलों के साथ महाराष्ट्र इस सूची में सबसे ऊपर है।”
डॉ. पंकज बांग ने कहा, " बीमारी के बोझ में विविधता और भिन्नता को देखते हुए, गैर-पारंपरिक हितधारकों जैसे निगमों, नागरिक समाज, युवा लोगों, समुदाय-आधारित संगठनों (सीबीओ) और समुदाय के सदस्यों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है। ये सभी टीबी के खिलाफ जंग जीतने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
सरकार और संबंधित समुदाय के समर्थन से जीनोम सिक्वेंसिंग जैसी अगली पीढ़ी की मेडटेक की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल करने में मदद करने के लिए योगदान के बारे में जिक्र करते हुए हेस्टैक एनालिटिक्स के सीईओ और सह संस्थापक डॉ. अनिर्वाण चटर्जी ने कहा कि हेस्टैक एनालिटिक्स में हमारा लक्ष्य उन तकनीकों को नवोन्मेषी और सक्षम बनाना है जो मौजूदा नैदानिक पारिस्थितिकी तंत्र में मौजूद खाई और चुनौतियों को पाटती हैं। संपूर्ण जीनोम सीक्वेसिंग टीबी का पता लगा सकता है और बहुत तेज दर पर डीएसटी प्रोफाइल के बारे में अनुमान लगा सकता है।
Created On :   6 Sept 2022 8:47 PM IST