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एक साल के भीतर क्यों पूरी नहीं हो रही पॉक्सो मामलों की सुनवाई
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बाल यौन उत्पीड़न प्रतिबंधक कानून (पाक्सो) के तहत होनेवाले अपराध के अरोपपत्र का संज्ञान लेने के बाद मुकदमे की सुनवाई को एक साल में पूरा करने का प्रावधान है। फिर क्यों पाक्सों की अदालतें इस समय सीमा के भीतर मुकदमे की सुनवाई को पूरा करने में असमर्थ हैं। हाईकोर्ट ने एक ऐसे मामले को लेकर यह बात कहीं है, जिसमें 6 साल की अवधि में सिर्फ दो गवाहों की गवाही हुई है और दस गवाहों की गवाही अभी बाकी है।
हाईकोर्ट में साल 2016 के पाक्सो मामले के आरोपी के जमानत आवेदन पर सुनवाई चल रही है। इस मामले में पीड़िता का बयान आठ साल बाद रिकार्ड किया गया है। कोर्ट ने मुंबई की संबंधित पाक्सो कोर्ट को अब मामले से जुड़े आरोपी के खिलाफ 6 माह के भीतर सुनवाई पूरा करने को कहा है। यदि 6 माह में सुनवाई पूरी नहीं होती है, तो आरोपी देरी को आधार पर बनाकर दोबारा जमानत के लिए आवेदन करने के लिए हकदार होगा।
न्यायमूर्ति भारती डागरे ने कहा कि एक उद्देश्य के तहत पाक्सो अदालत को मुकदमे की सुनवाई को पूरा करने के लिए एक निश्चित समय का प्रावधान किया गया है कि ताकि पीड़िता को ज्यादा असुविधा व अपमान का सामना न करना पड़े। फिर क्यों अदालते पाक्सो के मुकदमों की सुनवाई को तय समय में पूरा करने में असमर्थ है। न्यायमूर्ति ने मुंबई सत्र न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश को इस बारे में रिपोर्ट देने को कहा है।
रिपोर्ट में प्रधान न्यायाधीश को साफ करने को कहा है कि वे बताए कि अदालत में कौन से साल के मुकदमे कब से प्रलंबित हैं। ताकि उपयुक्त निर्देश जारी किए जा सके। न्यायामूर्ति ने प्रधान न्यायाधीश को अपने रिपोर्ट में विभिन्न पाक्सो अदालतों को सुनवाई के लिए आवंटित किए गए मामलों की संख्या में भिन्नता को लेकर भी जानकारी देने को कहा है। क्योंकि किसी कोर्ट को 1228 मामले आवंटित किए गए हैं, तो किसी कोर्ट को 1070 जबकि किसी कोर्ट को सिर्फ 138 व 116 मामले सुनवाई के लिए दिए गए हैं।
Created On :   4 Aug 2022 10:07 PM IST