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बगैर छानबीन के फ्लैट खरीदने वाले खुद जिम्मेदार : हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने बगैर जरुरी जानकारी के फ्लैट खरीदनेवालों को कड़ी फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने कहा कि बिना छानबीन के फ्लैट खरीदने के लिए फ्लैट धारक खुद जिम्मेदार है। हाईकोर्ट ने यह बात विरार की 20 इमारतों में रह रहे लोगों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। जिन जगहों पर यह इमारते बनी हैं वह जगह जनसुविधाओं के लिए रोड व खेल के मैदान के लिए आरक्षित थे। याचिका में मुख्य रुप से वसई-विरार महानगरपालिका की ओर से इमारतों को गिराने को लेकर जारी नोटिस को चुनौती दी गई है। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति बीपी कुलाबावाल की खंडपीठ के सामने इमारतो में रह रहे लोगों की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि उनके मुवक्किलों ने फ्लैट की खरीद को लेकर बिल्डर के साथ बकायदा पंजीकृत विक्री अनुबंध किया है। इसके अलावा वे मनपा को संपत्ति कर का भुगतान भी कर रहे हैं। यहीं नहीं बैंक ने इमारत में बने फ्लैट के लिए कर्ज भी प्रदान किया है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि सड़क व खेल के मैदान के लिए आरक्षित जमीन में वे किसी भी तरह का अवैध निर्माण बर्दाश्त नहीं करेंगे। यदि इमारत महानगरपालिका के विकास प्रारुप में अवरोध पैदा करती है तो उन्हें गिराया जाना चाहिए। खंडपीठ ने फिलहाल इन इमारतों को बनाने वाले भवननिर्माता से लिखित आश्वासन मांगा है कि वह स्वयं इमारत को खाली कराए और वहां पर रह रहे लोगों का अपनी जमीन पर पुनर्वास सुनिश्चित करे। यदि भवन निर्माता ऐसा नहीं करता है तो महानगरपालिका को इमारत को गिराने की अनुमति प्रदान कर दी जाएगी। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जनता के लिए सुनिश्चित की गई जनसुविधाएं उन तक पहुंचनी ही चाहिए। कोई इन सुविधाओं पर अडंगा नहीं लगा सकता है। खंडपीठ ने मामले की सुनवाई एक सप्ताह बाद रखी है।
मेडिकल के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के प्रवेश में में मराठा आरक्षण लागू करने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका
उधर मेडिकल के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के एडमिशन में मराठाओं को दिए गए 16 प्रतिशत आरक्षण को लागू किए जाने के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। मुंबई व पुणे के छात्रों की ओर से याचिका में दावा किया गया है कि मेडिकल के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की प्रवेश प्रक्रिया पिछले साल ही शुरु हो गई थी इसलिए इस साल मराठा आरक्षण को प्रवेश प्रक्रिया में न लागू किया जाए। मंगलवार को न्यायमूर्ति भूषण गवई की खंडपीठ के सामने इस याचिका पर सुनवाई होगी।
विरोध में दूध फेकने का अधिकार है-हाईकोर्ट
इसके अलावा लोकतांत्रिक समाज में विरोध व असहमति व्यक्त करने के अधिकार को सीमित अथवा संकुचित नही रखा जा सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने दूध की कीमतों को बढाने की मांग को लेकर स्वाभीमानी शेतकरी संगठन द्वारा विरोध स्वरुप दूध को रास्ते में गिराकर नष्ट किए जाने के मुद्दे को लेकर यह टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ ने कहा है कि यदि दूध को पैदा करनेवाले को महसूस होता है कि दूध को नष्ट करने से लोगों का ध्यान उसकी पीड़ा की ओर जाएगा तो वह विरोध स्वरुप अपना दूध फेक सकता है। विरोध व असहमति का अधिकार दूध पैदा करनेवाले मालिक को दूध फेकने का अधिकार प्रदान करता है।
दरअसल स्वाभिमान शेतकरी संगठन द्वारा दूध की कीमत को लेकर किए जा रहे आंदोलन के दौरान नष्ट किए जा रहे दूध को लेकर हाईकोर्ट को 23 अगस्त 2018 को एक पत्र लिखा गया था। हाईकोर्ट ने इस पत्र का स्वस्फूर्त संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका में परिवर्तित किया था। पत्र में कहा गया था कि दूध की कीमतों को लेकर हो रहे आंदोलन के दौरान जो दूध नष्ट किया जा रहा है उससे आम आदमी को नुकसान हो रहा है। इसलिए दूध को जब्त करके बजार में बेचा दिया जाए। पत्र पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में विरोध व असहमति व्यक्त करने को सीमित अथवा तंग नहीं किया जा सकता है। दूध को फेकना है या नहीं यह तय करने का अधिकार दूध पैदा करनेवाले मालिक का है। हालांकि खंडपीठ ने कहा कि खाद्य पदार्थ को नष्ट करना अपेक्षित नहीं है लेकिन खाद्य पदार्थ का क्या करना यह उसके मालिक पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
Created On :   22 April 2019 9:15 PM IST