Pune News: तलेगांव दभाड़े नगरपरिषद चुनाव: बदलते समीकरणों के बीच सत्ता की नई परिभाषा

तलेगांव दभाड़े नगरपरिषद चुनाव: बदलते समीकरणों के बीच सत्ता की नई परिभाषा
  • 25 वर्षों की सत्तापालट परंपरा को 2025 में मिला अनपेक्षित मोड़
  • बुनियादी मुद्दों को किया नजरअंदाज़

भास्कर न्यूज, पिंपरी चिंचवड़। अगर तलेगांव दाभाड़े नगरपरिषद चुनावों का इतिहास देखें, तो पिछले 25 वर्षों में तलेगांव दभाड़े में कभी स्थिरता नहीं देखी गई। पानी, सड़क, सफाई और भ्रष्टाचार जैसे बुनियादी नागरिक मसलों पर लोगों ने हमेशा भाजपा और कभी राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेतृत्व वाले शहर विकास आघाड़ी पर भरोसा किया है। यहां की सत्ता हमेशा बदलती रही है। 2016-17 के चुनाव इस परंपरा से बिल्कुल अलग थे। सामाजिक कार्यकर्त्ता किशोर अवारे ने ‘जन सेवा विकास समिति’ बनाकर राजनीति में प्रवेश किया और पहली कोशिश में ही उन्होंने पारंपारिक चुनाव को बदलकर खुद को ‘किंगमेकर’ के तौर पर स्थापित किया। तलेगांव का पॉलिटिकल माहौल तभी बदला। हालांकि, अब पुनः तस्वीर बदलती नजर आ रही है और मतदाताओं की बजाय चुनिंदा प्रस्थापित नेताओं के हाथों में जा रहे हैं।

- बुनियादी मुद्दों को किया नजरअंदाज़

चुनाव में सबसे बड़ा बदलाव यह है कि जो राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे की कट्टर दुश्मन थीं, उन्होंने एक साथ आकर अस्थायी गठबंधन बनाया और 28 में से 19 सीटें बिना किसी विरोध के जीतने में कामयाब रहीं। इस बार चुनाव प्रचार से वे नागरिक मुद्दे लगभग गायब हो गए हैं, जिनसे तख्तापलट हो सकता था। हालांकि गठबंधन ने विकास और शांति, इन दो शब्दों पर पूरी रणनीति तैयार की है, लेकिन नागरिकों में यह नाराजगी दिखने लगी है कि बुनियादी मुद्दों को नजरअंदाज किया गया है। पिछले दो-तीन दशकों में मावल में कांग्रेस, शिवसेना, मनसे, आरपीआई जैसी पार्टियों की संगठन की ताकत कमजर हुई है। चुनाव के दौरान, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या भाजपा की छाया में जाने की उनकी आदत बढ़ी और उनका स्वतंत्र राजनीतिक वजूद कमजोर रहा। गठबंधन के खिलाफ जनता की सहानुभूति की लहर के बावजूद, ये पार्टियां एक भी सीट पर एक भी काबिल उम्मीदवार नहीं उतार सकीं। कुछ जिन्होंने हिम्मत की, वे आखिर में बिना शर्त के मैदान में उतर गईं, जिससे चुनावी मैदान में मुकाबला कम हो गया। कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों ने इस चुनाव में रोमांच बनाए रखा है। अगर पांच वार्ड की नौ सीटों पर चुनाव लड़ रहे निर्दलीय उम्मीदवार कामयाब होते हैं, तो वे एक साथ आकर एक मज़बूत विपक्ष के तौर पर सदन में जगह बना सकते हैं। हालांकि तलेगांव दभाड़े की राजनीति में अभी गठबंधन का दबदबा है, लेकिन निर्दलीय उम्मीदवारों का परफॉर्मेंस चुनाव का रुख बदल सकता है। 3 दिसंबर को वोटों की गिनती के बाद ही आधिकारिक तस्वीर साफ होगी।


Created On :   25 Nov 2025 4:39 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story