Pune News: तेंदुओं के डर से जिले के गांवों में नहीं हो पा रहे विवाह

तेंदुओं के डर से जिले के गांवों में नहीं हो पा रहे विवाह
  • लोग तोड़ रहे रिश्ते, माता-पिता चिंतित
  • मजदूरों का जीवन खतरे में, बच्चों पर भी मंडरा रहा है संकट

भास्कर न्यूज, पुणे। तेंदुए के डर के कारण जिले के इन गांवों में सैकड़ों युवाओं के विवाह रुक गए हैं। कोई अपनी लड़की इन गांवों में देने को तैयार नहीं है, जिन्होंने रिश्ता तय कर दिया था वे भी तोड़ रहे हैं। माता-पिता चिंतित हैं। तेंदुए के डर से इस क्षेत्र के युवाओं के गृहस्थ जीवन के सपने अधूरे रह जाने का भय सता रहा है।यह चौंकाने वाला सच पुणे जिले के खेड़, आंबेगांव, जुन्नर और शिरूर तहसीलों के गांवों का है। अब इस क्षेत्र के नागरिक बस यही सवाल पूछ रहे हैं कि तेंदुओं का बंदोबस्त कब होगा और रुकी हुई इन शादियों का शुभ मुहूर्त कब निकलेगा?

- रिश्तेदारों का इनकार

लड़कियों के माता-पिता अपनी बेटी को इस इलाके में देने के लिए तैयार नहीं हैं। इन प्रभावित गांवों में अपनी लड़की का रिश्ते जोड़ने से साफ इनकार कर रहे हैं। जिसके कारण सैकड़ों युवा अविवाहित रह गए हैं। तेंदुओं के डर के कारण प्यारे भांजे-भांजियों को छुट्टियों में मामा का गांव भी अब अच्छा नहीं लग रहा है। खेतों में झुंड में घूमने वाले तेंदुओं के समूह ने कई बार पशुओं पर हमला किया हुआ है। कई लोगों की जान भी ले ली है। इसका गहरा असर अब सामाजिक जीवन पर भी दिखाई देने लगा है। गांव के कई युवा शिक्षित हैं, नौकरी करते हैं और स्थायी हैं, फिर भी तेंदुए की दहशत के कारण उनकी शादियां नहीं हो पा रही हैं। अभिभावकों की चिंताएं बढ़ गई हैं।

तेंदुए का आतंक: गन्ना कटाई मजदूर और बस्ती दोनों निशाने पर

मजदूरों का जीवन खतरे में, बच्चों पर भी मंडरा रहा है संकट

पिछले कुछ दिनों में पुणे जिले के ग्रामीण और शहरी दोनों ही हिस्सों में तेंदुए की मौजूदगी और हमलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। जहां गन्ना कटाई मजदूर मृत्यु के साए में काम करने को मजबूर हैं, वहीं रिहाइशी इलाकों में भी तेंदुए दिखाई देने से दहशत का माहौल है। मंचर, हड़पसर और मुलशी जैसे क्षेत्रों से लगातार हमलों और तेंदुए के दिखने की खबरें आ रही हैं। जिससे नागरिकों की सुरक्षा पर बड़ा सवालिया निशान लग गया है। वन विभाग ने कई जगहों का दौरा किया है, लेकिन नागरिकों और किसानों ने तत्काल पिंजरे लगाकर तेंदुए को पकड़ने की मांग की है।

- तेंदुए के डर के साए में गन्ना कटाई

आंबेगांव सहित पूरे जिले में गन्ना कटाई में तेजी आ गई है। हालांकि, इस मौसम में गन्ने का खेत ही तेंदुए का ठिकाना बन गया है, और गन्ना कटाई मजदूर मृत्यु के साए में काम करने को मजबूर हैं। गन्ना कटाई के खेत में काम करने वाले मजदूर अपने परिवारों और छोटे बच्चों के साथ तेंदुए के इस आवास में रह रहे हैं, जिससे वे डर के साए में जी रहे हैं। शाम होते ही अंधेरा फैल जाता है, और उस अंधेरे में तेंदुए के आहट की आशंका उन्हें हर पल सताती है। कटाई की जगह पर उन्होंने गन्ने के पत्तों की झोपड़ी बनाकर वहीं संसार बसा लिया है। कुछ महिलाओं की साड़ियों के झूले में बच्चे सो रहे होते हैं, जबकि कुछ छोटे बच्चे गन्ने के ढेर में खेल रहे होते हैं। उनकी देखभाल के लिए कोई भी स्थायी रूप से मौजूद नहीं होता। फिर भी, ये परिवार काम नहीं रोक सकते, क्योंकि यह उनकी रोजी-रोटी का सवाल है।

-जीवन की गाड़ी चलाने के लिए रोज जोखिम उठाते हैं मजदूर

तेंदुए का उपद्रव, सांपों का खतरा और अंधेरे में छिपे संकट इन सबसे जूझते हुए गन्ना कटाई मजदूर रोज नई लड़ाई लड़ते हैं। महिलाओं को रात में नींद भी नहीं आती है। उनके लिए हर आवाज डर का प्रतीक बन जाती है। गन्ना कटाई मजदूरों के टोलों में छोटे बच्चों की संख्या अधिक है। इन बच्चों की सुरक्षा का प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है। तेंदुए के हमले की तलवार उनके सिर पर लटकी हुई है, और फिर भी जीवन की गाड़ी चलाने के लिए वे रोज जोखिम उठाते हैं।

गन्ना कटाई आजीविका है, लेकिन उसी गन्ने के खेत में तेंदुआ घात लगाकर बैठा रहता है। काम बंद करें तो पेट को रोटी नहीं, और काम करें तो जान का डर है। यह है गन्ना कटाई मजदूरों का संघर्ष।

- धोंडीभाऊ भोर, गन्ना उत्पादक किसान, वलती

Created On :   15 Nov 2025 5:14 PM IST

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