सेवाग्राम: गांधीजी के राम - मानवसेवा को माना ईश्वर की सेवा, दोनों समय गूंजती है प्रार्थना

गांधीजी के राम - मानवसेवा को माना ईश्वर की सेवा, दोनों समय गूंजती है प्रार्थना
  • दोनों समय सेवाग्राम में गूंजते हैं प्रार्थना के स्वर
  • उपनिषदों के श्लाेकों का निरंतर पठन होता है
  • मगनवाड़ी की छत पर होती थी प्रार्थना

डिजिटल डेस्क, वर्धा, प्रणिता राजुरकर। मानवसेवा को ही ईश्वरसेवा मानने वाले महात्मा गांधी के सेवाग्राम स्थित आश्रम में आज भी ‘रघुपति राघव राजाराम’ के स्वर गूंजते हैं। हमारे आदर्श के आदर्श थे प्रभु श्रीराम। रामराज्य का सपना मन मंे संजोए वे इस भौतिक जगत से तो विदा हो गए लेकिन अपनी कर्मभूमि में अपने विचारों की अमिट छाप छोड़ गए। महात्मा गांधी की कर्मभूमि के रूप में विख्यात वर्धा जिले में ऐसे अनेक स्थान और संस्थान हैं जहां आज भी ‘मानव सेवा को ईश्वरसेवा’ मानकर गांधीजी के विचारों का अनुसरण किया जा रहा है। देश का पहला लेप्रोसी सेंटर गांधीजी ने इसी जिले में स्थापित किया था। मगन संग्रहालय, पवनार स्थित विनोबा भावे का आश्रम यह कुछ ऐसे स्थान हैं जहां मानवसेवा ही परमोधर्म है।

दोनों समय सेवाग्राम में गूंजते हैं प्रार्थना के स्वर, उपनिषदों के श्लाेकों का निरंतर पठन होता है

वर्ष 1936 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित सेवाग्राम आश्रम उनके विचारों का प्रतिबिंब है। आज भी उनके द्वारा स्थापित नीतिमूल्यों का यहां कड़ाई से पालन होता है। उनके द्वारा शुरू की गई प्रार्थना की परंपरा 88 वर्ष बाद भी बरकरार है। प्रतिदिन दोनों समय यहां पर प्रार्थना के स्वर गूंजते हैं। ‘रघुपति राघव राजा राम..’ के भजन के साथ सर्वधर्मीय प्रार्थना होती है। इस प्रार्थना में देश के विभिन्न धर्मों को साथ लेकर चलते हुए बेहतर समाज निर्माण यानी रामराज्य का सार छिपा हुआ है। यहां उपनिषदों के श्लाेकों का निरंतर पठन होता है। सेवाग्राम आश्रम में प्रतिदिन सुबह 4 बजकर 45 मिनिट पर प्रार्थना होती है जिसमें उपनिषद के श्लोक यानी यजुर्वेद, ऋग्वेद के श्लोकों का पठन कर वैदिक प्रार्थना की जाती है।

इसमें ‘ईशावास्यं इदं सर्वं यत् किञ्च जगत्यां जगत। तेन त्यक्तेन भुञ्जिथाः मा गृधः कस्य स्विद् धनम्’ सहित अनेक वैदिक श्लोकों का समावेश होता है। शाम 6 बजे दूसरी प्रार्थना होती है जो सर्वधर्म समभाव का संदेश देती है। तत्पश्चात रामधुन और फिर भजन होता है। इस आश्रम के जर्रे-जर्रे में महात्मा गांधी की सूक्ष्म उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है। यहां होनेवाली नित्य प्रार्थनाओं का स्वरूप आज भी वैसा ही है जैसा वर्ष 1936 में था, जब महात्मा गांधी ने यह प्रार्थनाएं शुरू की थीं। इसका संचालन आज भी उसी तरह होता है जैसा उन्होंने शुरू करवाया था।

जापानी भाषा के मंत्र से हाेती है प्रार्थना की शुरुआत

सेवाग्राम आश्रम में दोनों समय की प्रार्थना की शुरुआत जापानी भाषा के शब्दों से होती है। जापानी भाषा में होनेवाली इस बौद्ध प्रार्थना के शब्द हैं, ‘नम्यो हो रेंगे क्यों’ यानी ‘बुद्धजनों आत्मज्ञानियों को नमस्कार’। इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। जापानी बौद्ध भिक्षु निचिदाचु फुजी गुरुजी के शिष्य आनंद का सेवाग्राम आश्रम मंे आगमन हुआ था। वे अपने शिष्य केशव के साथ हमेशा इस मंत्र का जाप किया करते थे। इसी बीच उन्हेंं अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और तभी से ‘नम्यो हो रेगे क्यों’ इस मंत्र को दोनों समय की प्रार्थना में शामिल कर लिया गया।

मगनवाड़ी की छत पर होती थी प्रार्थना

महात्मा गांधी जब साबरमती आश्रम से सेवाग्राम पहुंचते तो मगनवाड़ी में ठहरा करते थे। यहां पर उनकी सामूहिक प्रार्थना मकान की छत पर ही हुआ करती थी।

प्रार्थना में सभी धर्मों को स्थान

अविनाश काकड़े, कार्यकारी सदस्य, सेवाग्राम आश्रम समिति के मुताबिक आश्रम में लगातार 88 वर्ष से दो समय प्रार्थना होती है। प्रार्थना का स्वरूप हूबहू वैसा ही है, जैसा महात्मा गांधी ने शुरू किया था। महात्मा गांधी के विचारों पर चलनेवाले सेवाग्राम आश्रम की प्रार्थना में हमारे देश के विभिन्न धर्मों को स्थान दिया गया है ताकि सामाजिक एकता बनी रहे।



Created On :   30 Jan 2024 2:07 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story