आइये जानें: भारत के पाँच महान संत जिन्होंने विश्व को दी आध्यात्मिक दिशा

विश्व की आध्यात्मिक धरोहर को अगर किसी देश ने विशेष रूप से समृद्ध किया है, तो भारत का नाम उस सूची में शीर्ष पर आता है। गंगा-यमुना की इस भूमि पर जन्मे कई संतों और महापुरुषों ने न केवल भक्ति का दीप जलाया, बल्कि मानवता को निष्काम प्रेम, करुणा और समता की राह दिखाई।
आइये जानें ऐसे पाँच संतों के बारे में — संत कबीरदास, संत रविदास, गोस्वामी तुलसीदास, जगद्गुरु कृपालु जी महाराज और स्वामी हरिदास — जिनकी वाणी, काव्य और जीवन दर्शन आज भी जनमानस को प्रेरणा दे रहे हैं।
संत कबीरदास: सत्य और समानता के निर्भीक प्रवक्ता
संत कबीर का जन्म 15वीं शताब्दी में वाराणसी के पास लहरतारा में हुआ था। कहा जाता है कि उन्हें एक जुलाहा दंपति, नीरू और नीमा ने पाला था। उन्होंने न किसी मजहब की दीवार मानी, न ही जाति-पाँति की।
कबीर ने भक्ति का प्रचार किया। उन्होनें अंधविश्वास और पाखंड का खुलकर विरोध किया और समाज को प्रेम और करुणा के सूत्र में बाँधने का संदेश दिया। उनकी रचनाएं सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं।
प्रसिद्द रचना:
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय; जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे; एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।
जगद्गुरु कृपालु जी महाराज: आधुनिक युग के भक्ति आचार्य
बीसवीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में जन्मे श्री कृपालु जी महाराज को 1957 में काशी विद्वत परिषद् द्वारा जगद्गुरु की उपाधि दी गई — जो अब तक केवल चार आचार्यों को प्राप्त हुई थी। वे वेद, उपनिषद, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मसूत्र आदि शास्त्रों के अप्रतिम ज्ञाता थे, परंतु उनका मुख्य संदेश था निष्काम प्रेम और भक्ति को जन-जन में स्थापित करना।
उन्होंने हजारों पदों की रचना की। उनके ग्रन्थ प्रेम रस मदिरा, भक्ति शतक, राधा गोविंद गीत आदि राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम की सरिता बहाते हैं। उन्होंने रूपध्यान मेडिटेशन यानी भगवान के स्वरूप पर ध्यान केंद्रित करने की विधि को विशेष रूप से महत्त्व दिया। पूर्ववर्ती चारों मूल जगद्गुरुओं के सिद्धांतों का समन्वय करते हुए उन्होनें अपना सिद्धांत प्रकट किया जिसे "जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्त्वदर्शन" के नाम से जाना जाता है। अपने ग्रन्थ प्रेम रस सिद्धांत में उन्होनें ईश्वर प्राप्ति के व्यावहारिक मार्ग की व्याख्या विस्तार से की है।
कृपालु जी महाराज ने वृन्दावन में प्रेम मंदिर, प्रतापगढ़ में भक्ति मंदिर और बरसाना में कीर्ति मंदिर जैसे लोकप्रिय मंदिरों की स्थापना की। उनके द्वारा स्थापित गैर लाभकारी धर्मार्थ संस्था जगद्गुरु कृपालु परिषत् आज भी शिक्षा, चिकित्सा और आध्यात्मिक उत्थान के क्षेत्र में कार्यरत है।
प्रसिद्द रचना:
हरि गुरु भजु नित गोविन्द राधे, भाव निष्काम अनन्य बना दे।
सौ बातन की बात इक, धरु मुरलीधर ध्यान; बढ़वहु सेवा वासना, यह सौ ज्ञानन ज्ञान।
संत रविदास: आत्मसम्मान और समता के प्रतीक
संत रविदास का जन्म वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर नामक स्थान पर एक चमड़े का कार्य करने वाले परिवार में हुआ था। समाज में व्याप्त छुआछूत और जातीय भेदभाव के बीच उन्होंने आध्यात्मिकता की वह लौ जलाई जो सबके लिए समान थी। उन्होंने बेगमपुरा नाम की एक ऐसी दिव्य नगरी की कल्पना की जहाँ न दुःख हो, न भेदभाव, बस प्रेम और शांति हो। उनकी वाणी आज भी सामाजिक समरसता और आत्मगौरव का प्रेरणास्रोत है।
प्रसिद्द रचना:
जाति-पाति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।
मन चंगा तो कठौती में गंगा।
स्वामी हरिदास: रसिक भक्त और संगीतज्ञ
स्वामी हरिदास का जन्म 15वीं शताब्दी में वृंदावन के पास हुआ था। वे श्री राधा-कृष्ण के परम रसिक भक्त और ब्रज भाषा के महान कवि थे। उनके द्वारा रचित पदों में भक्ति की मधुरता और रास का उल्लास झलकता है। वे हरिदासी संप्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं।
स्वामी हरिदास का एक और महत्त्वपूर्ण योगदान यह है कि वे महान संगीतज्ञ तानसेन के गुरु थे। उन्होंने संगीत को केवल कला नहीं, बल्कि ईश्वर से जुड़ने का साधन बताया।
प्रसिद्द रचना:
जौं लौं जीवै तौं लौं हरि भजु, और बात सब बादि।
काहू को बस नाहिं तुम्हारी कृपा तें, सब होय बिहारी बिहारिनि।
गोस्वामी तुलसीदास: रामभक्ति के लोकनायक
16वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश राज्य के कासगंज ज़िले में स्थित सोरों गांव में जन्मे गोस्वामी तुलसीदास जी ने जिस तरह रामकथा को आमजन तक पहुँचाया, वह अभूतपूर्व था। उन्होंने अवधी जैसी लोकभाषा में रामचरितमानस लिखी, जिससे वह हर वर्ग के लोगों की समझ में आने लगी। उनकी रचनाओं ने केवल धार्मिक चेतना ही नहीं जगाई, बल्कि लोगों के आचरण, सोच और व्यवहार को भी परिवर्ततित किया।
प्रभु राम की मर्यादा, भक्ति, सेवा, दया और सत्य जैसे गुणों को उन्होंने बड़े सहज और हृदयस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया। उनकी लिखी हनुमान चालीसा आज करोड़ों लोगों के जीवन का अभिन्न अंग है।
प्रसिद्द रचना:
सीय राम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी।
कवन सो काज कठिन जग माही, जो नहीं होइ तात तुम पाहीं।
Created On :   23 July 2025 12:55 PM IST