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दैनिक भास्कर हिंदी: विश्वकर्मा जयंती: विश्व के पहले इंजीनियर का जन्मदिन
डिजिटल डेस्क, भोपाल। विश्व के पहले इंजीनियर के जन्मदिवस को देशभर में विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2018 को सोमवार के दिन मनाई जाएगी। प्रत्येक वर्ष विश्वकर्मा पूजा सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश होने पर या कन्या सक्रांति पर मनाई जाती है। इस दिन श्री विश्वकर्मा जी का जन्म दिवस होता है जिस कारण इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं।
श्री विश्वकर्मा जी को पृथ्वी का प्रथम इंजीनियर या वास्तुकार माना जाता है। इस दिन कारखानों, उद्योगों, फेक्ट्रियों, हर प्रकार की मशीनों और औजारों की पूजा की जाती है। इनकी पूजा सभी कलाकार, बुनकर, शिल्पकार, औद्योगिक घरानों और फैक्ट्री के मालिकों द्वारा की जाती है। इस दिन अधिकतर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा करते हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य प्रतिमा स्थापित कर उनकी सेवा आराधना की जाती है।
बताया जाता है कि प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थी, प्राय: सभी को विश्वकर्मा जी ने बनाया है। सतयुग का 'स्वर्ग लोक', त्रेता युग की 'लंका', द्वापर की 'द्वारिका’ हस्तिनापुर' और इन्द्रप्रस्थ आदि सभी विश्वकर्मा जी द्वारा ही रचित हैं। 'सुदामापुरी' की रचना के विषय में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा जी ही थे।
श्री विश्वकर्मा जी की उत्पत्ति की कथा :-
सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम एक बार 'नारायण' अर्थात श्री हरी विष्णु क्षीर सागर में शेषशय्या पर विश्राम कर रहे थे और उनकी नाभि पर पुष्प कमल पर चर्तुमुख ब्रह्मा जी बैठे थे।
भगवान विश्वकर्मा जी के अनेक रूप दर्शाए गए हैं-
दो भुजाधारी, चार भुजाधारी एवं दस भुजाधारी तथा एक मुखी, चतुर्मुख मुखी एवं पंचमुखी वाले रूप दर्शाए गए हैं। विश्वकर्मा जी के पांच पुत्र हुए 1- मनु, 2- मय, 3- त्वष्ठा, 4- शिल्पी, 5- दैवज्ञ
ऋषि मनु – ये “सानग गोत्र” के कहे जाते हैं । ये लोहे के कर्म के उध्दगाता हैं। इनके वंशज लोहकार के रुप में जाने जाते हैं
ऋषि मय – ये सनातन गोत्र के कहे जाते हैं। ये बढई के कर्म के उद्धगाता हैं। इनके वंशज काष्टकार के रुप में जाने जाते हैं।
ऋषि त्वष्ठा – इनका दूसरा नाम त्वष्ठा है जिनका गोत्र अहंभन है। इनके वंशज ताम्रक के रूप में जाने जाते हैं।
ऋषि शिल्पी – इनका दूसरा नाम शिल्पी है जिनका गोत्र प्रयत्न है। इनके वंशज शिल्पकला के अधिष्ठाता हैं और इनके वंशज संगतराश भी कहलाते है इन्हें मुर्तिकार भी कहते हैं।
ऋषि दैवज्ञ - दैवज्ञ को सोने-चांदी एवं रत्नों के कार्य से जोड़ा जाता इन्हें स्वर्णकार भी कहते हैं।
भगवान विश्वकर्मा पूजा विधि
विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रातः काल स्नान आदि करने के बाद पत्नी सहित पूजा स्थान पर बैठें।
इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करते हुए हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर-
ॐ आधार शक्तपे नम:, ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम: और ॐ पृथिव्यै नम:
कहते हुए चारों दिशाओं में अक्षत छिड़कें और पीली सरसों लेकर चारों दिशाओं को बांधे।
अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधे तथा पत्नी को भी रक्षासूत्र बांधे।
पुष्प जल पात्र में छोड़ें। हृदय में भगवान श्री विश्वकर्मा जी का ध्यान करें।
रक्षा दीप जलाएं, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें।
शुद्ध भूमि पर अष्टदल (आठ पंखुड़ियों वाला) कमल बनाएं। उस स्थान पर सात अनाज रखें। उस पर मिट्टी और तांबे का जल डालें।
इसके बाद पंचपल्लव (पाँच वृक्षों के पत्ते), सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश को ढ़क दें। एक अक्षत (चावल) से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें फिर वरुण देव का आह्वान करें।
पुष्प चढ़ाकर कहें – हे भगवान् विश्वकर्मा जी, इस प्रतिमा में विराजमान होकर मेरी पूजा को स्वीकार कीजिए। इसके बाद कथा पढ़ें, सुनें और सुनाएं।
विश्वकर्मा जी की प्रचलित कथा :-
एक बार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण था, परंतु अनेक नगरों में भ्रमण करने पर भी भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था। अपने पति की भांति रथकार की पत्नी भी पुत्र न होने के कारण बहुत चिंतित रहा करती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए वे दोनों साधु-संतों एवं मंदिरों में जाते थे, किन्तु उनका मनोरथ पूर्ण नहीं हो रहा था।
तब एक उनके पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा जी की शरण में जाओ, तुम्हारा मनोरथ अवश्य ही पूरा होगा और अमावस्या तिथि को उनका व्रत कर भगवान विश्वकर्मा जी की कथा श्रवण करो। तब से रथकार ने अपनी पत्नी सहित अमावस्या के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, और विश्वकर्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ तब उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। भारत के अनेक भागों में इस पूजा का बहुत महत्व माना जाता है।
भोपाल: स्कोप कॉलेज में विश्वस्तरीय प्रशिक्षण वर्कशाप की स्थापना
डिजिटल डेस्क, भोपाल। स्कोप कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग ने अपने छात्र -छात्राओं के भविष्य को संवारने के लिये भारत के आटोमोबाइल क्षेत्र में अग्रणी कम्पनी हीरो मोटोकार्प के साथ एक करार किया जिसमें ऑटोमोबाइल क्षेत्र में स्किल डेवलपमेंट के लिये एक विश्वस्तरीय प्रशिक्षण वर्कशाप की स्थापना संस्था के प्रांगण में की गई है। ये अपने आप में एक अद्वतीय पहल है तथा सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। इसमें सभी नवीनतम कम्प्यूटराइज्ड मशीन के द्वारा टू-व्हीलर ऑटोमोबाइल कार्यशाला प्रशिक्षण दिया जायेगा। इस वर्कशाप में उद्घाटन के अवसर पर कम्पनी के जनरल मैनेजर सर्विसेज श्री राकेश नागपाल, श्री मनीष मिश्रा जोनल सर्विस हेड - सेंट्रल जोन, श्री देवकुमार दास गुप्ता - डी जी एम सर्विस, एरिया मैनेजर श्री राम सभी उपस्थिति थे। साथ ही संस्था के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. अजय भूषण, डॉ. देवेंद्र सिंह, डॉ. मोनिका सिंह, अभिषेक गुप्ता आदि उपस्थित थे। संस्था के सभी शिक्षकगण तथा छात्र-छात्रायें उपस्थित थे।
कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती वंदना से की गई , डॉ. मोनिका सिंह ने अतिथियों का संक्षिप्त परिचय दिया। डॉ. अजय भूषण ने सभी का स्वागत किया और बताया कि आने वाला समय कौशल विकास आधारित शिक्षा का है। कर्यक्रम में आईसेक्ट ग्रुप के कौशल विकास के नेशनल हेड अभिषेक गुप्ता ने ग्रुप के बारे मे विस्तार से बताया कि किस तरह हमेशा से आईसेक्ट ग्रुप ने कौशल विकास को हमेशा प्राथमिकता से लिया है। कार्यक्रम में एएसडीसी के सीईओ श्री अरिंदम लहिरी ऑनलाइन आकर सभी को बधाई दी तथा छात्र - छात्राओं को उनके उज्जवल भविष्य के लिये शुभाषीस भी दी।
कार्यक्रम में डॉ. देवेंद्र सिंह ने बताया कि कौशल विकास आधारित शिक्षा सनातन काल से भारतवर्ष में चली आ रही है मध्यकालीन समय में कौशल विकास पर ध्यान नही दिया गया परंतु आज के तेजी से बदलते हुए परिवेश में विश्व भर में इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही है। इसी आवश्यकता को देखते हुये स्कोप कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में कुछ ही समय में विभिन्न क्षेत्रों के सात सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की गई है जो की विभिन्न क्षेत्रों मे छात्र- छात्राओं के कौशाल विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे।
भोपाल: सीआरपीएफ की 93 महिला पुलिसकर्मियों की बुलेट यात्रा का रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में हुआ आगमन
डिजिटल डेस्क, भोपाल। इंडिया गेट से जगदलपुर के लिए 1848 किमी की लंबी बुलेट यात्रा पर निकलीं सीआरपीएफ की 93 महिला पुलिसकर्मियों का रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई ने विश्वविद्यालय परिसर में आगमन पर भव्य स्वागत किया। लगभग 300 स्वयंसेवकों तथा स्टाफ सदस्यों ने गुलाब की पंखुड़ियों से पुष्प वर्षा करते हुए स्वागत किया। वहीं उनके स्वागत में एन एस एस की करतल ध्वनि से पूरा विश्वविद्यालय परिसर गुंजायमान हो उठा। इस ऐतिहासिक बाइक रैली में शामिल सभी सैन्यकर्मियों का स्वागत विश्वविद्यालय के डीन ऑफ एकेडमिक डॉ संजीव गुप्ता, डिप्टी रजिस्ट्रार श्री ऋत्विक चौबे, कार्यक्रम अधिकारी श्री गब्बर सिंह व डॉ रेखा गुप्ता तथा एएनओ श्री मनोज ने विश्वविद्यालय की तरफ से उपहार व स्मृतिचिन्ह भेंट कर किया। कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए डिप्टी कमांडेंट श्री रवीन्द्र धारीवाल व यात्रा प्रभारी श्री उमाकांत ने विश्वविद्यालय परिवार का आभार किया। इस अवसर पर लगभग 200 छात्र छात्राएं, स्वयंसेवक व एनसीसी कैडेट्स समस्त स्टाफ के साथ स्वागत में रहे मौजूद।
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