Shukra Pradosh Vrat: भाद्रपद माह का अंतिम प्रदोष व्रत कल, जानिए मुहूर्त और पूजा विधि

भाद्रपद माह का अंतिम प्रदोष व्रत कल, जानिए मुहूर्त और पूजा विधि
  • इस व्रत में प्रदोष काल में पूजा की जाती है
  • शिव शंकर और माता पार्वती की पूजा करते हैं
  • पूजा से जीवन से नकारात्मकता समाप्त होती है

डि​जिटल डेस्क, भोपाल। हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) का बड़ा महत्व है और यह व्रत दिन के नाम के अनुकूल जाना जाता है। व्रत त्रयोदशी तिथि यानी प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन रखा जाता है। फिलहाल, भाद्रपद माह चल रहा है और प्रदोष व्रत 04 सितंबर, शुक्रवार के दिन पड़ रहा है। इसे शुक्र प्रदोष या भुगुवारा प्रदोष के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि, यह व्रत भाद्रपद माह का अंतिम व्रत है।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है, जो कि काफी फलदायी होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि शुक्र प्रदोष व्रत को करने से जीवन से नकारात्मकता समाप्त होती है और सफलता मिलती है। आइए जानते हैं मुहूर्त, पूजा विधि और सामग्री...

ति​थि कब से कब तक

त्रयोदशी तिथि आरंभ: 05 सितंबर 2025, शुक्रवार की सुबह 4 बजकर 8 मिनट से

त्रयोदशी तिथि समापन: 06 सितंबर 2025, शनिवार की सुबह 3 बजकर 12 मिनट तक

प्रदोष काल में पूजा का मुहूर्त: 05 सितंबर की शाम 6 बजकर 38 मिनट से रात 8 बजकर 55 मिनट तक

प्रदोष व्रत सामग्री

प्रदोष व्रत पर भगवान की पूजा के लिए सफेद पुष्प, सफेद मिठाइयां, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र, जनेउ, जल से भरा हुआ कलश, धूप, दीप, घी,कपूर, बेल-पत्र, अक्षत, गुलाल, मदार के फूल, धतुरा, भांग, हवन सामग्री आदि, आम की लकड़ी की आवश्यकता होती है।

व्रत विधि

शुक्र प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिए। पूरे दिन मन ही मन “ॐ नम: शिवाय ” का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सुर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिए।

संध्या काल में पुन: स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर लें । पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें। यदि व्रती चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं। पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें। कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। “ऊँ नम: शिवाय ” कहते हुए शिव जी को जल अर्पित करें।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग- अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

Created On :   4 Sept 2025 7:00 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story