BDay spl: एक ऐसा शायर जिसकी शायरी में झलके अधूरे इश्क के किस्से

डिजिटल डेस्क, मुंबई। अहले-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं, एक हम ही नहीं दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं। हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदासरी चाक दिल और भी हैं चाक क़बा और भी हैं। एक ऐसा शायर जिसकी शायरी और जिंदगी में इश्क में नाकामी नजर आई। ऐसा नहीं था कि साहिर साहब की जिंदगी बेंरग थी या फिर प्रेम की कमी थी, लेकिन फिर भी उन्हें इश्क में नाकामी ही क्यों मिलती रही। साहिर के 97वें जन्मदिन पर आज हम आपको उनकी जिंदगी के कुछ अधूरे किस्सों के बारे में बताएंगे। जिसकी झलक उनकी शायरियों में भी दिखाई दी। कई पीढ़ियों ने साहिर लुधियानवी की नज्में और गीतों ने युवा दिलों में एक खास जगह बना रखी है। 8 मार्च 1921 में लुधियाना में जन्में साहिर का असली नाम अब्दुल हई था। शायरी के लिए उन्होंने अपना नाम साहिर रख लिया और फिर अब्दुल हई तो जैसे कहीं खो ही गया। साहिर जब गवर्मेंट कालेज लुधियाना में पढ़ रहे थे तभी उनकी शायरी चर्चित होने लगी थीं।
प्यार मिला भी और बिछड़ भी गया
उन दिनों साहिर कॉलेज के हीरो बन चुके थे और उनके साथ पढ़ने वाली महिंदर चौधरी नाम की लड़की जिसे उन्होंने दिल दे दिया था। प्यार के पहले एहसास को अभी साहिर लुधियानवी ने ठीक से महसूस भी नहीं किया था कि महिंदर की तपेदिक की वजह से मौत हो गई। जिसके बाद उनकी शायरियों में गम का तड़का सा लग गया। थोड़ा समय बीता था कि साहिर की लोकप्रियता से प्रभावित हो कर कालेज में ही पढ़ने वाली एक और लड़की ईशार कौर से उनसेदोस्ती हुई, लेकिन दोनों के धर्म अलग थे, जो आज भी महत्वपूर्ण सामाजिक मसला है और उन दिनों भी था। घर वालों के दबाव में ईशार ने कालेज की पढ़ाई छोड़ दी और साहिर से हमेशा के लिए जुदा हो गयी। 1943 में साहिर की शायरी का पहला संग्रह तलखियां प्रकाशित हुआ। अब साहिर की शोहरत तेजी से फैलने लगी थी। 1944 में एक मुशायरे में पंजाबी कवियत्री और लेखिका अमृता प्रीतम ने पहली बार साहिर के साथ मंच साझा किया। मुशायरा तो देर रात खत्म हो गया, लेकिन अमृता के मन में साहिर के प्यार की लौ ऐसी जली कि अमृता सारी उम्र साहिर को प्यार करती रहीं।
बता दें के अमृता काफी समय तक उनका इंतजार करती रह गयीं। अपने इश्क के इन उतार चढ़ाव को साहिर ने बाद में फिल्मी गीतों के रूप में ढाल दिया। उनके पहले संग्रह में ही प्रकाशित हुई थी कभी कभी, जो बाद में यश चोपड़ा की फिल्म कभी कभी का टाइटिल ट्रैक बनी।
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
के जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिये
तू अबसे पहले सितारों में बस रही थी कहीं
तुझे ज़मीं पे बुलाया गया है मेरे लिए
साहिर का गीत "मैं पल दो पल का शायर हूं गीत फिल्म के माध्यम से सिर्फ पल दो पल तक का नहीं रहा बल्कि सदा सदा के लिए साहिर साहब को हमारे जेहन में बसा गया है। साहिर के जीवन में एक बार फिर से इश्क ने 1950 में दस्तक दी। कमसिन गायिका सुधा मल्होत्रा ने साहिर के दिल को फिर से धड़का दिया था। उनका एक गीत “तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमक, मेरी बात और है मैने तो मोहब्बत की है”। आज भी प्रेमियों की जुबान पर रहता है। उन दिनों कई अखबारों में साहिर और सुधा के इश्क के चर्चे छपते रहे, लेकिन 21 साल की उम्र में ही उन्हें अपने करियर को अलविदा कहना पड़ा और परिवार वालों की मर्जी से शादी करनी पड़ी। साहिर का प्यार एक बार फिर से उनसे छिन गया। जिसके बाद उनकी शायरियों में फिर से किसी के दूर हो जाने की कसक दिखी।
अगर मुझे न मिली तुम तो मैं ये समझूंगा कि दिल की राह से होकर ख़ुशी नहीं गुज़री
अगर मुझे न मिले तुम तो मैं ये समझूंगी कि सिर्फ़ उम्र कटी ज़िंदगी नहीं गुज़री
जिंदगी भर इश्क की शायरी करने वाला ये बेमिसाल शायर 25 अक्टूबर 1980 को अपनी जिंदगी की तन्हाई से घबरा कर हमेशा के लिए हमसे दूर चला गया।
अभिषेक बच्चन बनेंगे साहिर लुधियानवी
साहिर लुधियानवी ने अपनी कलम के जरिए न सिर्फ प्रेम की व्याख्या की बल्कि सरकार की नीतियों और देश के हालातों पर भी प्रहार किया। महान शायरों में शुमार साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी फिल्मी पर्दे पर भी फिल्माने की तैयारी हो चुकी है। फ़िल्म का नाम "गुस्ताखियां" रखा गया हैं। इस फिल्म में साहिर के किरदार के लिए अभिषेक बच्चन के नाम पर मुहर लग चुकी है। इस फ़िल्म का निर्देशन संजय लीला भंसाली कर रहे हैं। इससे पहले अमिताभ बच्चन भी साहिर के लिखे गीतों को पर काम कर चुके हैं। लेकिन ये पहला ऐसा मौका है जब कोई स्टार खुद साहिर की भूमिका में नज़र आएगा।
Created On :   8 March 2018 1:09 PM IST