बिहार : चंपारण सत्याग्रह की निशानी नीम का पेड़ उपेक्षित
मोतिहारी (बिहार), 29 सितंबर (आईएएनएस)। महात्मा गांधी की कर्मभूमि बिहार के चंपारण में गांधीजी से जुड़ी कई यादें हैं। ऐसा ही पूर्वी चंपाारण जिले में एक नीम का पेड़ है, जो गांधी की चंपारण यात्रा से जुड़ा हुआ है।
पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय मोतिहारी से करीब 10 किलोमीटर दूर तुरकौलिया प्रखंड कार्यालय परिसर में स्थित यह पुराना पेड़ भले ही ऐतिहासिक है, लेकिन आज इसकी स्थिति ठीक नहीं है, हालांकि जिला प्रशासन ने अब इसको बचाने की कवायद शुरू कर दी है।
पूर्वी चंपारण के गांधीवादी विचारक राय सुंदर देव शर्मा ने आईएएनएस को बताया कि देश में अंग्रेजों के अत्याचार के प्रतीक इस नीम के पेड़ में अंग्रेज उन किसानों को बांधकर कोड़ों से पिटाई करते थे, जो किसान नील की खेती का लगान (मालगुजारी) नहीं देते थे। अंग्रेज उन किसानों को भी यहां लाकर सजा देते थे, जो नील की खेती नहीं करते थे।
उन्होंने कहा कि प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की एक पुस्तक में भी इस नीम के पेड़ की चर्चा है। उन्होंने बताया कि इन्हीं अत्याचारों के कारण गांधी ने सत्याग्रह शुरू किया था। वे कहते हैं कि करीब 120 साल पुराने इस नीम के पेड़ के एतिहासिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता।
इधर, पत्रकार और गांधी विचारक कुमार कृष्णन आईएएनएस से कहते हैं, यह कोई साधारण पेड़ नहीं है, इससे एक विरासत जुड़ी हुई है। यहां गांधी आकर इस नीम के पेड़ के नीचे बैठकर लोगों से मुलाकात की थी और सत्याग्रह के लिए किसानों और ग्रामीणों को गोलबंद किया था।
उन्होंने कहा कि चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी 4 अगस्त, 1917 को इस सल पर आकर निलहों के अत्याचार की जांच की थी तथा हजारों ग्रामीणों का बयान दर्ज किया था।
जिला प्रशासन ने हालांकि इस पेड़ को लेकर अब दिलचस्पी दिखाई है। जिला प्रशासन ने वन विभाग को पेड़ के सूखने के कारणों और आवश्यक उपाय करने के निर्देश दिए हैं।
वन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि पिछले दिनों वन विभाग ने इस पेड़ से पत्तियों के गायब हो जाने के बाद इसकी जांच की थी। जांच के बाद उसकी रिपोर्ट पूर्वी चंपारण के जिलाधिकारी को दी गई है, जिसमें इस पेड़ को उपचार की जरूरत बताई गई है।
पूर्वी चंपारण के वन प्रमंडल अधिकारी (डीएफओ) प्रभाकर झा कहते हैं कि जिलाधिकारी रमण कुमार के निर्देश के बाद इस पेड़ की जांच की गई है। वन विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जांच के दौरान यह बात सामने आई है कि पेड़ के आसपास (चारों ओर) चबूतरा बना हुआ है, जिस कारण पेड़ को पूरी तरह पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पोषक तत्व और पर्याप्त भोजन नहीं मिलने के कारण पेड़ से पत्ते समाप्त हो रहे हैं तथा पेड़ पूरी तरह स्वस्थ नहीं है। इस चबूतरा को हटा देने के बाद पेड़ फिर से हरा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पेड़ के तने अभी हरे हैं। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में आसपास की मिट्टी के उपचार की जरूरत भी बताई है।
झा ने आईएएनएस को बताया कि पेड़ के आसपास के कंक्रीट संरचना को हटा दिया जाना चाहिए और पास की मिट्टी का इलाज किया जाना चाहिए। पेड़ का तना अभी भी हरा है और यह जीवित रह सकता है।
उल्लेखनीय है कि पूरे बिहार में हरित आवरण बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा लगातार पौधे लगाने पर जोर दिया जा रहा है।
बिहार में गांधी जयंती के मौके पर दो अक्टूबर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने बहुप्रतीक्षित जल-जीवन-हरियाली अभियान की भी शुरुआत करने वाले हैं। अभियान की तैयारी के बीच, सरकार का ध्यान इस ऐतिहासिक पेड़ की ओर नहीं जाना समझ से परे है।
Created On :   29 Sept 2019 1:00 PM IST