अर्जुन रामपाल ने बखूबी निभाया डॉन अरुण गवली का रोल, पढ़ें फिल्म 'डैडी' का रिव्यू

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अर्जुन रामपाल ने बखूबी निभाया डॉन अरुण गवली का रोल, पढ़ें फिल्म 'डैडी' का रिव्यू
अर्जुन रामपाल ने बखूबी निभाया डॉन अरुण गवली का रोल, पढ़ें फिल्म 'डैडी' का रिव्यू

फिल्म का नाम - डैडी

अभिनेता- अर्जुन रामपाल, फरहान अख्तर, एश्वर्या राजेश, 

निर्देशक- असीम अहलूवालिया

डिजिटल डेस्क, मुंबई। माफिया डॉन अरुण गवली के जीवन पर आधारित अर्जुन रामपाल की मुख्य भूमिका वाली फिल्म "डैडी" देश के एक हजार सिनेमा घरों में 8 सितंबर को रिलीज हो गई है। पहले इस फिल्म का प्रदर्शन 21 जुलाई को तय किया गया था, लेकिन अरुण गवली की बेटी गीता के आग्रह के बाद फिल्म के प्रदर्शन की तिथि को आगे बढ़ा कर 8 सितंबर कर दिया गया। अरुण गवली की बेटी गीता चाहती थीं कि उनके पिता के जीवन पर आधारित इस फिल्म का प्रदर्शन ऐसे समय पर हो, जब अरुण गवली पेरोल पर जेल के बाहर हों।

मुंबई के लोग, बेकार मिल मजदूर के पुत्र गवली के अपहरण, जुए और हत्याओं जैसे अपराधों के साथ अंडरवर्ल्ड का प्रमुख चेहरा बनने और फिर एक राजनीतिक दल के प्रमुख के रूप में भारतीय राजनीति में उत्थान, के गवाह रहे हैं। सन 1970-80 के दशक में अरुण गवली ने अपने दो मित्रों बाबू (आनंद) और रामा (राजेश) के  साथ गैंग की स्थापना की, जो जल्दी ही मध्य मुंबई में आतंक का पर्याय बन गया। दाउद इब्राहिम के साथ प्रतिद्वद्विता करते हुए अरुण गवली ने जल्दी ही अपनी तेजोमय आपराधिक साम्राज्य खड़ा कर अपराध जगत का प्रमुख नाम बन गया।

आसिम अहलूवालिया ने अपने गवली को दुर्दांत अपराधी की जगह परिस्थितिवश अपराधी बने व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है। अरुण गवली के जीवन की यह एक पेचीदा परिस्थिति है, जिससे वह पूरी फिल्म में सामंजस्य बिठाने का संघर्ष करता दिखाई देता है। फिल्म की लगभग स्तब्ध कर देने वाली फोटोग्राफी आपको अहलूवालिया की एक अन्य फिल्म मिस लवली की याद दिला देगी। परंतु  अहलूवालिया द्वारा निर्मित इन दोनों फिल्मों में समानता इस मोड़ पर आ कर खत्म हो जाती है, जब आप फिल्म की कथावस्तु और दूसरे पक्षों पर ध्यान देंगे। मिस लवली हर लिहाज से एक बेहतरीन फिल्म थी, लेकिन उसके मुकाबले डैडी एक कमजोर कथानक वाली उबाऊ फिल्म बन गई है।

मुंबई के भायखला इलाके की एक चॉल  जिसे अपराध की दुनिया में डैडी" के नाम से जाना जाता है, से शुरू हुई यह आपराधिक कहानी पूरी तरह अरुण गवली के उत्थान और पतन पर केंद्रित है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले अर्जुन रामपाल ने फिल्म में बेहतरीन अभिनय किया है। अरुण गवली के साथ महिला किरदान निभाने वाली एश्वर्या राजेश ने भी अच्छा काम किया है। पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाने वाले निशिकांत कामत ने भी अच्छा अभिनय किया, कमजोर कथानक की वजह से उनकी मेहनत बेकार गई।

फरहान अख्तर भी माफिया सरगना मकसूद के रूप में ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाए। फिल्म का संगीत साधारण है, हालांकि सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन है। फिल्म का कमजोर संपादन फिल्म की रवानगी को प्रभावित करता है। संपादन पर ध्यान दिया जाता तो फिल्म को कुछ हद तक रोचक बनाया जा सकता था। काम होना चाहिए था। फिल्म की कहानी सत्तर और अस्सी के दशक पर आधारित  है। जिस पर कास्ट्यूम डिजाइनर और आर्ट डायरेक्टर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाए। इस वजह से फिल्म में कई कमियां छूट गईं हैं। एक कमजोर कथानक पर बनी इस फिल्म को दर्शकों को सिनेमा घरों की ओर आकर्षित करने में दिक्कत का सामना करना पड़ेगा। फिल्म का बजट 20 करोड़ बताया जा रहा है, जिनमें 13 करोड़ फिल्म की लागत और 7 करोड़ विपणन और प्रचार पर खर्च किये गए हैं। इस फिल्म को पूरे देश में एक साथ 1000 से ज़्यादा सिनेमा घरों में प्रदर्शित किया गया है। देखना है कि यह फिल्म बाक्स आफिस पर कैसा कलेक्शन करती है।

Created On :   8 Sept 2017 11:24 PM IST

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