हिंदी फिल्मों के पितामह वी शांताराम को गूगल ने डूडल बनाकर दी श्रद्धांजलि

google give tribute to father of hindi cinema V Shantaram made by a doodle on his 116th birthday
हिंदी फिल्मों के पितामह वी शांताराम को गूगल ने डूडल बनाकर दी श्रद्धांजलि
हिंदी फिल्मों के पितामह वी शांताराम को गूगल ने डूडल बनाकर दी श्रद्धांजलि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दी सिनेमा के मशहूर फिल्मकार, निर्देशक और शानदार अभिनेता वी शांताराम का आज 116वां जन्मदिन है। इस खास मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी है। भारतीय सिनेमा में शांताराम का वो ही योगदान और स्थान है जो महाभारत में "पितामह" का था। उन्होंने अपने जीवन के करीब 50 साल भारतीय सिनेमा को दिए हैं इसलिए उन्हें सिनेमा जगत का "पितामह" भी कहा जाता है। 

बचपन से ही करने लगे थे काम


शांताराम का पूरा नाम "राजाराम वानकुर्दे शांताराम" था। उनका जन्म 18 नवंबर, 1901 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था। वो एक मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे। शुरुआती पढ़ाई के बाद छोटी सी उम्र से वो काम करने लगे थे। शांताराम ने 12 साल की उम्र में रेलवे वर्कशॉप में अप्रेंटिस के तौर पर काम किया। इसके बाद एक नाटक मंडली में शामिल हुए। यहीं से उन्हे बाबूराव पेंटर की महाराष्ट्र फिल्म कंपनी से जुड़ने का मौका मिला। इस मंडली में रहकर उन्होंने छोटे-मोटे काम किए लेकिन उनकी नजर हमेशा ही फिल्म निर्माण से जुड़ी बारीकियों पर रही। बाबूराव पेंटर ने ही इन्हें फिल्म "सवकारी पाश" में बतौर अभिनेता पहला ब्रेक दिया था। यह एक मराठी फिल्म थी।

इंडियन सिनेमा में उन्हें ऐसे फिल्मकार के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि पर अर्थपूर्ण फिल्में बनाकर लगभग छह दशकों तक दर्शकों के दिलों में राज किया। उन्होंने 1946 में फिल्म "डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी" के साथ हिंदी फिल्म जगत में कदम रखा। इस बेहतरीन फिल्म के साथ उन्होंने एक के बाद एक बहुत सी हिट फिल्में दीं हैं। इनमें "अमर भूपाली" (1951), "झनक-झनक पायल बाजे" (1955), "दो आंखें बारह हाथ" (1957) और "नवरंग" (1959) खास हैं।

गूगल ने 3 फिल्मों के डूडल बनाकर दी श्रद्धांजलि


गूगल डूडल में शांताराम की तीन फिल्मों की तस्वीर उकेरी गई है। पहले चित्र में 1951 में बनी "अमर भोपाली" का गडरिया बना हुआ है। दूसरी में 1955 में बनी "झनक झनक पायल बाजे" फिल्म का दृश्य (नृत्यांगना) दिखाया गया है। यह मूवी भारत में रंगीन चलचित्र इस्तेमाल करने वाली फिल्मों में से एक थी। इसके बाद 1957 में बनी "दो आंखें बारह हाथ" का चित्र बना है।

बता दें कि भारत में फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्म विभूषण से सम्मानित शांताराम ने 88 साल की उम्र में 1990 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

Created On :   18 Nov 2017 6:58 AM GMT

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