Mukkabaaz Review: स्पोर्ट्स में धांधली की हकीकत बयां करती है फिल्म मुक्काबाज

Mukkabaaz Review: The reality of rigging in boxing game in movie
Mukkabaaz Review: स्पोर्ट्स में धांधली की हकीकत बयां करती है फिल्म मुक्काबाज
Mukkabaaz Review: स्पोर्ट्स में धांधली की हकीकत बयां करती है फिल्म मुक्काबाज

फिल्म का नाम: मुक्काबाज
कास्‍ट: विनीत कुमार सिंह, जोया हसन, जिम्‍मी शेरगिल, रवि किशन, नवाजुद्दीन सिद्द‍िकी
डायरेक्‍टर: अनुराग कश्‍यप
प्रोड्यूसर: आनंद एल राय
समय: 2 घंटे 35 मिनट
जॉनर: ड्रामा/स्‍पोर्ट
रेटिंग– 3.5 स्टार


निर्देशक परिचय:

निर्देशक अनुराग कश्यप को तो आप जानते होंगे। वहीं जिन्होंने गैंग्स ऑफ वासेपुर बनाई थी। जिसमें धुंआदार गोलियों और गालियों की बौछार हुई थी। रमन राघव, ब्वैक फ्राइडे, गुलाल जैसी कई फिल्मों को निर्देशित करने वाले अनुराग एक बार फिर अपनी एक जबरदस्त फिल्म के साथ बॉक्स ऑफिस पर दस्तक दे रहे हैं। फिल्म मुक्काबाज आज रिलीज हो चकी है। इस फिल्म में अनुराग ने मौका दिया है अपनी ही पिछली फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के एक किरदार विनीत कुमार सिंह को जो इस फिल्म में बिल्कुल ट्रांसफार्म होकर आया है। आइए समीक्षा के माध्यम से जानते हैं कि फिल्म दर्शकों के पैमाने पर कहां तक खरी उतरी है। 

कहानी

साल 1984 में मिथुन चक्रवर्ती की एक फिल्म आई थी, जिसका नाम बॉक्सर था, जिसकी कहानी मुंबई जैसे महानगर के युवा के ऊपर थी। ऐसी ही एक कहानी लेकर अनुराग कश्यप ने फिल्म बनाई है मुक्काबाज, जिसमें बरेली जैसे छोटे शहर की एक प्रेम कहानी है। जिसमें ड्रामा भी है, एक्शन भी है और रिवेंज भी है और स्पोर्ट्स को लेकर दीवानगी भी है। इस फिल्म की कहानी खुद फिल्म के हीरो ने ही लिखी है। नायक विनीत कुमार सिंह की शर्त थी कि वह इसकी कहानी उसी निर्देशक और प्रोड्यूसर को देंगे, जो उन्हें लेकर फिल्म बनाएगा। क्योंकि विनीत कुमार ने इस फिल्म के लिए कुछ स्पेशल मेहनत की थी। अगर आपने गैंग्स ऑफ वासेपुर देखी है तो उसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी के बड़े भाई का जिसने किरदार निभाया था, विनीत वहीं कलाकार है। बस फर्क इतना कि फिल्म के लिए विनीत ने असल में बॉक्सिंग की ट्रेनिंग ली है और अपनी दुबली-पतली कद-काठी को सिक्स पैक ऐब्स वाली बॉडी में बदल दिया। 

 कहानी में छोटे परिवार के एक युवक श्रवण (विनीत कुमार सिंह) को दिखाया गया है, जो बॉक्सर बनने चाहता है। उसकी समस्या यह है कि बॉक्सर एसोसिएशन पर कब्जा है एक नेता भगवान दास मिश्रा (जिमी शेरगिल) का, जो पूर्व बॉक्सर है। भगवान दास को चमचागीरि पसंद है, उसके रिंग में कई बॉक्सर हैं जो उसके कहने पर ही सब कुछ करते हैं। इधर श्रवण को भागवान दास की ही भतीजी सुनयना (जोया) से प्यार हो जाता है जो गूंगी है। श्रवण ढंग से भगवान की चमचई नहीं कर पाता और उससे झगड़ जाता है। भगवान उसका कैरियर तबाह करने की धमकी देता है। विनीत किसी तरह वाराणसी से बॉक्सिंग में स्टेट के लिए जाता है, जिसमें उसकी मदद वहां का कोच (रविकिशन) करते हैं। श्रवण स्टेट चैंपियनशिप जीत जाता है। भगवान की भतीजी से उसकी मर्जी के खिलाफ शादी भी कर लेता है, और फिर किस तरह भगवान अपनी भतीजी को अगवा करके श्रवण का रास्ता नेशनल ने खेल पाने के लिए बाधाएं खड़ी करता है। यह देखना रोचक है। इसके लिए आपको सिनेमाघरों का ही रूख करना पड़ेगा।  

पटकथा और निर्देशन

फिल्म पटकथा के लिहाज से बेहतरीन है, लेकिन क्लाइमेक्स कौ थोड़ा और सुधारा जा सकता था। निर्देशन की बात करें तो अनुराग ने जबरदस्त निर्देशन किया है। रिंग में बॉक्सिंग के रूल औऱ फाइट सीन अच्छे फिल्माए गए हैं। वहीं फिल्म के संवाद जबरदस्त हैं, खासतौर पर जिम्मी शेरगिल और रविकिशन पर फिल्माए गए संवाद, दोनों ही कलाकार फिल्म के सबसे सीनियर कलाकार हैं।

अभिनय और संगीत


इसमें कोई शक नहीं कि जिम्मी शेरगिल बॉलीवुड के ऐसे अभिनेता है, जिनका कोई तोड़ नहीं है। अपनी एक खास तरह की एक्टिंग शैली के लिए उन्हें जाना जाता है। हालांकि जिम्मी पंजाबी फिल्मों के एक्टर है, लेकिन उत्तर प्रदेश के परिवेश पर बनने वाली फिल्मों में उनका दबंग लहजे वाला किरदार काफी पसंद किया जाता है। जिमी शेरगिल की ये अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है। इस फिल्म के लिए जिम्मी ने एकदम सुर्ख आंखे दिखाई हैं। बता दें कि ऐसा करने के लिए जिम्मी को अनुराग ने सोने नहीं दिया। विनीत सिंह और जोया के लिए बतौर लीड ये पहली फिल्म है, दोनों ही काफी स्वभाविक लगे हैं। हालांकि फिल्म के लिए की गई विनीत की मेहनत साफ नजर आई। यही उनकी एक्टिंग की जीत है। नदिया के पार वाली साधना सिंह अरसे बाद जोया की मां के रोल में दिखाई दी हैं। फिल्म का संगीत भी अच्छा है। इस बार म्यूजिक के लिए अनुराग ने नए चेहरे रचिता अरोरा पर दाव लगाया था। फिल्म में सुनील जोगी की कविता मुश्किल है अपना मेल प्रिये का बढिया इस्तेमाल किया गया है। विनीत सिंह ने खुद "अधूरा मैं" और "पैंतरा" दो गाने लिखे हैं।

क्यों देखें

अगर आप अनुराग कश्यप की फिल्में देखने के शौकीन हैं तो यह फिल्म आपके लिए परफेक्ट है या फिर यूपी के परिवेश में बनी फिल्में देखना अच्छा लगता है तो फिल्म देख सकते है। वैसे जिम्मी शेरगिल और रविकिशन के फैंस को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए।

Created On :   12 Jan 2018 6:33 AM GMT

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