अमेरिका को करारा झटका, भारत समेत 128 देशों ने विरोध में डाला वोट

India, with 128 nations, vote at UN against US decision to recognise Jerusalem as Israel’s capital
अमेरिका को करारा झटका, भारत समेत 128 देशों ने विरोध में डाला वोट
अमेरिका को करारा झटका, भारत समेत 128 देशों ने विरोध में डाला वोट

डिजिटल डेस्क, वॉशिंगटन। येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने वाले अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप के फैसले पर अब भारत भी खिलाफ हो गया है। यूनाइटेड नेशन में गुरुवार को ट्रंप के इस फैसले को रद्द करने की मांग पर लाए गए प्रपोजल पर भारत ने भी अमेरिका के खिलाफ वोट डाला है। इस प्रपोजल में कहा गया है कि येरूशलम को लेकर लिया गया कोई भी फैसला अमान्य होगा और इसे रद्द किया जाना चाहिए। इस प्रपोजल के समर्थन में भारत समेत 128 देशों ने वोट किया है, जबकि 9 देशों ने ही इसके खिलाफ वोट डाला है। इससे साफ हो गया है कि येरूशलम विवाद पर अब अमेरिका अलग-थलग पड़ चुका है।

 

 

 


ट्रंप की धमकी के बावजूद वोटिंग

बता दें कि इससे पहले बुधवार को ही अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने धमकी दी थी कि अगर कोई देश उसके खिलाफ वोट डालता है, तो उसकी आर्थिक मदद रोक दी जाएगी। ट्रंप की इस चेतावनी को नजरअंदाज कर भारत समेत 128 देशों ने अमेरिका के खिलाफ वोट डाला है। यूनाइटेड नेशन में वोटिंग के बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि वो इस नतीजे को नकारते हैं। इतना ही नहीं नेतन्याहू तो UN को "झूठ का घर" तक बता दिया।

 



 

अमेरिका के साथ सिर्फ 9 देश

यूनाइटेड नेशन के इस प्रपोजल के खिलाफ सिर्फ 9 देशों ने ही वोट किया है। इसमें अमेरिका, इजरायल, ग्वाटेमाला, द मार्शल आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, नॉरू, पलाऊ और टोगो ने वोट डाला है। जबकि इस प्रपोजल के समर्थन में यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल (UNSC) के चार परमानेंट मेंबर्स चीन, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन शामिल थे। इसके अलावा भारत समेत 128 देशों ने भी इसके पक्ष में यानी अमेरिका के खिलाफ वोट किया है। वहीं, मैक्सिको और कनाडा समेत 35 देशों ने इस वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया।

वोटिंग में नाकामी के बाद अमेरिका की फिर धमकी

वोटिंग से पहले ही अमेरिका ने यूनाइटेड नेशन के इस प्रपोजल की आलोचना की है। UN में अमेरिकी एंबेसडर निकी हेली ने कहा है कि "अमेरिका इस दिन को याद रखेगा, जब एक संप्रभु देश के तौर पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने की वजह से उसे यूनाइटेड नेशन असेंबली में निशाना बनाया गया।" हेली ने आगे कहा कि "अमेरिका येरूशलम में अपनी एंबेसी शिफ्ट करेगा। अमेरिका के लोग भी यही चाहते हैं और यही करना सही भी है। UN में की गई कोई भी वोटिंग हमारे इस फैसले को नहीं बदल सकती, लेकिन इससे इसमें फर्क आएगा कि अमेरिका अब यूएन को किस तरह देखता है। साथ ही दुनिया के उन देशों को देखने का हमारा नजरिया भी बदलेगा, जिन्होंने यूएन में हमारा अनादर किया है।

 

 



ट्रंप ने दी थी धमकी

अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को चेतावनी देते हुए कहा था कि "यूनाइटेड नेशन में येरूशलम को इजरायल की राजधानी नहीं मानने वाले देशों की आर्थिक मदद रोक दी जाएगी।" ट्रंप का कहना था कि "वो हमसे अरबों डॉलर की मदद लेते हैं और हमारे खिलाफ ही वोटिंग करते हैं। उन्हें वोटिंग करने दो, इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।" हालांकि जानकारों ने इसे खोखली धमकी माना था। साथ ही ट्रंप की इस धमकी का भी उतना असर नहीं देखा, क्योंकि 128 देशों ने उसके खिलाफ वोटिंग की है। हालांकि 35 देशों ने खुद को इस वोटिंग से दूर भी रखा, जिसे ट्रंप की धमकी का असर ही माना जा रहा है

अमेरिका लगा चुका है वीटो

इससे पहले यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल (UNSC) में येरूशलम पर लिए गए ट्रंप के फैसले पर चर्चा हुई और इस फैसले को रद्द करने का प्रपोजल पेश किया गया। इस प्रपोजल पर अमेरिका ने वीटो लगा दिया था। जिसके बाद इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकी। इस प्रपोजल पर UNSC के सभी 14 देशों ने समर्थन दिया था, लेकिन अमेरिका ने इसे "अपमान" बताते हुए वीटो का इस्तेमाल किया था। डोनाल्ड ट्रंप के प्रेसिडेंट बनने के बाद पहली बार अमेरिका ने वीटो का इस्तेमाल किया है। इससे पहले साल 2011 में अमेरिका ने वीटो का इस्तेमाल किया था। उस वक्त भी येरूशलम और इजरायल का ही मुद्दा था।

क्यों है येरूशलम को लेकर विवाद? 

दरअसल, येरूशलम इजरायल का बहुत बड़ा शहर है। इसके साथ ही ये इस्लाम, ईसाई और यहूदियों के लिए भी काफी अहम जगह है। इसी जगह पर यहूदियों का दुनिया में सबसे स्थान है, जबकि इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद ये तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। इसके साथ ईसाईयों की भी मान्यता है कि यहां पर जीजस क्राइस को सूली पर चढ़ाया गया था। येरूशलम के पूर्वी हिस्से में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, जबकि पश्चिमी हिस्सों में यहूदी आबादी रहती है। इसके साथ ही यहां मौजूद अल अक्सा मस्जिद में इजरायल 18-50 साल के लोगों को जाने से रोकता है, क्योंकि उसका मानना है कि ये लोग अक्सर यहां प्रदर्शन करते हैं।

तीन धर्मों के लिए महत्वपूर्ण है ये जगह

येरूशलम वो जगह है, जिसपर इजरायल और उससे ही लगा फिलिस्तीन देश दोनों ही अपना-अपना हक जताते रहते हैं। इजरायल है तो यहूदियों का देश, लेकिन इसकी राजधानी येरूशलम यहूदियों के साथ-साथ मुस्लिम और ईसाईयों के लिए भी बहुत महत्व रखती है। येरूशलम में टेंपल माउंट है, जो यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल है। वहीं अल-अक्सा मस्जिद को मुसलमान बेहद पाक मानते हैं। उनकी मान्यता है कि अल-अक्सा मस्जिद ही वो जगह है जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत पहुंचे थे। इसके अलावा कुछ ईसाइयों की मान्यता है कि येरूशलम में ही ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। यहां मौजूद सपुखर चर्च को ईसाई बहुत ही पवित्र मानते हैं। बताया ये भी जाता है कि यहां पर यहूदियों का पवित्र स्थल सुलेमानी मंदिर हुआ करता था, जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था।

इजरायल हमेशा से मानता रहा है राजधानी

1948 में इजरायल एक आजाद देश बना और इसके एक साल बाद येरूशलम का बंटवारा हो गया। येरूशलम पर इजरायल और फिलिस्तीन दोनों ही दावे करते रहे हैं। इसके बाद इजरायल ने करीब 6 दिनों तक फिलिस्तीनियों से लड़ने के बाद इस शहर पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद 1980 में इजरायल ने येरूशलम को अपनी राजधानी बनाने की घोषणा की, लेकिन यूनाइटेड नेशंस ने इस कब्जे की निंदा की। यही वजह है कि येरूशलम को कभी भी इजरायल की राजधानी के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली। वहीं फिलिस्तीन ने भी हमेशा से इस शहर को अपनी राजधानी बनाने की मांग करते आ रहे हैं।

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच क्यों है विवाद? 

फिलिस्तीन एक अरब देश था और पहले वर्ल्ड वॉर के बाद यहां नई सरकार बनी। इसी के बाद से दुनियाभर के यहूदियों ने फिलिस्तीन में बसना शुरू कर दिया। शुरुआत में यहां पर यहूदियों की आबादी 30 फीसदी थी, जो अगले 30 सालों में बढ़कर 30 फीसदी तक पहुंच गई। इसके बाद यहूदियों ने अरब लोगों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी। इसके बाद ब्रिटेन ने यहूदियों के फिलिस्तीन जाने पर पाबंदी लगा दी। इसके बाद यहूदियों ने अपना एक अलग देश होने की मांग की। आखिरकार 1947 में यूनाइटेड नेशंस में एक रिजोल्यूशन पास किया गया, जिसके तहत इसे दो हिस्सों में बांट दिया गया। इसका एक हिस्सा अरब देश बना और दूसरा यहूदियों का राज्य- इजरायल बना। अलग होने के बाद से ही दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया। इसकी वजह थी येरूशलम। येरूशलम वो हिस्सा था, जहां यहूदी और मुसलमान दोनों रहते थे। इसलिए यूएन ने फैसला लिया कि येरूशलम को अंतर्राष्ट्रीय सरकार चलाएगी। येरूशलम के अलावा यहां की "गाजा पट्टी" भी हमेशा से दोनों देशों के बीच विवाद का कारण रही है।

अलग होने के बाद बढ़ा विवाद

अलग होने के बाद ही फिलिस्तीन और इजरायल के बीच असली जंग शुरू हुई। इसके बाद फिलिस्तीन की पीएलओ यानी पैलेस्टाइन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ने इजरायल के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी। इस लड़ाई में तकरीबन 100 यहूदियों को और 1000 अरब लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसी के बाद "हमास" जो इजरायल विरोधी आतंकवादी संगठन है, उसका जन्म हुआ। हालांकि वक्त के साथ-साथ पीएलओ तो इजरायल के समर्थन में आ गया लेकिन हमास ने इसे कभी देश नहीं माना। आखिरकार 1993 में दोनों देशों के बीच "ओस्लो समझौता" हुआ, जिसके तहत इजरायल को एक देश के तौर पर मान्यता दी गई और इजरायल ने भी पीएलओ को मान्यता दी। इससे पहले पीएलओ को भी आतंकी संगठन माना जाता था।

6 दिसंबर को ट्रंप ने दी थी मान्यता 

इसी महीने 6 दिसंबर को अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता दी थी। येरूशलम वो इलाका है, जिसपर इजरायल और फिलीस्तीन दोनों ही देश अपना दावा करते हैं। व्हाइट हाउस में दिए अपने भाषण में ट्रंप ने कहा था कि "अब समय आ गया है कि येरूशलम को इजरायल की राजधानी बनाया जाए।" उन्होंने कहा कि "फिलीस्तीन से विवाद के बावजूद येरूशलम पर इजरायल का अधिकार है।" ट्रंप ने अपने इस कदम को शांति स्थापित करने वाला कदम बताते हुए कहा है कि "येरूशलम को इजरायल की राजधानी की मान्यता देने में देरी की पॉलिसी शांति स्थापित नहीं कर पाई और इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।" ट्रंप ने ये भी कहा कि हम एक ऐसा समझौता चाहते हैं जो इजरायल और फिलीस्तीन दोनों के लिए बेहतर हो। ट्रंप के इस फैसले का इजरायल ने स्वागत किया था।

कई देशों ने की थी ट्रंप ने की निंदा

वहीं येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने पर दुनियाभर में ट्रंप की निंदा भी होने लगी है। मुस्लिम देशों ने ट्रंप के इस फैसले को शांति के खिलाफ और हिंसा भड़काने वाला बताया है। तुर्की के फॉरेन मिनिस्टर ने इस फैसले को गैरजिम्मेदाराना बताते हुए ट्वीट किया जिसमें लिखा है कि "ये फैसला इंटरनेशनल लॉ और यूनाइटेड नेशंस के इस बारे में पास किए गए प्रपोजल्स के खिलाफ है।" वहीं सऊदी अरब का भी कहना है कि इस फैसले से शांति को नुकसान पहुंचेगी और इलाके में तनाव बढ़ेगा। इसके अलावा इजिप्ट के प्रेसिडेंट अब्दुल फतह अल सीसी ने भी कहा है कि इस फैसले से शांति की उम्मीदें कमजोर होंगी। इसके साथ ही ट्रंप के इस फैसले के विरोध में पाकिस्तान में निंदा प्रस्ताव भी पारित हो चुका है। वहीं इस मामले में यूरोपियन यूनियन भी कह चुका है जब तक शांति समझौता नहीं हो जाता, तब तक येरूशलम को इजरायल की राजधानी नहीं माना जाएगा। इसके अलावा 57 मुस्लिम देशों के ग्रुप ने भी ट्रंप के इस फैसले की निंदा की थी और कहा था कि इस फैसले से "आतंकवाद को बढ़ावा" मिलेगा। 

Created On :   22 Dec 2017 8:09 AM IST

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