पाकिस्तान में उठी भगत सिंह को सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘निशान-ए-हैदर’ देने की मांग

Pakistan body demands highest gallantry medal for Bhagat Singh
पाकिस्तान में उठी भगत सिंह को सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘निशान-ए-हैदर’ देने की मांग
पाकिस्तान में उठी भगत सिंह को सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘निशान-ए-हैदर’ देने की मांग

डिजिटल डेस्क, लाहौर। शहीद-ए-आजम भगत सिंह को पाकिस्तान के सर्वोच्च वीरता सम्मान  ‘निशान-ए-हैदर’ से नवाजने की मांग की जा रही है। साथ ही लाहौर के शादमान चौक पर उनकी एक प्रतिमा स्थापित करने की भी मांग की गई है। शादमान चौक वही जगह है जहां पर भगत सिंह को 86 साल पहले फांसी दी गई थी। ये मांग की है भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन ने। मांग उठाने वाला संगठन अदालत में स्वतंत्रता सेनानियों को निर्दोष साबित करने के लिए काम कर रहा है। 

भगत सिंह जैसा दूसरा बहादुर नहीं

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार को दी गई अपनी नई याचिका में भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन ने कहा कि सिंह ने इस उपमहाद्वीप को आजाद कराने के लिए लड़ाई लड़ी थी। पाकिस्तान के संस्थापक कैद-ए-आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने सिंह को यह कहते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की थी कि पूरे उप महाद्वीप में भगत सिंह जैसा बहादुर व्यक्ति कोई दूसरा नहीं था। इसने यह भी कहा कि सरकार को शादमान चौक पर भगत सिंह की प्रतिमा भी स्थापित करनी चाहिए जिससे कि पाकिस्तान और विश्व के लोगों को स्वतंत्रता सेनानी के प्रतीक के रूप में प्रेरणा मिले। फाउंडेशन के अध्यक्ष इम्तियाज रशीद कुरैशी ने कहा कि वह इस मामले को लगातार उठाते रहेंगे और मांग मानने के लिए सरकार पर दबाव डालते रहेंगे।


हाफिज सईद के संगठन का विरोध

संगठन ने कहा कि पंजाब सरकार को इसमें और विलंब नहीं करना चाहिए। ‘‘जो देश अपने नायकों को भुला देते हैं, वे धरती की सतह से गलत शब्दों की तरह मिट गए हैं।’’ हाफिज सईद का संगठन जमात उद दावा शादमान चौक का नाम बदलने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध कर रहा है और उसने इस मुद्दे पर सिविल सोसाइटी के लोगों को धमकी भी दी है।

PAK का सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार

निशान-ए-हैदर, पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार है, जो किसी युद्ध में असाधारण वीरता दिखाने वाले सैनिक को, चाहे वो किसी भी रैंक का क्यों ना हो, मरणोपरांत प्रदान दिया जाता है। निशान-ए-हैदर का मतलब होता है ‘शेर का निशान’। ये मिलिट्री में दिया जाने वाला वीरता का सबसे बड़ा पदक है। ये पदक उन्हीं सैनिकों को दिया जाता है जिन्होंने आर्म्ड फोर्सेज में देश के लिए बहादुरी से काम किया हो।

23 मार्च 1931 को दी गई थी फांसी

23 साल की उम्र में 23 मार्च, 1931 को शहीद भगत सिंह को उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर में ब्रिटिश शासकों ने फांसी की सजा दे दी थी। भगत सिंह और उनके साथियों के खिलाफ औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ साजिश करने और ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सांडर्स की हत्या करने का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया गया था।

Created On :   19 Jan 2018 3:53 AM GMT

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