सामाजिक दूरी से कहीं मोबाइल न बन जाए मजबूरी - पंकज राय

Your Social Distance Should Not Become a Mobile Compulsion - Pankaj Rai
सामाजिक दूरी से कहीं मोबाइल न बन जाए मजबूरी - पंकज राय
सामाजिक दूरी से कहीं मोबाइल न बन जाए मजबूरी - पंकज राय

डिजिटल डेस्क, भोपाल। सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी निश्चित तौर पर कोरोना के संक्रमण के लिए अत्यावश्यक है। यह समय है अपने स्वयं के भीतर प्रवेश करने का और कुछ कलात्मक या रचनात्मक करने का। कहीं ऐसा ना हो जाए कि कोरोना के कारण सामाजिक दूरी आपके लिए नई मजबूरियां या कहें नई लतएवं आदतें बन जाएं जो कि आपके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालें। 

दूरसंचार कंपनियों का पिछले कुछ हफ्ते से मोबाइल यूसेज डेटा का उपयोग लगभग 50% बढ़ गया है जिसकी वजह  स्वाभाविक है, लोगों का अपने घरों से ना निकल पाना। 

सोशल मीडिया एवं मैसेजिंग का अत्यधिक उपयोग आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। क्योंकि किसी भी कार्य को जब हम जरूरत से ज्यादा हजारों बार अपने जीवन में दोहरातेहैं तो वह हमारे अवचेतन मन का एक यांत्रिक हिस्सा बन जाता है। एक स्थिति ऐसी आती है कि हम धीरे-धीरे स्वयं पर या कहें मोबाइल के सीमित इस्तेमाल पर अपना नियंत्रण खो बैठते हैं। लॉक टाउन के पहले औसतन भारत में प्रतिव्यक्ति 6 से 7 घंटे मोबाइल का इस्तेमाल होता था किंतु अब यह समय और बढ़ गया है सुबह से शाम तक किसी भी वस्तु का उपयोग आपके लिए घातक साबित हो सकता है। आइए स्वयं से कुछ सवाल करें और जानने की कोशिश करें कि कहीं आप भी मोबाइल एडिक्शन की तरफ तो नहीं बढ़ रहे हैं। 

  • औसतन प्रतिदिन आप कितने घंटे मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं? 
  • आप कितनी बार अपना मोबाइल बिना किसी जरूरत के उठाते हैं? 
  • मोबाइल उठाते वक्त क्या आपको ध्यान रहता है अथवा यह एक यांत्रिका प्रक्रिया का हिस्सा है? 
  • मोबाइल में आप जो कुछ भी पढ़ते एवं देखते हैं क्या  वहआवश्यक है अथवा आपके लिए लत बनता जा रहा है? 
  • क्या कोई भी मैसेज फॉरवर्ड करना आपकी आदत बन गया है अथवा क्या आप पहले उसकी विश्वसनीयता जांचते हैं।
  • क्या आप बिना मोबाइल के बेचैन हो जाते हैं?

अति सर्वत्र वर्जयेत् " किसी भी चीज की अत्यधिकता आपके लिए हानिकारक हो सकती है।" तो जहां एक ओर  हमें घरों से बाहर नहीं निकलना है वहीं दूसरी ओर इस बात का भी ध्यान रखना है कि हम अपने जीवन में मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से अपने आप को धीरे धीरे शारीरिक एवं मानसिक रूप से कहीं बीमार तो नहीं कर रहे। दैनिक जीवन में कुछ सरल उपायों पर अमल करने की कोशिश करें ,जिससे आप मोबाइल से एक आवश्यक दूरी बना सकते हैं। 

  • सर्वप्रथम सुबह उठने के साथ ही मोबाइल अपने हाथ में ना लें, बल्कि आवश्यक रूप से कुछ समय मेडिटेशन में दें। 
  • हमारी जो यह" और ज्यादा" वाली जो आदत है उसी की वजह से मोबाइल जब आप उठाते हैं किंतु आपका जरूरी काम होने के पश्चात भी घंटों एक कड़ी से दूसरी कड़ी दूसरी से तीसरी, यांत्रिक रूप से आप आगे बढ़ते चले जाते हैं एवं मोबाइल के इस्तेमाल की अवधि भी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। कृपया जितना जरूरी हो उतने  इस्तेमाल के पश्चात मोबाइल अपने से दूर रख दें। 
  • कृपया खाना खाते समय मोबाइल का इस्तेमाल ना करें यह आपके पाचन तंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि यह आपकी भावनाओं को प्रभावित कर सकता है जिनका सीधा संबंध खाने को पचाने वाले रसायनों से होता है। 
  • जिस तरह से हम उपवास रखते हैं उसी तरह कोशिश करें कि दिन में कुछ समय के लिए मोबाइल फास्टिंग अपने जीवन में प्रारंभ करें यह आपको इसकी लत से आजाद करने में मदद करेगा।
  • कई वैज्ञानिक शोधों के अनुसार टीवी देखते वक्त अथवा अत्यधिक मोबाइल के इस्तेमाल के दौरान आपके दिमाग की निष्क्रियता बढ़ती है इसके विपरीत कलात्मकता एवं रचनात्मकता आपके मस्तिष्क की सक्रियता को बढ़ाता है।
  • मोबाइल को जब भी उठाएं कृपया उसमें जल्दबाजी ना करें होश पूर्वक उठाएं एवं ध्यानपूर्वक बात करें। यह प्रयोग आपको स्वयं के प्रति जागरूक होने में मदद करेगा। 
  • रात को जब भी सोने जाएं कृपया अपना मोबाइल फोन अपने से ६ फीट की दूरी पर रखें।

सामाजिक दूरी अभी मजबूरी है लेकिन मोबाइल नहीं, कृपया अपने आप से नजदीक होने के लिए यांत्रिकआदतों एवं उपकरणों से यथासंभव दूरी बनाएं।

“कुछ नया करें दिल से करें क्योंकि जब कोई भी कार्य आप अपने दिल से करते हैं तो आपका दिमाग उसका अनुसरण करता है और आप अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाते हैं।“

धन्यवाद
पंकज राय
(अंतर्राष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर ,लेखकएवं मनोवैज्ञानिक )
M  +919407843111

Created On :   3 April 2020 1:52 PM GMT

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