अजय माकन पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, झुग्गी ढहाए जाने से पहले की लोगों के पुनर्वास की मांग

Ajay Maken reaches Supreme Court, demand for rehabilitation of people before slum demolition
अजय माकन पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, झुग्गी ढहाए जाने से पहले की लोगों के पुनर्वास की मांग
अजय माकन पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, झुग्गी ढहाए जाने से पहले की लोगों के पुनर्वास की मांग
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  • झुग्गी ढहाए जाने से पहले की लोगों के पुनर्वास की मांग

नई दिल्ली, 11 सितम्बर (आईएएनएस)। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय माकन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए दिल्ली में रेल पटरियों के किनारे करीब 48,000 झुग्गियों में रहने वाले लोगों के पुनर्वास की मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त को दिल्ली में तीन महीने के भीतर रेलवे पटरियों के पास बसी करीब 48,000 झुग्गी-बस्तियों को हटाने का आदेश दिया था और कहा था कि इस मामले में कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।

माकन ने एक हस्तक्षेप आवेदन में कहा है कि रेल मंत्रालय और दिल्ली सरकार ने पहले ही प्रक्रिया की पहचान करने और झुग्गियों को हटाने की पहल की है और दिल्ली में विभिन्न मलिन बस्तियों के लिए विध्वंस नोटिस जारी किए हैं।

उन्होंने कहा, इसके अलावा, ऐसा करते हुए उन्होंने झुग्गियों को हटाने/ढहाने से पहले झुग्गी बस्तियों के पुनर्वास के संबंध में कानून में प्रदत्त प्रक्रिया को दरकिनार किया है और दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति, 2015 और प्रोटोकॉल (झुग्गियों को हटाने के लिए) में निर्दिष्ट प्रक्रिया की अनदेखी की है।

माकन ने जोर देकर कहा कि अगर झुग्गियों के बड़े पैमाने पर विध्वंस की कार्रवाई जारी रहती है, तो इससे लाखों लोगों के प्रभावित होने और कोविड-19 के बीच बेघर होने की संभावना है।

उन्होंने अपने आवेदन में कहा, बेघर व्यक्तियों को आश्रय और आजीविका की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए मजबूर किया जाएगा और वर्तमान में चल रहे कोविड-19 संकट को देखते हुए यह हानिकारक होगा। उन्होंने शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के लिए इस मामले की लिस्टिंग की मांग की।

माकन की ओर से दलील दी गई है कि 31 अगस्त के आदेश को पारित करते समय शीर्ष अदालत ने सरकारी एजेंसियों (रेलवे, नगर निगम आदि) के लिए तो एक विस्तृत सुनवाई की, मगर अदालत ने झुग्गीवासियों की प्रभावित/कमजोर आबादी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया और उन्हें सुनवाई के अवसर से वंचित रखा गया।

माकन ने कहा, 31 अगस्त के आदेश में पारित निर्देशों का शुद्ध प्रभाव न केवल यह है कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को सुनवाई के अवसर से वंचित कर दिया गया है, बल्कि यह आदेश अपने आप में अमानवीय भी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया, इस आदेश से बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों सहित लाखों लोगों के सिर से छत छिन जाएगी। माकन ने आदेश को सार्वजनिक नीति के खिलाफ करार दिया।

याचिका में दलील दी गई कि शीर्ष अदालत का आदेश है कि कोई भी अदालत 48,000 झुग्गियों को हटाने पर रोक लगाने का निर्देश न दे, जो कि न्याय तक पहुंच स्थापित करने के अधिकार में बाधा उत्पन्न करता है।

शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की मांग करते हुए, याचिकाकर्ता ने कहा है कि अदालत सीधे रेल मंत्रालय और दिल्ली सरकार को निर्माण हटाने से पहले झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए उन्हें दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति, 2015 और प्रोटोकॉल (झुग्गियों को हटाने के लिए) का पालन करने के लिए निर्देशित करें।

एकेके/एएनएम

Created On :   11 Sept 2020 4:30 PM IST

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