भूपेश गढ़ रहे ठेठ छत्तीसगढ़िया की छवि

Bhupesh is building a typical Chhattisgarh image
भूपेश गढ़ रहे ठेठ छत्तीसगढ़िया की छवि
भूपेश गढ़ रहे ठेठ छत्तीसगढ़िया की छवि
हाईलाइट
  • भूपेश गढ़ रहे ठेठ छत्तीसगढ़िया की छवि

रायपुर, 14 जनवरी (आईएएनएस)। सियासी चौसर पर छत्तीसगढ़ में विरोधियों को मात देने के लिए अपनी चाल के हुनर में माहिर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद को ठेठ छत्तीसगढ़िया साबित करने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते। यहां के तीज-त्योहार हों या रंगारंग कार्यक्रम का दौर, जब भी मौका मिलता है, वे अपने को ठेठ छत्तीसगढ़िया साबित कर ही जाते हैं।

आम तौर पर सत्तासीन नेता बयानों, घोषणाओं और विकास कार्यो के जरिए अपनी छवि बनाते हैं, मगर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल यह सब तो कर ही रहे हैं, साथ में संस्कृति के सहारे मतदाताओं का दिल जीतने की जुगत में भी लगे हैं। रविवार को रायपुर के साइंस कॉलेज के मैदान में शुरू हुए राज्यस्तरीय युवा उत्सव में भी बघेल पूरी तरह छत्तीसगढ़ी संस्कृति के रंग में रंगे नजर आए।

इस मौके पर रस्साकसी के अलावा गोंटा, भौंरा, फुगड़ी, गेंड़ी, दौड़ सहित अन्य पारंपरिक खेलों का हिस्सा बनने में भी हिचक नहीं दिखाई। यह पहला मौका नहीं था, जब बघेल छत्तीसगढ़ी संस्कृति के रंग में रंगे हों। बघेल को कोई चुनौती दे तो वे हथेली पर भौंरा भी घुमाने से नहीं चूकते।

इससे अलग देखें तो छत्तीसगढ़ के तीज-त्योहार को मनाने में भी बघेल पीछे नहीं रहते। हरेली, तीजा-पोरा के पर्व पर सरकारी छुट्टी घोषित की तो हरेली पर्व अपने आवास पर भी मनाया। इस दिन उनका आवास पूरी तरह हरेली पर्व के रंग में रंगा रहा। इसके साथ ही तीजा- हरेली, पोरा और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहार सरकारी तौर पर मनाकर गांव-गांव में बड़ा संदेश दिया है।

बघेल खास मौकों पर एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रंगे आते हैं, वहीं नारों को बुलंद करते हैं। नौजवानों के बीच जहां खेलबो-जीतबो-गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का नया नारा देते हैं तो आम छत्तीसगढ़ी के बीच छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया का नारा बुलंद करते हैं। वहीं आर्थिक समृद्धि के लिए कहते हैं- छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी/नरवा, गरवा, घुरवा अउ बाड़ी एला बचाना हे संगवारी यानी छत्तीसगढ़ की पहचान के लिए चार चिन्ह हैं- नरवा (नाला), गरवा (पशु एवं गोठान), घुरवा (उर्वरक) और बाड़ी (बगीचा), जिनका संरक्षण आवश्यक है।

राज्य में आदिवासी संस्कृति के बढ़ावे के लिए पिछले दिनों रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का आयेाजन किया गया, तब भी बघेल छत्तीसगढ़ी अंदाज में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ नाचे थे। वहीं अब राज्यस्तरीय युवा उत्सव रायपुर में हो रहा है। इस तरह आयोजनों के जरिए बघेल संस्कृति और कला के संवाहक बन रहे हैं।

राज्यपाल अनुसुइया उइके इस तरह के आयोजनों को सकारात्मक रूप से देखती हैं। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ के विभिन्न ग्रामीण खेलों, लोकनृत्य, ललित कला और शास्त्रीय संगीत पर आधारित प्रतियोगिताओं से ग्रामीण खेल प्रतिभाएं निखर कर बाहर आएंगी और प्रदेश की स्थानीय कला संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। राज्य सरकार द्वारा राज्योत्सव, आदिवासी नृत्य महोत्सव और इस युवा महोत्सव के माध्यम से खेल एवं संस्कृति को जीवित रखने का प्रयास सराहनीय है।

छत्तीसगढ़ के राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बघेल लंबी राजनीतिक पारी खेलने की तैयारी में है, यह तभी संभव है जब आपकी आम जनों के बीच गहरी पैठ हो, इसका सबसे सीधा और सरल रास्ता क्षेत्रीय बोली, भाषा और संस्कृति है।

एक जानकार ने कहा कि बघेल यह जानते हैं कि क्षेत्रीय अस्मिता का असर लोगों पर ज्यादा होता है, इसके जरिए पैठ बनाने के साथ दिल जीतना आसान है। इसीलिए वे दोनों मोर्चो पर काम कर रहे हैं। एक तरफ विकास का सहारा है तो दूसरी ओर संस्कृति के जरिए लोगों के करीब पहुंच रहे हैं।

Created On :   14 Jan 2020 5:30 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story