कश्मीर मुद्दे पर केन्द्र के वार्ताकार बोले- घाटी को सीरिया बनने से रोकना है

डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा जम्मू एवं कश्मीर में विभिन्न समूहों से बातचीत के लिए नियुक्त वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा ने कहा कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती कश्मीरी युवाओं को आतंकवाद की ओर जाने से रोकने की है। उन्होंने कहा हम किसी भी स्थिति में घाटी को सीरिया नहीं बनने देना चाहते। खुफिया ब्यूरो (आईबी) प्रमुख पद से से रिटायरदिनेश्वर शर्मा ने कहा कि हमें राज्य के सभी पक्षों के सहयोग से हर हाल में इस समस्या का हल निकालना होगा। उन्होंने कहा कश्मीर में आतंकवादी और उनके संरक्षक धर्म के नाम पर युवाओं को आतंक से जोड़ने की मुहिम में लगे हुए हैं। शर्मा ने कहा हमें कश्मीरी युवाओं को बताना होगा कि वे कश्मीरियों को बर्बादी के रास्ते पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने आगाह किया कश्मीरी युवकों को उनसे प्रभावित नहीं होना चाहिए।
धर्म के नाम पर बरगलाए जा रहे हैं कश्मीरी युवा
शर्मा ने कहा टेररिज्म की तरफ जाने वाले युवाओं ने बर्बादी की राह चुनी है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें विनाश के रास्ते पर नहीं जाने दें। नए युवकों के एरिया कमांडर बनने की ओर इशारा करते हुए शर्मा ने कहा मुझे बहुत दुख होता है। मैं चाहता हूं कि जितनी जल्दी हो सके, घाटी में अमन-चैन का दौर वापस लौटे। उन्होंने कहा कश्मीर का एक कट्टरवादी वर्ग युवाओं को धर्म के आधार पर अपने ही लोगों से दूर करने का प्रयास कर रहा है। उनसे प्रभावित युवा टेररिज्म के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। यह कश्मीरी समाज को बर्बाद करने की साजिश है। अगर वे सफल हो गए तो घाटी से हालात भी यमन, सीरिया और लीबिया जैसे हो जाएंगे। उन्होंने स्थानीय पक्षों का आह्वान किया कि वे आगे आएं। घाटी के युवाओं का भविष्य नष्ट करने की साजिश को बेनकाब करने में सहायता करें। आजादी, इस्लामिक खलीफा या इस्लाम के नाम पर उन्हें बरगलाया जा रहा है।
मन से गुजरता है समाधान का रास्ता
इंटेलीजेंस ब्यूरो में सन 2003 से 2005 तक, इस्लामिक टेररिज्म डेस्क की जिम्मेदारी संभालने वाले इंडियन पुलिस सर्विसेज (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी शर्मा को सोमवार को कश्मीर मे तीन दशकों तक चली हिंसा को खत्म करने के लिए वार्ताकार नियुक्त किया गया। सन 1992 से 1994 तक तक आईबी के सहायक निदेशक रहने के दौरान गिरफ्तार आतंकवादियों से दोस्ताना संबंधों के जरिए सुधारने लाने के लिए भी उन्हें जाना जाता है। यह उस समय की बात है जब कश्मीर में टेररिज्म अपने चरम पर था। कश्मीर में नियुक्ति के दौरान शर्मा ने 1993 में हिजबुल कमांडर मास्टर अहसान डार को गिरफ्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। श्रीनगर जेल में जब डार ने अपनी बेटी से मिलने की इच्छा जताई तो उन्होंने उसकी बेटी से मुलाकात कराई थी। कश्मीरी युवाओं तक पहुंच बनाने के तरीकों के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वह जल्दी ही कोई रास्ता तलाश लेंगे। उन्होंने कह इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए मैं सभी पक्षों से बातचीत करूंगा। क्या उन्होंने हुर्रियत नेताओं के साथ बातचीत की पहल की है, तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं उन सभी लोगों से बातचीत करूंगा, जो बातचीत में योगदान देना चाहते हैं। हमें लोगों की भावनाओं का ध्यान रखना होगा।
उत्तर-पूर्व के उग्रवादी संगठनों से भी कर चुके हैं वार्ता
टेरर फंडिंंग के मामले में हुर्रियत के कुछ नेताओं के जेल में बंद होने के बावजूद सरकार द्वारा सभी से सकारात्मक बातचीत करने की ओर इशारा किए जाने के बाद भी हुर्रियत नेताओं ने शर्मा की नियुक्ति पर अब तक चुप्पी साध रखी है। शर्मा ने अपनी प्राथमिकताएं बताते हुए कहा कि हमें घाटी के युवाओं को आतंक का पाठ पढा़ने वाले चैनल को बंद करना होगा। इस काम में सभी पक्षों का सहयोग जरूरी है। मैं कश्मीर समस्या सुलझाने के लिए पहले नियुक्त किए गए वार्ताकारों की रिपोर्टों भी पढ़ रहा हूं। उनके सुझावों और अपने विचारों के आधार पर मैं बातचीत को आगे बढ़ाऊंगा। मैं हर वह उपाय करने को तैयार हूं, जो हमें इस समस्या को हल करने में सहायक हो। वार्ताकार के रूप में शर्मा की नियुक्ति पहली बार नहीं की गई है। इसी साल जून में उन्हें बोडो और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) समेत उत्तर-पूर्व के उग्रवादी समूहों से बातचीत की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। दोनों जिम्मेदारियों में अंतर के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा सबसे बड़ा फर्क यह है कि पूर्वोत्तर में पाकिस्तान या कोई तीसरा देश शामिल नहीं था।
Created On :   28 Oct 2017 8:55 PM IST