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भाजपा नेता ने ईवीएम से पार्टी सिंबल हटाने की मांग की

हाईलाइट
- भाजपा नेता ने ईवीएम से पार्टी सिंबल हटाने की मांग की
नई दिल्ली 17 अक्टूबर,(आईएएनएस)। भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव आयोग से मांग की है कि ईवीएम मशीन पर से पार्टियों के सिंबल हटाकर उम्मीदवारों के नाम, फोटो और शैक्षिक योग्यता का विवरण हो। इससे हर प्रत्याशी के साथ समानता का बर्ताव होगा। अभी निर्दलीय उम्मीदवारों को प्रमुख पार्टियों के सिंबल पर चुनाव लड़ने वालों से नुकसान उठाना पड़ता है।
चुनाव आयोग में दाखिल 21 पेज की याचिका में उपाध्याय ने मुख्य चुनाव आयुक्त से आर्टिकल 324 के अधिकारों का उपयोग करते हुए ईवीएम से पार्टियों के चुनाव चिन्ह हटाने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि यह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी है।
उपाध्याय का कहना है कि कई बार पार्टियां गलत उम्मीदवार उतारती हैं। पार्टी और उसके अध्यक्ष को पसंद करने पर मतदाता गलत उम्मीदवार को भी वोट देने को मजबूर होता है। यही वजह है कि ज्यादातर उम्मीदवार अपनी क्षमताओं नहीं बल्कि पार्टी के चुनाव चिह्न् के आधार पर जीत जाते हैं जिससे चुनाव से जुड़ी मंशा प्रभावित होती है।
उपाध्याय का दावा है कि उनके फॉर्मूले को अपनाने से टिकट वितरण में राजनीतिक दलों के प्रमुखों की मनमानी खत्म होगी, वे सही उम्मीदवार उतारने को मजबूर होंगे। उम्मीदवार आधारित चुनाव प्रक्रिया होने से अच्छे जनप्रतिनिधि मिलेंगे। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया को अपनाने से भ्रष्टाचार, अपराधीकरण, जातिवाद, संप्रदायवाद और भाई-भतीजावाद खत्म होगा।
उपाध्याय ने चुनाव सुधारों से जुड़ी लंबित सिफारिशें भी लागू करने की मांग की। उपाध्याय का कहना है कि हमारे संविधान में सांसद और विधायक का जिक्र है मगर राजनीतिक दलों और चुनाव चिन्हों के बारे में बात नहीं है, मगर चुनाव प्रक्रिया राजनीतिक दलों के हिसाब से चल रही है।
-आईएएनएस
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ध्यान रखें की प्रॉपर्टी RERA अप्रूव्ड हो
कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इस बात का ध्यान रखे कि वो भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री के रेगुलेटर RERA से अप्रूव्ड हो। रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट एक्ट, 2016 (RERA) को भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद प्रॉपर्टी खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देना है। राज्य सभा ने RERA को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च, 2016 को किया था। 1 मई, 2016 को यह लागू हो गया। 92 में से 59 सेक्शंस 1 मई, 2016 और बाकी 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आए। 6 महीने के भीतर केंद्र व राज्य सरकारों को अपने नियमों को केंद्रीय कानून के तहत नोटिफाई करना था।